तरक्की का मूल मंत्र है “आत्म- अनुशासन”

  • प्रवीण कक्कड़
आत्म- अनुशासन

मनुष्य के जीवन में उसके व्यक्तित्व निर्माण में बहुत से गुण अपनी भूमिका निभाते हैं। इन सारे गुणों में अनुशासन सर्वोपरि है, क्योंकि अनुशासन के अभाव में सद्गुण के भी दुर्गुण बनते देर नहीं लगती लेकिन, अनुशासन से भी बड़ी उपलब्धि है आत्मानुशासन। अनुशासन तो व्यवस्था या दूसरे व्यक्ति द्वारा बनाए जाते हैं, जो किसी भी व्यवस्था के संचालन के लिए सभी पर सामूहिक रूप से लागू होते हैं, जबकि आत्म- अनुशासन व्यक्ति खुद अपने ऊपर लागू करता है।
दुनिया भर के कुछ सबसे सफल लोग आत्म-अनुशासन का अभ्यास करते हैं। वे दावा करते हैं कि जीवन में उन्हें तरक्की दिलाने में मुख्य भूमिका आत्म-अनुशासन की है। उन्होंने बड़ी शुरुआत नहीं की, लेकिन आत्म- अनुशासन के साथ उन्होंने छोटे बदलाव किए और वे उच्च पदों पर पहुंच गए। नियमित जीवन में छोटे-छोटे बदलाव जैसे कि हर दिन एक ही समय पर सोना और जागना, स्वस्थ भोजन करना, व्यायाम करना और लक्ष्य निर्धारित करने से आत्म- अनुशासन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। जीवन के इन छोटे-छोटे लक्षणों से भारी अंतर आ सकता है और यह व्यक्ति को आत्म- अनुशासन का जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है।
आत्म- अनुशासन को हम ऐसे समझते हैं कि जब बच्चा स्कूल में पढ़ता है ,तो सुबह समय से विद्यालय पहुंचना, साफ-सुथरे कपड़े पहनना, प्रार्थना में शामिल होना, होमवर्क समय से पूरा करना, व्यायाम की कक्षा में शामिल होना और तय समय पर खेलकूद की गतिविधि में शामिल होना अनुशासन का हिस्सा है। यह अनुशासन विद्यालय का प्रबंधन या अध्यापक छात्र या छात्रा के ऊपर लागू करते हैं। लेकिन वही बच्चा जब स्कूल से कॉलेज जाता है तो यूनिफार्म समाप्त हो जाती है, क्योंकि उससे उम्मीद की जाती है कि 12 साल तक स्कूल में उसे जो अनुशासन सिखाया गया है उसे वह खुद ही अपने आचरण में लागू कर लेगा। ऐसे में उसे सिर्फ ड्रेस कोड बता देना ही पर्याप्त है।
वही बच्चा जब बालिग होने के बाद कॉलेज से निकल कर सार्वजनिक जीवन में आता है तो वहां स्कूल के शिक्षक या कॉलेज के प्रोफेसर की तरह कोई व्यक्ति उस पर अनुशासन लगाने वाला नहीं होता। हर कार्यालय और काम का एक अनुशासन होता है ,किसी भी व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह स्वेच्छा से और खुशी से कुछ अनुशासन का पालन करेगा। अगर वहां वह व्यक्ति अनुशासन का पालन नहीं करता तो उसे सिखाया नहीं जाता। या तो वह अपने काम में पीछे रह जाता है या फिर उस पर दंडात्मक कार्रवाई की जाती है।
लेकिन जो व्यक्ति आत्मानुशासन से काम करता है, उसे उसका पूरा कार्यालय और सहकर्मी पसंद करते हैं। वह काम समय से कर पाता है और दिन पर दिन लोकप्रिय होता जाता है। जो लोग खुद को अपने अनुशासन में डाल लेते हैं, अगर उनके व्यवहार में या प्रतिभा में कोई दूसरी कमी रह भी जाती है तो आत्मानुशासन एक ऐसा बल होता है, जो उन कमियों को ढक लेता है और उसे आगे बढ़ाता है।
लंबे समय तक पुलिस और प्रशासनिक सेवा में काम करने के अनुभव से मैं जानता हूं कि बहुत से ऐसे लोग जो बहुत प्रतिभाशाली थे लेकिन, अनुशासन में चूक कर जाने के कारण अपने कैरियर में बहुत आगे नहीं बढ़ सके, जबकि अनुशासन का पालन करने वाले व्यक्ति तरक्की की सीढिय़ां चढ़ते चले गए।
कॉरपोरेट जगत में तो आत्मानुशासन और भी ज्यादा जरूरी है, क्योंकि वहां सिर्फ नौकरी के घंटे पूरे करना महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि, सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आपको जो टारगेट दिया गया है, उसे आप तय समय सीमा में पूरा कर पाते हैं या नहीं। उस समय सीमा के बीच में ना तो कोई आपको बताता है और ना आपसे तेजी से काम करने के लिए कहता है। वहां बाहर से आपके ऊपर अनुशासन लगाने वाला कोई व्यक्ति नहीं होता। अगर आप अपने टारगेट से चूक जाते हैं ,तो खुद ब खुद आप की रेटिंग कम हो जाती है और आपका कार्यालय आपको कम योग्य मानने लगता है। कॉरपोरेट जगत में आत्मानुशासन ही सफलता की एकमात्र कुंजी है।
अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर मैं आपसे कहना चाहूंगा कि भले आप छात्र हों, स्व-व्यवसायी या नौकरी पेशा अपने जीवन में आत्म- अनुशासन लाएं। आत्म- अनुशासन वह कला है , जो कठिन से कठिन समय में भी आपका संबल बनकर खड़ी रहेगी, वहीं हर काम को समय सीमा में पूरा करने और बेहतर ढंग से करने के लिए प्रेरित करेगी। मुझे विश्वास है कि आप भी अपने जीवन में आत्म- अनुशासन लाकर सफलता की राह को आसान बनाएंगे।
(लेखक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं)

Related Articles