भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। कहावत है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ पाता है, ऐसा ही कुछ इन दिनों प्रदेश में हो रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अकेले ही कोरोना जैसी महामारी से आमजन को राहत देने के लिए जहां दिन-रात एक कर रहे हैं, वहीं इसके बाद भी अफसरशाही उनके साथ कदमताल करने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री के प्रयासों से प्रदेश में ऑक्सीजन का संकट समाप्त होने के बाद भी कोरोना व उसके बाद होने वाले ब्लैक फंगस के इलाज में उपयोग होने वाले इंजेक्शनों की बेहद कमी बनी हुई है। इस मामले में अफसरों की मिली भगत के चलते जिस तरह से निजी अस्पतालों के प्रबंधन द्वारा मरीजों के परिजनों को परेशान किया जा रहा है। हालत यह है कि इस मामले में अफसरों का भी उन्हें पूरी तरह से सरंक्षण मिलता दिखता है।
सरकार द्वारा अस्पतालों में आवश्यकतानुसार रेमडेसिविर इंजेक्शन पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। इसके बाद भी खुलेआम अस्पतालों में चिकित्सकों द्वारा मरीजों के तीमारदारों को इन रेमडेसिविर इंजेक्शन को लाने के लिए पर्चा थमाए जा रहे हैं। यही नहीं अब अधिक मात्रा में ऐस्टोरायड का उपयोग किए जाने से लोगों को दुष्परिणाम के रुप में ब्लैक फंगस का भी सामना करना पड़ रहा है , जिसके इलाज में लिपोसोमल एम्पट्रेक्शिन इंजेक्शन की जरुरत पड़ रही है। इन दोनों ही इंजेक्शन की अस्पतालों में पर्याप्त व्यवस्था बताई जा रही है, लेकिन इसके बाद भी मरीजों के तीमारदारों को परेशान किया जा रहा है। मरीजों व उनके परिजनों को इनके लिए परेशानी से बचाने के लिए जहां सरकार द्वारा इंजेक्शन सरकारी और निजी अस्पतालों को सीधे मुहैया कराया जा रहा है, लेकिन निजी अस्पतालों द्वारा इन्हें मरीजों को उपलब्ध कराने में बेहद गंभीर लापरवाही बरती जा रही है। खास बात यह है की मरीज के भर्ती होते ही इन निजी चिकित्सालयों के चिकित्सकों द्वारा तत्काल रेमडेसिविर इंजेक्शन लिखकर बाजार से लाने के लिए पर्चा पकड़ा दिया जाता है , जिसकी वजह से वे परेशान होकर ब्लैक में खरीदने पर मजबूर बने हुए हैं। दरअसल किस अस्पताल को कब कितने रेमडेसिविर इंजेक्शन दिए गए हैं। इसकी सूची को बेहद गोपनीय रखा जा रहा है साथ ही उनके उपयोग का भी पता नहीं किए जाने से इस तरह की स्थिति बनी हुइ है। खास बात यह है कि इस मामले में जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश का ड्रग कट्रोंल विभाग का अमला भी सक्रिय नजर नही आ रहा है। प्रदेश में यह हालात तब हैं जबकि प्रदेश सरकार द्वारा अब तक दो लाख 54 हजार से अधिक रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध कराए जा चुके हैं।
नहीं देते अस्पताल जानकारी
प्रशासन की माने तो डाक्टर्स द्वारा रेमडेसिविर इंजेक्शन की निजी अस्पतालों को निर्धारित प्रपत्र में मांग किए जाने पर मुहैया कराए जा रहे हैं। इसकी जानकारी अस्पताल प्रबंधन और प्रशासन द्वारा संबंधित मरीजों को न देने से यह पता ही नहीं चल पाता है कि उनके नाम का रेमडेसिविर इंजेक्शन आया है या नहीं। इसका फायदा निजी अस्पतालों द्वारा उठाकर मरीजों को बेहद परेशान किया जा रहा है। खास बात यह है कि रेमडेसिविर इंजेक्शन बाजार में भी कई -कई दिनों तक भटकने के बाद भी बामुश्किल से बेहद अधिक पैसे देने के बाद मिल पा रहे हैं।
यही वजह है कि इसका फायदा उठाकर धनपिपासु भी सक्रिय हो गए हैं और वे नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचने में लगे हैं। यही स्थिति लिपोसोमल एम्पट्रेक्शिन इंजेक्शन की बनी हुई है। यह इंजेक्शन बाजार में मिल नहीं रहे हैं और निजी अस्पतालों में इनका पर्याप्त स्टॉक बना हुआ है। इसके बाद भी मरीजों को परेशान किया जा रहा है। इस इंजेक्शन की भी अब काला बाजारी शुरू हो गई है। इसकी वजह है इसकी मांग बढ़ने से बाजार में इसकी कमी हो जाना। इस तरह के 50 एमएल के चार इंजेक्शनों की एक मरीज को जरुरत पड़ती है। इनमें से दो तो संबंधित निजी अस्पतालों द्वारा आपरेशन के बाद लगा दिए जाते हैं, लेकिन इसके बाद मरीजों को इसके लिए भटकना पड़ता है। इस मामले में भी प्रशासन का रवैया पूरी तरह से उदासीन बना हुआ है।
12/05/2021
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