- जीएडी के प्रस्ताव को वित्त विभाग ने लौटाया
- विनोद उपाध्याय
प्रदेश के लाखों कर्मचारियों को लोकसभा चुनाव से पहले सेवानिवृत्ति आयु 65 साल होने की सौगात मिलने वाली थी। लेकिन वित्त विभाग ने सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृति आयु बढ़ाने के प्रस्ताव को लौटा दिया है। इससे फिलहाल लाखों कर्मचारियों की मंशा पर पानी फिर गया है। प्रदेश के कर्मचारी 62 साल में ही रिटायर होंगे। यह बता दें कि अभी तक प्राध्यापक, चिकित्सक, स्टाफ नर्स एवं अन्य सेवाओं में सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 65 साल है। इन सभी को देखते हुए सभी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु 65 साल करने की तैयारी थी।
मप्र की डॉ. मोहन यादव सरकार ने राज्य के करीब साढ़े चार लाख से अधिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बड़ी सौगात देने की तैयारी की थी। प्रदेश में शासकीय सेवकों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 करने की कवायद शुरू भी हो गई थी। इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने प्रस्ताव बनाकर वित्त विभाग को भेजा था। माना जा रहा था कि संभवत: लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले प्रदेश में कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की आयु-सीमा में एकरूपता लागू हो जाएगी। लेकिन वित्त विभाग ने इस प्रस्ताव की फाइल को लौटा दिया है। गौरतलब है कि प्रदेश में मई 2018 तक शासकीय सेवकों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 साल थी। 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने जून 2018 से इसे बढ़ाकर 62 कर दिया। 6 साल बाद फिर से सरकार सेवानिवृत्ति की सीमा 62 से बढ़ाकर 65 करने जा रही थी। वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं कि इससे सरकार को कर्मचारियों की हो रही कमी से फौरी राहत मिलती। साथ ही वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होने से सेवानिवृत्ति पर एकमुश्त भुगतान की राशि भी नहीं देनी पड़ती।
11 लाख सरकारी कर्मचारी हुए लामबंद
उधर, लोकसभा चुनाव के नजदीकी समय में प्रदेश के शासकीय कर्मचारी सरकार के खिलाफ लामबंद हो गए हैं। प्रदेश के 32 से ज्यादा राज्य कर्मचारी संगठन संयुक्त रूप से सरकार को घेरने के काम करेंगे। उधर, केंद्रीय कर्मचारी संगठनों ने भी आंदोलन पर सहमति जताई है। संगठनों ने मांग पूरी नहीं होने पर सरकार और बीजेपी को खुली चेतावनी भी जारी की है। कर्मचारियों की बेरुखी को लेकर प्रदेश में सियासत भी शुरू हो गई है। कर्मचारी संगठन के पदाधिकारियों ने बताया कि विधानसभा चुनाव में नई सरकार से उन्हें कई उम्मीद थीं। लेकिन, सरकार ने विधानसभा चुनाव के पहले और नई सरकार के गठन के बाद भी उनकी मांगों पर विचार नहीं किया। लिहाजा ऐसे में अब आंदोलन ही एकमात्र रास्ता बचा है। मध्यप्रदेश के कर्मचारी मंच के प्रांताध्यक्ष अशोक पांडे ने कहा कि नई सरकार को मांगों को लेकर कर्मचारियों ने चार बार पत्र मांगों को लेकर लिखे। सरकार ने न तो मांगों को लेकर कर्मचारी संगठनों को चर्चा के लिए बुलाया न ही पत्रों का जवाब दिया। कर्मचारी संगठनों ने यह निर्णय लिया है कि पहले राजधानी समेत जिला स्तर पर मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन किए जाएंगे। यदि तब भी मांग पूरी नहीं की गई तो फिर सामूहिक हड़ताल के लिए तमाम कर्मचारी तैयार है। इन हड़ताल में रेलवे, बैंक, पोस्ट ऑफिस समेत अन्य कर्मचारियों ने भी सहमति जताई है। कर्मचारी संगठन पदाधिकारियों ने बताया कि केंद्र के समान महंगाई भत्ता उनकी प्रमुख मांग है। राज्य सरकार की मनमानी के कारण चार प्रतिशत का उन्होंने नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसके अलावा ओल्ड पेंशन स्कीम बहाली, नियमितिकरण, पदोन्नति समेत अन्य कई मांगों को लेकर कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश में करीब 11 लाख नियमित व अन्य सरकारी कर्मचारी है।
कांग्रेस ने किया समर्थन, चढ़ा सियासी पारा
कर्मचारियों के आंदोलनों को लेकर कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधा है। कांग्रेस मीडिया विभाग के अध्यक्ष केके मिश्रा ने बताया कि बीजेपी सरकार सिर्फ झूठ की राजनीति करती है। बीते विधानसभा चुनावों में भी कर्मचारियों ने कांग्रेस का साथ दिया था। लेकिन, ईवीएम और प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग कर बीजेपी सत्ता में आई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस भी कर्मचारियों के साथ खड़ी हुई है। उधर, बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि सरकार कर्मचारी के हितों में हर संभव निर्णय लेती है। सरकार के कई निर्णय भी सर्वविदित हैं। कांग्रेस सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेकने का काम कर रही है।
संकल्प पत्र में शामिल था विषय
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के संकल्प पत्र-2023 में मप्र के सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति में एकरूपता लाने का विषय शामिल था। साथ ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को विभिन्न कर्मचारी संगठन, मप्र राज्य कर्मचारी कल्याण समिति की ओर से भी इस संबंध में ज्ञापन सौंपकर मांग की गई थी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी शपथ लेने के बाद अधिकारियों के साथ पहली बैठक में संकल्प पत्र-2023 में शासकीय सेवकों से जुड़े मसलों को पूरा करने के निर्देश दे दिए थे। इसके बाद 11 जनवरी को राज्य कर्मचारी कल्याण समिति के अध्यक्ष (कैबिनेट दर्जा) रमेश शर्मा ने मप्र के शासकीय सेवकों की सेवानिवृत्ति की आयु सीमा में एकरूपता लाने के लिए नोटशीट लिखी। जिसमें कहा गया कि शासकीय सेवकों की सेवानिवृत्ति की आयु 62 से बढ़ाकर 65 करने पर शासन को विचार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने पदोन्नति नहीं होने की वजह से सरकारी विभागों में कैडर गड़बड़ाने और खाली पदों को लेकर भी मुख्यमंत्री का ध्यान आकृष्ट कराया था। जिसके बाद मुख्यमंत्री कार्यालय से कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 65 वर्ष करने की फाइल मंत्रालय में दौड़ पड़ी थी। सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने के लिए सामान्य प्रशासन विभाग ने वित्त विभाग से खजाने पर पड़ने वाले भार के लिए अभिमत मांगा था। इसी बीच कई कर्मचारी संगठन व युवा सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने का विरोध करने लगे। वहीं, अब वित्त विभाग ने सेवानिवृत्ति आयु बढ़ाने पर असहमति जता दी है। वित्त की असहमति से प्रदेश के कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 62 वर्ष ही रहेगी।