
-प्रदेश के किसान , उद्योग और नगरीय निकायों द्वारा लगातार पानी लेने के बाद भी जल कर की राशि का भुगतान नहीं किया गया
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। कृषि से लेकर उद्योगों और नगरीय निकायों द्वारा सिंचाई विभाग से साल भर पानी खूब लिया जाता है , लेकिन जब उसके कर भुगतान की बात आती है तो यह सभी हाथ खड़े कर देते हैं, जिसकी वजह से सिंचाई विभाग का खजाना खाली का खाली ही रह जाता है।
हालत यह है कि सिंचाई विभाग को इन सभी से मिलाकर 11 अरब से अधिक की राशि वसूल करना है। यह राशि इन संस्थाओं द्वारा लगातार मांग करने के बाद भी नहीं दी जा रही है, लिहाजा अब सरकार ने इस पर सख्ती करने का फैसला कर लिया है। दरअसल प्रदेश के किसान और नगरीय निकायों द्वारा लगातार पानी लेने के बाद भी जल कर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता है , जिसकी वजह से अधिकांश राशि किसानों व निकायों पर ही बकाया है। यह बकाया राशि कई सौ करोड़ों में है। लगातार प्रयासों के बाद भी सिंचाई विभाग कई सालों से चल रही इस बकाया राशि की वसूली के लिए अब विभाग द्वारा सख्ती दिखाने का फैसला कर लिया है। इसके लिए विभाग द्वारा बस इंतजार किया जा रहा है, कोरोना महामारी के समाप्त होने का। यह बात अलग है कि इस साल के लिए विभाग द्वारा तय किए गए वसूली लक्ष्य से रकम हासिल करने में सिंचाई विभाग सफल रहा है। हालांकि यह रकम बकाया राशि की तुलना में अत्याधिक कम है। बीते साल विभाग ने जलकर के रुप में 320 करोड़ रुपए की वसूली का लक्ष्य रखा था, लेकिन उसकी तुलना में विभाग द्वारा 327 करोड़ रुपए की वसूली की गई है। यानि कि पुराना बकाया में से महज सात करोड़ रुपए की ही वसूली की जा सकी है। अब विभाग ने पुरानी वसूली के लिए अलग-अलग संस्थाओं पर बकाया राशि का पूरा रिकार्ड तैयार करना शुरू कर दिया है। इस मदवार रिकार्ड को तैयार करने के बाद उसे विभाग के आला अफसरों को भेजा जाएगा, जिसके बाद सरकार द्वारा वसूली के लिए सख्ती की जाएगी। दरअसल सरकार द्वारा किसानों को सिंचाई के लिए दिए जाने वाले पानी के उपयोग के लिए एवज में अलग-अलग दर से वसूली की जाती है। विभाग द्वारा गेहूं , धान, चना, मक्का, ज्वार, मसूर, मूंग, सोयाबीन, सरसों आदि के पलैवा सहित फसलों के लिए पानी लेने पर 75 रुपए से लेकर 150 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से राशि ली जाती है। इसी तरह से सब्जी और फलों की खेती के लिए लिए जाने वाले पानी के एवज में विभाग 300 से लेकर 850 रुपए प्रति हेक्टेयर की निर्धारित दर से कर की वसूली करता है। किसानों द्वारा अपनी फसलों के लिए पानी तो पूरा लिया जाता है , लेकिन जब जल कर की राशि के भुगतान का समय आता है तो उनके द्वारा ना-नुकर कर भुगतान नहीं किया जाता है। अगर एक किसान के हिसाब से देखें तो यह राशि बहुत ही मामूली होती है, लेकिन इसके बाद भी उनके द्वारा भुगतान नहीं किया जाता है।
सात सालों से नहीं हुई दर वृद्धि
मप्र ऐसा राज्य है, जहां पर बीते सात सालों से जलकर की दर में कोई वृद्धि नहीं की गई है। प्रदेश में मौजूदा जलकर की दर 2014 में तय की गई थी। प्रदेश में यह हाल तब है जबकि अब सिंचाई प्रोजेक्ट की लागत 5 गुना तक बढ़ चुकी है। सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए अब कृषि भूमि का अधिग्रहण से लेकर नहरों व बांधों के उपयोग में काम आने वाली निर्माण सामग्री भी महंगी हो चुकी है। यही वजह है कि अब विभाग जल कर की राशि में वृद्धि करने के पक्ष में है। इसी वजह से हाल ही में जलकर वृद्धि का प्रस्ताव ईएनसी कार्यालय द्वारा शासन को भेजा गया है। इस प्रस्ताव पर अब साधिकार समिति की बैठक में होना है।
1137 करोड़ की वसूली अटकी
उद्योगों, निजी पॉवर प्लांट सहित किसानों से सरकार को बीते साल अपै्रल 2020 की स्थिति में पुराने जल कर के रूप में 1137 करोड़ 93 लाख रुपए लेना थे। इसी तरह से बीते वर्ष जलकर वसूली के लिए लक्ष्य 320.55 करोड़ रुपए का तय किया गया था। अच्छी बात यह है कि विभाग ने यह लक्ष्य हासिल करते हुए पुराना बकाया में से सात लाख रुपए की वसूली करने में सफलता हासिल की है। यह बात अलग है कि पुरानी बकाया रकम को देखते हुए यह राशि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।