- सीएजी की रिपोर्ट में हुआ खुलासा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
प्रदेश में अफसरों से लेकर सरकारी कर्मचारियों तक को जहां भी मौका मिल रहा है, भ्रष्टाचार और गड़बड़ी करने में पीछे नही रह रहे हैं। ऐसे मामलों में उन्हें जनप्रतिनिधियों का भी साथ मिलता है। यह हम नहीं कह रहे हैं, बल्कि हाल ही में सदन में पेश की गई सीएजी के रिपोर्ट में इसका खुलासा किया गया है। यह खुलासा नगरीय निकायों और पंचायतों को लेकर किया गया है। इसमें बताया गया है कि निकाय और ग्राम पंचायतों में संपत्ति कर, शिक्षा और विकास उपकर आदि की वसूली में भी गंभीर लापरवाही और पब्लिक के साथ भ्रष्टाचार का खेल किया गया है। कर्मचारियों को अस्थायी अग्रिम के नाम पर बांटी गई 7 करोड़ रुपए की राशि वापस नहीं ली गई। वहीं, 35 निकायों में शहरी विकास उपकर की वसूली गई 20.43 करोड़ की राशि सरकारी खातों में जमा नहीं की गई। सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि पंचायती राज संस्थाओं को राज्य वित्त आयोग के अनुदान के रूप में 1364 करोड़ रुपए की राशि वित्त विभाग ने हस्तांतरित नहीं की। चयनित जनपद पंचायतों में मजदूरी और सामग्री के लिए 30.24 करोड़ का भुगतान नहीं किया गया। 10 ग्राम पंचायतों में 1.51 करोड़ की लागत के 62 व्यक्तिगत कुएं (कपिल धारा कूप) फर्जी ढंग से मंजूर किए गए, जिसके कारण 62 में से 46 अधूरे रह गए। 15वें वित्त अनुदान से स्वीकृत कुल 19.16 करोड़ के काम, जिनका मूल्य 15 लाख से कम था, जिला पंचायत और जनपद पंचायत विकास योजना में शामिल नहीं किए गए। 4 जिला पंचायतों और 6 जनपद पंचायतों ने 3 करोड़ की 52 सीमेंट कांक्रीट सडक़ों को मंजूरी दी, वहीं 9 चयनित जिला पंचायतों ने 15.55 करोड़ के निर्माण के लिए मंजूरी की स्वीकृति नहीं दी। 64 ग्राम पंचायतों ने सामग्री मद में 5.07 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन 2.72 लाख मानव दिवस का सृजन नहीं हुआ। इसके अलावा 66 स्टॉप डैम में से 10 स्टॉप डैमों में घटिया गुणवत्ता की सामग्री का उपयोग किया गया।
स्थानीय निकायों में कहां क्या गड़बड़ी…
– 46 नगरीय निकायों ने संपत्ति कर, शिक्षा और विकास उपकर की 427 करोड़ की राशि के बदले 178 करोड़ की वसूल किए जा सके। जल शुल्क, लाइसेंस शुल्क, भूमि और भवन किराया आदि का 303 करोड़ के बदले केवल 88 करोड़ की वसूली की गई।
– 12 नगरीय निकायों ने कर्मचारियों को अस्थायी अग्रिम के नाम पर 7 करोड़ रुपए दिए, लेकिन उसकी वसूली नहीं की।
– 35 नगरीय निकायों में शहरी विकास उपकर के रूप में 51 करोड़ वसूले, लेकिन यह राशि सरकारी खाते में जमा नहीं की, वहीं 33 निकायों ने 94.84 करोड़ का शिक्षा उपकर वसूला और 69.79 करोड़ का उपयोग किया, लेकिन 25 करोड़ की राशि बैंकों में जमा पड़ी रही।
– राज्य सरकार ने कोविड महामारी के दौरान नगरीय निकायों को 85 करोड़ रुपए कम जारी किए। उधर, पानी की मांग के मुकाबले 9 नगरीय निकायों में भंडारण क्षमता थी।
– नगरीय निकायों में हर घर में पाइप से पानी की आपूर्ति में भी निकाय विफल रहे हैं। 2 लाख 54 हजार घरों की अपेक्षा एक लाख 67 हजार में ही अधिकृत जल कनेक्शन पाए गए।
– 13 नगरीय निकायों ने 4, 341 भवन निर्माण की अनुमति दी और संबंधित आवेदकों से छत जल संचयन के लिए एक करोड़ 35 लाख रुपए की सुरक्षा राशि जमा कराई गई, जबकि इन निकायों ने न तो आवेदकों द्वारा किए गए छत जल संचयन के काम का सत्यापन किया और न हीं आवेदकों की और से छत जल संचयन संरचनाएं बनाने का प्रयास किया गया।
– 14 नगरीय निकायों में ओएंडएम व्यय 207 करोड़ था, जिसके विरुद्ध निकायों ने प्रति कनेक्शन प्रति वर्ष 480 से 2,400 रुपए के बीच विभिन्न दरों पर उपभोक्ताओं से 75.95 करोड़ की मांग की गई। 13 निकायों में वास्तविक लागत की तुलना में मांगे गए उपयोगकर्ता शुल्क में घाटा 30 से 93 प्रतिशत तक था। साथ ही 14 नगरीय निकायों ने जल शुल्क के कारण वसूली के लिए बकाया राशि 62.79 करोड़ थी।