भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र भी अजब गजब है सो इसके अफसर व प्रशासन भी इसमें कहां पीछे रहने वाला है। इसमें भी आरजीपीवी यानि की राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का कहना ही क्या है। आप कितने भी घपले घोटाले कर लें या फिर आपके खिलाफ कितनी ही जांच चल रही हों इससे विश्वविद्यालय प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता है। हालत यह है की यहां आसमान से ठपके खजूर में अटके वाली कहावत पूरी तरह से लागू होती है। ताजा मामला कुलसचिव का है। तत्कालीन कुल सचिव प्रो. एसएस कुशवाहा को170 करोड़ रुपये के गबन के मामले की जांच में दोषी पाए जाने पर बतौर सजा महज उनका तबादला शिवपुरी कर इति श्री कर ली गई। इसके बाद उनकी जगह यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी (यूआइटी) के संचालक प्रो. सुधीर सिंह भदौरिया को बतौर कुल सचिव का प्रभार सौंप दिया गया। उनको प्रभार दिए जाने से विवि प्रबंधन व सरकार की मंशा पर कई तरह के सवाल खड़े होने लगे हैं। इसकी वजह है प्रो.भदौरिया के खिलाफ अनियमितता के कई मामलों में जांच चल रही है। कुशवाहा पर भी यह कार्रवाई तब की गई जब उन्हें तीन माह पहले दोषी मानने की रिपोर्ट तो आ गई थी , लेकिन उसे दबा लिया गया था, लेकिन अब जाकर हो हल्ला मचा तो कार्रवाई करने की मजबूरी बन गई। इसके बाद भी उनका तबादला कर पूरे मामले का पटाक्षेप करने का प्रयास किया जा रहा है। इस मामले में कुलपति डा. सुनील गुप्ता की भूमिका भी पूरी तरह से संदेह में बनी हुई है। यह बात अलग है कि गुप्ता भी कई विवादों में घिरे हुए हैं। गबन के इस मामले में तकनीकी शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आकाश त्रिपाठी ने राजभवन पत्र लिखकर कुलपति डा. सुनील गुप्ता की संलिप्तता की जानकारी दी है। पत्र में लिखा है कि कुशवाहा की नियुक्ति के कार्यकाल में कुलपति डा. गुप्ता ही रहे हैं, जो कि वर्तमान में भी पदस्थ हैं। इस कारण जांच रिपोर्ट मिलने के बाद आगामी कार्यवाही में भी कुलपति को भी शामिल किया जाए।
प्रो. भदौरिया पर भी मेहरबानी
प्रोफेसर सुधीर सिंह भदौरिया को यूआइटी का डायरेक्टर बनाने का मामला भी विवाद में चल रहा है, उसके बाद भी विश्वविद्यालय प्रबंधन उन पूरी तरह से मेहरबान बना हुआ ह ै। अब उन्हें एक और बेहद अहम जिम्मेदारी दे दी गई है। इनके खिलाफ व्यापमं घोटाले से लेकर संविदा सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति करने एवं नियुक्ति में आरक्षण रोस्टर का पालन न किए जाने की जांच भी चल रही है। साथ ही वित्तीय अनियमितता कर मनमाना वेतन जारी करने की जांच भी लंबित है। प्रो. भदौरिया के खिलाफ मप्र कांग्रेस कमेटी के प्रदेश महासचिव सज्जन सिंह परमार ने 26 अप्रैल को राजभवन में शिकायत कर जांच की मांग की थी। शिकायती पत्र में लिखा है कि प्रो. भदौरिया ने संविदा सहायक प्राध्यापकों की नियुक्ति में आरक्षण रोस्टर का
पालन करने में शासन के आदेशों का पालन नहीं किया है।
विभागीय जांच से तौबा
170 करोड़ के घोटाले के बाद भी एमएस कुशवाहा के खिलाफ विभागीय जांच कराई जानी थी , लेकिन उनका महज ताबदला ही किया गया है। यही नहीं कुलपति की मेहरबानी उन पर ऐसी है की उनके द्वारा एक नई जांच कमेटी बनाकर शासन की जांच के ऊपर अपनी कमेटी को बैठा दिया गया है। यह तब किया जा रहा है जब विभाग के प्रमुख सचिव ने नोटसीट में स्पष्ट लिखा था कि किसी भी तरह की जांचविवि द्वारा कराई जानी उचित नही है।
06/06/2022
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