भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश सरकार उन पुराने अधिनियमों को समाप्त करने जा रही है जो अब अनुपयोगी और प्रभावहीन हो चुके हैं। इसके लिए कवायद भी शुरू कर दी गई है। दरअसल सरकार की मंशा इन्हें पूरी तरह से समाप्त करने की लंबे समय से है। सरकार के प्रयासों को देखते हुए इसके लिए विधि और विधायी विभाग द्वारा तैयारियां भी तेज कर दी गई हैं।
दरअसल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा 10 माह पहले इस संबंध में बैठक ली गई थी, जिसके बाद प्रदेश के सभी 55 सरकारी विभागों को इस संबंध में पत्र लिखे गए थे। जिसके बाद विभागों द्वारा अप्रभावी अधिनियमों को लेकर किए गए मंथन के बाद महज चार विभागों के पांच अधिनियम समाप्त किए जाने लायक माने गए हैं। बताया जा रहा है कि अब इन्हें समाप्त करने का एक प्रस्ताव कैबिनेट में पेश किया जाएगा, जिसके बाद उसे विधानसभा में लाकर मंजूरी ली जाएगी और उन्हें अप्रभावी बनाया जाएगा। गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ने इसी साल 4 जनवरी को विभागीय समीक्षा बैठक में कहा था कि विधि एवं विधायी कार्य विभाग विधेयकों को सूचीबद्ध कर पोर्टल पर अपलोड करें और अधिनियमों, नियमों और नीतियों का सरलीकरण हर हाल में किया जाए। सीएम ने कहा था कि ऐसे कानून जिनकी आवश्यकता नहीं है, उनको निरस्त करने का काम भी किया जाए। उस समय अधिनियम और नियमों में संशोधन के लिए अध्ययन की बात भी कही गई थी।
इसके बाद ही विधि एवं विधायी विभाग ने 2 फरवरी को 55 विभागों को पत्र जारी करते हुए अनुपयोगी और प्रभावहीन अधिनियमों की जानकारी मांगी थी। इसके बाद विधि विभाग को 18 विभागों ने ही जानकारी दी है, जिसमें से 14 विभागों ने एक भी अधिनियम अनुपयोगी नहीं होने की जानकारी दी है जबकि, चार विभागों से 5 अधिनियमों को अनुपयोगी बताते हुए उन्हें समाप्त करने की सिफारिश की गई है।
लाया जाएगा मप्र निरसन विधेयक
सूत्रों की मानें तो अनुपयोगी पाए गए पांचों अधिक नियमों को समाप्त करने के लिए विधि एवं विधायी विभाग द्वारा मप्र निरसन विधेयक, 2022 को लाने की तैयारी की जा रही है। इसे कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद विधानसभा में लाया जाएगा।
यहां से स्वीकृति मिलते ही पांचों एक्ट खत्म कर दिए जाएंगे। इसमें जिन पांच विधेयकों को समाप्त करने की सिफारिश की गई है उनमें मप्र उद्योग राज्य सहायता अधिनियम 1958 है। यह एमएसएमई विभाग के तहत आता है। इसे समाप्त करने के पीछे तर्क दिया गया है कि उद्योगों को सब्सिडी सहित अन्य तरह से आर्थिक सहयोग करने के लिए नए नियम और मापदंड बनाए जा चुके हैं। जिसकी वजह से इसका कोई उपयोग नहीं रह गया है। इसी तरह से मध्यप्रदेश बोर्स्टल एक्ट, 1928 भी अनुपयोगी बताया गया है। इस एक्ट को खत्म करने जेल विभाग ने सिफारिश की। यह बोर्स्टल इंस्टीट्यूट नरसिंहपुर, जेल विभाग के अंतर्गत था। इसके तहत 18 से 21 वर्ष की आयु सीमा के किशारों को रखा जाता था। अब इसकी जरूरत इसलिए नहीं हैं क्योंकि शासन द्वारा किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2000 के द्वारा 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए अलग बोस्टल होम के प्रावधान किए गए हैं जिन्हें मप्र महिला एवं बाल विकास के तहत संचालित किया जा रहा है। जानकारी के अनुसार बोर्स्टल इंस्टीट्यूट नरसिंहपुर को वर्ष 2006 में जिला जेल नरसिंहपुर श्रेणी एक में शामिल कर दिया गया है। इसी तरह से अश्व रोग एक्ट 1960 एवं मप्र पशु नियंत्रण एक्ट 1976 है। इन दोनों ही अधिनियमों को पशुपालन एवं डेयरी विभाग द्वारा अनुपयोगी और प्रभावहीन बताया गया है। अधिनियम को समाप्त करने के लिए पशुपालन विभाग ने सितंबर माह में विधि विभाग को प्रस्ताव भेज दिया था। जबकि अन्य मध्यभारत लघुवाद न्यायालय अधिनियम, 1949 है। यह अधिनियम तत्कालीन मध्य भारत के ग्वालियर, इंदौर और मालवा क्षेत्र में लघुवाद न्यायालय स्थापित करने के लिए बनाया गया था। इसकी जगह केंद्र सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 लागू कर दिया है। इसके तहत ही ग्रामीण स्तर पर न्याय उपलब्ध कराने के लिए ग्राम न्यायालयों का गठन किया गया है।
06/12/2022
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