भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में पिछले एक दशक से सीधी भर्ती और पदोन्नत हुए प्रोफेसरों के बीच लड़ाई चल रही है। इस लड़ाई का असर यह हुआ है कि पिछले 10 सालों से प्रोफेसरों की वरिष्ठता सूची नहीं बन पाई है। इस कारण प्रोफेसरों को कई तरह की सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। उधर, एजीपी का विवाद अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इससे उच्च शिक्षा विभाग की परेशानी बढ़ गई है। दरअसल, विभाग ने एमपीपीएससी से 2012 में 238 प्रोफेसरों को नियुक्त करने के लिए विज्ञापन जारी किया था। इसमें प्रोफेसरों का एपीजी 8000 निर्धारित किया गया था। भर्ती होने के बाद सीधी भर्ती के प्रोफेसरों ने हाईकोर्ट में रिट लगाकर अपना एजीपी 10 हजार करा लिया है। अब उन्हें प्रमोट प्रोफेसरों के 10 हजार होने वाले एजीपी से दिक्कत है। इसलिए वे मंत्रालय में पदस्थ होकर फाइलों पर जबरिया आपत्तियां दर्ज करते रहते हैं।
दरअसल, उच्च शिक्षा विभाग में पदस्थ प्रोफेसरों की आपसी लड़ाई लगातार बढ़ रही है। इस कारण समस्याएं बढ़ाने के लिए किसी और दुश्मन की जरूरत नहीं है। वे आपस में ही एक-दूसरे को नीचे खींचने में लगे हुए हैं। यही कारण है कि हाईकोर्ट की लड़ाई अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। यहां तक वित्त विभाग भी एजीपी देने के लिए फाइल को बार-बार उच्च शिक्षा विभाग भेजकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। प्रोफेसरों में अपने दस हजार के एजीपी को लेकर लंबे समय से विवाद चला रहा आ रहा है। छठवें वेतनमान को शुरू हुए एजीपी के विवाद को विभाग सातवें वेतनमान तक नहीं सुलझा पाया है। यही कारण है कि हाईकोर्ट से शुरू हुआ एजीपी का विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है, जिस पर उच्च शिक्षा विभाग को जवाब देने में पसीना छूट रहा है।
एमपीपीएससी से आए प्रोफेसरों ने खड़ा किया विवाद
जानकारी के अनुसार यह पूरा विवाद कोई और नहीं बल्कि विभाग द्वारा 2012 में कराई गई एमपीपीएससी की भर्ती से आए 238 प्रोफेसर ही खड़ा कर रहे हैं। स्वयं का सिलेक्शन आठ हजार एजीपी पर होने के बाद अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उनका 10 हजार एजीपी हो गया है, लेकिन उन्हें तकलीफ पदोन्नत होने वाले प्रोफेसरों को मिलने वाले नौ हजार से दस हजार होने वाले एजीपी से है। उनका तर्क है कि वे एमपीपीएससी से सीधी भर्ती होकर आए हैं, तो एसोसिएट प्रोफेसर से पदोन्नत हुए प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी क्यों दिया जाएगा। उन्हें नौ हजार का एजीपी ही दिया जाए। जबकि पदोन्नत प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी मिलने से सीधी भर्ती के प्रोफेसर को कोई नुकसान नहीं है। यही कारण है कि एक दशक से प्रोफेसरों की वरिष्ठ सूची तैयार नहीं हो सकी है। सीधी भर्ती वाले अपने आप को वरिष्ठता सूची में ऊपर रखना चाहता हैं। अपर प्रमुख सचिव केसी गुप्ता का अनुमोदन लेकर मंत्रालय में पदस्थ सीधी भर्ती के प्रोफेसरों ने 2006 के प्रोफेसर को प्राचार्य के दायित्व से मुक्त कराकर 2012 में नियुक्त हुए सीधी भर्ती के प्रोफेसर को प्राचार्य का प्रभार दिला दिया। अब यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है, जिसमें विभाग से जवाब-तलब किया गया कि वे प्रोफेसर की वरिष्ठता का आधार बताएं।
पदोन्नत प्रोफेसर नाराज: जानकारी के अनुसार उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसरों के चार स्तर बने हुए हैं। इसमें प्रोफेसरों की भर्ती एमपीपीएससी से असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर होती है। इसके बाद वे एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर प्रमोट होते हैं। तीसरे स्तर पर एमपीपीएससी से सीधी भर्ती होकर प्रोफेसर बनते हैं। वहीं एसोसिएट पदोन्नति लेकर प्रोफेसर बन जाते हैं। सीधी भर्ती और पदोन्नत प्रोफेसर चौथे चरण में प्राचार्य बनते हैं। इसलिए विभागीय अधिकारियों ने पदोन्नत होकर बने प्रभारी प्राचार्यों को हटाने का कार्य शुरू कर सीधी भर्ती के प्रोफेसरों को प्रभारी प्राचार्य बनाने का कार्य शुरू कर दिया है। इससे पदोन्नत प्रोफेसर काफी नाराज हैं। उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव का कहना है कि प्रोफेसरों को सुविधा देने के कई बार निर्देश दिए गए हैं, लेकिन प्रोफेसर ही प्रोफेसर की मदद नहीं कर रहे हैं। उधर, उच्च शिक्षा विभाग में सचिव के तौर पर रहे अजीत कुमार अब वित्त विभाग पहुंच गए हैं। उन्हें पदोन्नत प्रोफेसर को दस हजार एजीपी देने की फाइल दी गई है। इसे विभाग भेज देते हैं। इस दौरान उन्हें बताया गया है लेकर वे फाइल पर आपत्ति लगाकर बार-बार कि विभाग में प्रोफेसरों के दस हजार पर हैं। इसमें सभी पदों पर भर्ती नहीं हैं। पदोन्नत प्रोफेसरों को दस हजार एजीपी दिया जाएगा, तो विभाग पर 67 करोड़ का वित्तीय भार आएगा।
08/10/2023
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