- गौरव चौहान
प्रदेश की शिव सरकार ने अब महिलाओं के रसोई का बजट सम्हालने के लिए उन्हें सस्ते दर पर गैस सिलेंडर उपलब्ध कराने का तय कर लिया है। इससे सरकारी खजाने पर करीब 26 अरब रुपए का हर साल भार पडऩा तय है। इस राशि को खर्च करने से गैस सिंलेडर महज 450 रुपए में मिल सकेगा।
अब विधानसभा चुनाव बेहद पास है, ऐसे में आधी आबादी पर भाजपा व कांग्रेस दोनों का फोकस है। इसकी वजह है जिसे भी आधी आबादी का समर्थन मिल जाएगा, उसकी प्रदेश में सरकार बनना तय हो जाएगा। यही वजह है कि प्रदेश की शिव सरकार ने अब महिलाओं के रसोई का बजट सम्हालने के लिए उन्हें सस्ते दर पर गैस सिलेंडर उपलब्ध कराने का तय कर लिया है। इससे सरकारी खजाने पर करीब 26 अरब रुपए का हर साल भार पड़ना तय है। इस राशि को खर्च करने से गैस सिलेंडर महज 450 रुपए में मिल सकेगा। दरअसल सरकार द्वारा की गई घोषणा पर अमल से आने वाले खर्च का सरकार स्तर पर इसका आंकलन किया गया है। सरकार की यह ऐसी घोषणा है, जो महिलाओं को अन्य घोषणाओं की तुलना में अधिक लुभाने वाली है। इसकी वजह है कि महिलाओं ने गैस सिलेंडर की कीमत अधिक होने की वजह से लकड़ी का उपयोग करना फिर से शुरु कर दिया था। अब कीमत में कमी होने की वजह से एक बार फिर से महिलाएं गैस सिलेंडर का उपयोग करना शुरू कर देगीं। इसका फायदा भाजपा को चुनाव में मिलना तय माना जा रहा है। फिलहाल सरकार की मंशा इस घोषणा का फायदा उज्ज्वला योजना के सभी पात्रताधारी 82 लाख बहनों को दिए जाने की है। इस घोषणा के पहले प्रदेश सरकार के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने गैस सिलेंडर सप्लाई करने वाली तीनों पेट्रोलियम कंपनियों से जानकारी मांगी थी, जिसमें यह पता चला कि उज्ज्वला योजना के तहत प्रदेश में जो गैस कनेक्शन सरकार द्वारा दिए गए थे, उनमें से अधिकांश को रिफील ही नहीं कराया जाता है। इस वजह से औसतन उज्जवला गैस सिंलेडरों को रिफिल कराने का औसत महज हर माह 20 फीसदी के करीब ही रहता है।
तो फिर बढ़ जाएगा भार
प्रदेश में लाड़ली बहना योजना के हितग्राहियों की संख्या अभी एक करोड़ 31 लाख तक पहुंच चुकी है। प्रदेश सरकार ये मान रही है कि सभी उज्ज्वला योजना की हितग्राही, लाड़ली बहना योजना की पात्रता रखती हैं और वे योजना का लाभ भी ले रही हैं। ऐसा होने पर अब भी 49 लाख बहनें ऐसी हैं, जो कि कनेक्शन की पात्रता रखती हैं, लेकिन ये भी जरूरी नहीं कि सभी बहनों को कनेक्शन चाहिए ही? ये इसलिए कि लाडली बहना योजना के तहत एक ही परिवार की तीन से चार बहनों को भी फायदा मिल रहा होगा, वही परिवार में गैस कनेक्शन तो केवल एक के ही नाम पर होगा। यदि कनेक्शन बढ़ गए तो फिर खर्च की राशि भी बढ़ जाएगी। यही नहीं अगर भविष्य में दाम बढ़ते हैं, तो भी सरकार को अतिरिक्त राशि का भार उठाना होगा।
प्रदूषण मुक्ति का होगा फायदा
दरअसल केन्द्र सरकार ने उज्ज्वला योजना को महिलाओं की सुविधा के लिए शुरु किया था। इसके पीछे सरकार की मंशा वनों की सुरक्षा के साथ ही प्रदूषण से राहत पाने की भी है। गैस महंगी होने की वजह से सिलेंडर मिलने के बाद भी अधिकांश हितग्राहियों द्वारा सिलेंडर भरवाने से परहेज किया जाता है। ऐसे में उनके घर में गैस कनेक्शन महज शो- पीस बनकर रह गए हैं। इसकी वजह है घर में गैस सिलेंडर होने के बाद भी घरों में परंपरागत तरीके से चूल्हे का ही उपयोग भोजन बनाने में किया जाना। राज्य सरकार भी अब इस रवैये को बदलना चाहती है, जिससे कि ज्यादा से ज्यादा घरों में गैस से ही खाना बने और बहनों को चूल्हे के जहरीले धुएं से मुक्ति मिले।
अब हर सिलेंडर पर मिलेगी 258 रु. की राहत
हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा घरेलू गैस सिलेंडर के दाम 200 रुपए कम किए गए हैं। इस वजह से अब घरेलू गैस सिलेंडर के दाम घटकर 908 रुपए हो गया है, वहीं केंद्र सरकार उज्ज्वला योजना में पहले ही 200 रुपए की सब्सिडी दे रही है, साथ ही दामों में 200 रुपए की और कमी से उज्ज्वला हितग्राहियों के लिए दाम 708 रुपए हो गया है। इसके बाद अब मप्र के उज्ज्वला हितग्राहियों को घोषणा के मुताबिक 450 रुपए में सिलेंडर देने से सरकार को प्रति सिलेंडर 258 रुपए की सब्सिडी देनी होगी। यदि 82 लाख उज्ज्वला हितग्राहियों ने सिलेंडर का हर माह उठाव किया तो सरकार को एक माह में लगभग 212 करोड़ रुपए का भार उठाना होगा। इस हिसा बसे एक साल में करीब 2544 करोड़ रुपए का खर्च आना तय है। यदि बहने उज्जवला योजना के दायरे से बाहर हैं, तो सरकार सब्सिडी देने में 458 रुपए खर्च करेगी। वहीं दूसरी तरफ लाड़ली बहना योजना में सरकार को 1250 रुपए देने पर अब प्रतिमाह 1637 करोड़ 50 लाख रुपए खर्च करेगी।