दक्षिण-पश्चिम की तकनीक पर होगा सडक़-पुल निर्माण

सडक़-पुल निर्माण
  • मप्र के इंजीनियरों का दल करेगा महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना व गुजरात का दौरा

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सडक़-पुल के निर्माण की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए सरकार दक्षिण-पश्चिम के कुछ राज्यों की तकनीक अपनाएगी। गौरतलब है कि मप्र में हर साल हजारों किमी सडक़ें थोड़ी सी बारिश और भारी वाहनों के दबाव से खराब हो जाती है। इसको देखते हुए महाराष्ट्र के साथ ही दक्षिणी राज्यों में सडक़, पुल व बिल्डिंग निर्माण की बेस्ट प्रेक्टेिसेज को मप्र में लागू किया जाएगा। इसकी स्टडी के लिए चीफ इंजीनियर स्तर के अधिकारी की अगुआई में पांच सदस्यीय टीम महाराष्ट्र, कर्नाटक तमिलनाडु, तेलंगाना व गुजरात का दौरा करेगी। पीडब्ल्यूडी के प्रमुख अभियंता कार्यालयों, सडक़ विकास निगम और एमपी बिल्डिंग डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन के इंजीनियर टीम में रहेंगे। गौरतलब है की सरकार का फोकस है कि लोक निर्माण से लोक कल्याण के संकल्प के साथ कार्य कर मप्र को अधोसंरचना विकास के क्षेत्र में नई ऊंचाइयों पर लेकर जाना है। इसके लिए अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि कार्यों के लिए समयबद्ध कार्य योजना बनाई जाए, कार्यों की गुणवत्ता के लिए मॉनिटरिंग की विशेष व्यवस्था के साथ क्वालिटी ऑडिट किया जाए, बड़ी योजनाओं की मॉनिटरिंग के लिए पृथक सैल गठित किया जाए, योजनाएं विधानसभावार बनाई जाए, इसके लिए विषय विशेषज्ञों की राय भी ली जाए। कार्यों में पारदर्शिता हो और जनता को इनकी पूरी जानकारी हो।
नई तकनीकी का अधिक से अधिक प्रयोग
बीते दिनों लोक निर्माण मंत्री राकेश सिंह ने विभागीय समीक्षा में निर्देश दिए कि विभागीय कार्यों में नई तकनीकी का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए। बताया गया कि विभाग द्वारा नई तकनीक एफडीआर (फुल डेप्थ रिक्लेमिनेशन) तकनीकी से सडक़ निर्माण कराए जाने की योजना है, जिसके अंतर्गत मौजूदा रोड को बिना हटाए उसके ऊपर ही मशीनों के द्वारा रिक्लेमिनेशन सामग्री का उपयोग कर रोड निर्माण किया जाता है। इसमें समय की बचत के साथ ही साथ निर्माण लागत में 15 से 30 प्रतिशत तक की कमी आती है। मंत्री ने एफडीआर तकनीक का उपयोग शहरी मार्गों पर करने पर विचार करने की बात कही। उन्होंने कहा कि प्रायोगिक तौर पर माइक्रोसर्फेसिंग एवं व्हाईट टॉपिंग के लिये जबलपुर एवं भोपाल में कुछ मार्गों का चयन किया जा सकता है। नवीन तकनीकों से किये जा रहे कार्यों के मूल्यांकन के लिये एक दल का गठन किया जा रहा है। विभाग के लिये तैयार किये गये इंटीग्रेटेड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सिस्टम पर चर्चा की गई। इंटीग्रेटेड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट सिस्टम से समस्त अनुमतियां कम्प्यूटरीकृत प्रणाली से जारी होने पर परियोजना प्रबंधन में पारदर्शिता आएगी। निर्माण कार्यों की वित्तीय एवं भौतिक प्रगति की (रियल टाइम) मॉनिटरिंग संभव होगी। मंत्री ने निर्देश दिये कि कम्प्यूटरीकरण का यह कार्य 100 दिवस में लागू इसे करें। सडक़ों पर व्याप्त गड्ढों की समय से पहचान करने एवं त्वरित सुधार के लिये पॉटहोल रिपोर्टिंग सिटीजन मोबाइल एप तैयार की जायेगी। इस एप के माध्यम से आम नागरिक अपने मोबाइल से गड्ढों की जियोटेग्ड फोटो खीच कर विभाग को सूचित कर सकेंगे।
पांच सदस्यीय टीम बनाने के निर्देश
दरअसल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने पिछले महीने पीडब्ल्यूडी के कामकाज की समीक्षा की थी। उन्होंने महाराष्ट्र व दक्षिण भारतीय राज्यों में सडक़, पुल व भवन निर्माण व्यवस्थाओं, निर्माण तकनीकों, कार्यप्रणालियों, गुणवत्ता नियंत्रण, प्रगति निगरानी, वित्तीय प्रबंधन आदि का अध्ययन व तुलनात्मक विश्लेषण करने के निर्देश दिए थे। इन राज्यों की बेस्ट प्रेक्टिसेज को चिन्हित कर पीडब्ल्यूडी को प्रस्ताव बनाने के लिए कहा था। इस पर अमल करते हुए पीडब्ल्यूडी के प्रमुख सचिव सुखवीर सिंह ने पांच सदस्यीय टीम बनाने के निर्देश दिए हैं। टीम को सीएम के निर्देशों के साथ ही वार्षिक योजना निर्माण, जनभागीदारी परियोजनाओं, परियोजना वित्त पोषण के विकल्प, नई तकनीकों के उपयोग व सडक़ों के रखरखाव का विस्तृत अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है। साथ ही दूसरे राज्यों में किए अभिनव प्रयासों की अलग से रिपोर्ट बनाने की भी जिम्मेदारी दी है। इसके लिए तीन महीने की समय सीमा तय की है।
दूसरे राज्य की तकनीक से भरे जा रहे गड्ढे
दूसरे राज्यों से सीख लेकर नया करने का सिलसिला पीडब्ल्यूडी ने पिछले साल ही शुरू कर दिया था। सडक़ों के गड्ढे भरने के लिए तमिलनाडु व गुजरात की तकनीक का इस्तेमाल किया। विभाग के कैपिटल जोन में पहली बार इस पर अमल किया गया। खास तौर से जेट पैचर मशीन मंगाई। इस मशीन से भोपाल व सीहोर की 185 किमी लंबाई की सडक़ों के गड्ढे भरे जा रहे है। विदेशों में विकसित इस मशीन की मदद से गड्ढे की मरम्मत महज पांच मिनट में की जा रही है। इससे लागत आधी रह गई है और समय भी 40 प्रतिशत तक कम लग रहा है। गोवा, गुरुग्राम आदि में भी इस मशीन से सडक़ों की मरम्मत की जा रही है। इसके साथ ही खराब सडक़ों की शिकायत करने के लिए मोबाइल एप लाया जा रहा है।

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