- समन्वय बैठक में मौजूद रहेंगे सभी दिग्गज , होगी संगठन व सत्ता के कामकाज की सीमक्षा
भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। संघ व भाजपा की समन्वय बैठक में आज भाजपा संगठन के कामकाज की समीक्षा के साथ ही सियासी मुद्दों से लेकर मिशन-2023 की रणनीति पर चर्चा होना तय माना जा रहा है। इसके अलावा बैठक में सरकारी कामकाज और सूबे में बने ताजा हालातों पर भी चर्चा की जाएगी। भाजपा के लिए यह बैठक बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है , लेकिन हाल ही में हुए दंगों के बाद बैठक होने से इसका महत्व और अधिक बढ़ गया है। माना जा रहा है कि बैठक में किसान, आदिवासी,और दलित वर्गों लेकर विचार- विमर्श होगा। बैठक में संघ की ओर से क्षेत्र प्रचारक दीपक विस्पुते, प्रांत प्रचारक स्वप्निल कुलकर्णी, प्रांत कार्यवाह यशवंत इन्द्रापुरकर समेत अनुषांगिक संगठन के प्रमुख और भाजपा प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के अलावा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ ही विद्यार्थी परिषद, भारतीय किसान संघ , वनवासी परिषद और भारतीय मजदूर संघ के प्रमुख पदाधिकारियों को भी बुलाया गया है।
सूत्रों की मानी जाए तो हाल ही में प्रदेश के दो शहरों में हुये दंगों को लेकर बातचीत हो सकती है। प्रदेश का माहौल कैसे बेहतर किया जा सके, इसे लेकर संघ और भाजपा के नेता आपस में अपने सुझाव दे सकते हैं। इनसे अलावा एक दर्जन निगम-मंडलों में नियुक्ति नहीं होने को लेकर भी इस बैठक में चर्चा होने की संभावना है। इन सब के साथ सबसे महत्वपूर्ण विषय यह रह सकता है कि भाजपा का दस फीसदी वोट कैसे बढ़ाए जाएं, इसके लिए संघ और भाजपा संगठन एवं सरकार की क्या-क्या भूमिका हो सकती है। इस लक्ष्य को पाने के लिए किन-किन नेताओं को आगे रखा जाए। इस पर पिछली बैठक में भी विचार हुआ था। संघ की ओर से प्रदेश भाजपा संगठन को कुछ सामाजिक एवं राजनीतिक प्रोग्राम भी दिए जा सकते हैं। इन कार्यक्रमों को लेकर भी इस बैठक में चर्चा होने का अनुमान लगाया जा रहा है। वहीं फरवरी में हुई संघ-भाजपा की समन्वय बैठक में लिए गए निर्णयों की समीक्षा करने के साथ ही भाजपा के लिए नए कार्यक्रम और लक्ष्य भी तय कर सकता है। बैठक में खरगौन, रायसेन और सेंधवा में हुई सांप्रदायिक उन्माद की घटनाओं पर भी चर्चा होनी तय मानी जा रही है। गौरतलब है कि आरएसएस समय-समय पर भाजपा के साथ समन्वय बैठक कर सत्ता और संगठन के कामों पर चर्चा करता रहता है। संघ का पूरा जोर अंत्योदय और सामाजिक समरसता पर रहता है। उधर भाजपा में लंबे समय से संघ की दृष्टि से गठित प्रांतों की व्यवस्था को लागू करने पर मंथन चल रहा है। यह नई व्यवस्था संभागीय संगठन मंत्रियों की व्यवस्था समाप्त किए जाने की जगह शुरू किया जाना प्रस्तावित है। दरअसल संगठन में निचले स्तर पर फीडबैक और समन्वय की व्यवस्था को और बेहतर बनाने के लिए इस पर विचार किया जा रहा है। फिलहाल भाजपा के सह संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के प्रदेश संगठन महामंत्री बनने के बाद से ही सह संगठन महामंत्री का पद भी रिक्त चल रहा है। इस पर पर नियुक्ति के लिए संघ द्वारा नए नाम पर विचार किया जा रहा है। इसके साथ ही इस बात पर भी गंभीर मंथन हो रहा है कि संघ की तर्ज पर मालवा, महाकौशल और मध्यप्रारत प्रांत के अलग-अलग सह संगठन महामंत्री बना दिए जाएं। प्रदेश में सत्ता और संगठन पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुका है। इसके संकेत लगातार संगठन व सत्ता से मिल रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा संगठन द्वारा कुशाभाऊ ठाकरे शताब्दी वर्ष के आयोजन को लेकर जो भी कार्यक्रम बनाए जा रहे हैं, उन्हें चुनाव की दृष्टि से ही बनाया जा रहा है।
सह संगठन मंत्रियों पर भी हो सकती है चर्चा
दरअसल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मप्र को अपनी संगठन व्यवस्था को तीन प्रांतों मालवा, महाकौशल और मध्य भारत में बांट रखा है। भाजपा में भी इसी तरह का प्रयोग करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसके पीछे संगठन का तर्क है कि इससे कार्यकर्ताओं में समन्वय बेहतर होगा। भाजपा के संगठन मंत्री निचले स्तर पर समन्वय बनाने और फीडबैक लेने का काम करते हैं। गौरतलब है कि पूर्व में भी भाजपा में दो सह संगठन महामंत्री पद की व्यवस्था रही है। माखन सिंह के संगठन महामंत्री रहते अरविंद मेनन और भगवत शरण माथुर सह संगठन महामंत्री हुआ करते थे। दोनों को अलग-अलग प्रांत भी आवंटित थे। इसके अलावा हर संभाग में एक संभागीय संगठन मंत्री हुआ करता था। इसके बाद एक से दो जिलों में संगठन मंत्री और संगठन सहायक काम करते थे। इसके बाद अब पार्टी ने अब संभागीय संगठन मंत्री पद की व्यवस्था पूरी तरह से ही समाप्त कर दी है। माना जा रहा है कि इस नई व्यवस्था को लेकर भी मंथन हो सकता है।
समीकरण साधने पर रह सकता है फोकस
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बैठक में आदिवासी व दलित समाज को और अधिक पार्टी से जोड़ने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं इस पर भी विचार विमर्श किया जाएगा। माना जा रहा है कि इन दोनों ही समाज की बाहुल्यता वाले इलाकों में संघ व भाजपा के अन्य सहयोगी संगठनों को जिम्मा अभी से देने पर भी मंथन किया जाएगा। इसकी वजह है बीते चुनाव में भाजपा को इनके इलाकों में ही बहुत नुकसान हुआ था , जिसकी वजह से भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।