पर्यावरण की चिंता करना भूले जिम्मेदार

पर्यावरण

ई -वेस्ट से कबाड़ी हो रहे मालामाल

विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। पर्यावरण के लिए खतरनाक बन रहे इलेक्ट्रानिक कचरे का प्रबंधन, विनष्टीकरण व पुनर्चक्रण धरती के लिए मुसीबत बनता जा रहा है। प्रदेश में ई-कचरा प्रबंधन नियम-2016 का पालन नहीं होने से ई-कचरा विधिवत नष्ट होने के स्थान पर कबाडिय़ों को बेचा जा रहा है। नतीजा यह है कि ई-कचरा पर्यावरण के साथ ही सेहत के लिए खतरा बन रहा है। ई-वेस्ट केवल एक देश या शहर की नहीं, बल्कि पूरी धरती की समस्या बन चुका है। इसका असर प्रदेश पर भी पडऩे की बात कही जा रही है। दरअसल प्रदेश में 1 जनवरी से ई-ऑफिस के कॉन्सेप्ट को सौ फीसदी लागू करने की तैयारी की जा रही है। इससे संभागीय व जिलों तक ई-वर्किंग को बढ़ावा दिया जाएगा। इस वजह से बड़े पैमाने पर ई-उत्पादों का उपयोग होगा। लिहाजा ई-वेस्ट बढऩे की आशंका ज्यादा है। वहीं दूसरी ओर, ई-वेस्ट प्रबंधन की दिशा में सरकार के कदम नाकाफी ही साबित हुए हैं। ऐसे में अगर प्रदेश का ई-वेस्ट दूसरे राज्यों के मुकाबले कम भी हो, तो भी प्रबंधन में हम पीछे हैं।  असल में प्रदेश में जल्दी ही मंत्रालयों से लेकर जिलों तक ई-ऑफिस का कॉन्सेप्ट लागू हो जाएगा। साथ ही ई-विधानसभा की भी तैयारी है। इसके अलावा आम जनता में भी बीते दो वर्षों में ई गैजेट्स उपयोग करने में तेजी आई है। जबकि ई-वाहनों में भी तीन साल में डेढ़ गुना वृद्धि हुई है। सूबे में अभी 2.22 लाख से ज्यादा ई-वाहन हो गए हैं। अब सभी नए ई-वाहन डिजिटल मीटर, सेंसर के साथ आ रहे हैं। इससे भी ई-वेस्ट बढ़ेगा। हालांकि ई-वेस्ट प्रबंधन के लिए सितंबर 2024 में प्रदेश सहित दूसरे राज्यों को केंद्र द्वारा निर्देश दिए गए हैं। रीसाइक्लिंग एजेंसियों की संख्या बढ़ाने पर भी जोर दिया गया है, जो अभी देश में महज 178 ही हैं। जिनमें से 6 प्रदेश में हैं। ऐसे में ई-वेस्ट प्रबंधन को लेकर गंभीर होने का यह सही समय है।
रीसाइक्लिंग के लिए नहीं दिए जाते ई गैजेट्स
गौरतलब है कि घरों में टीवी, मोबाइल सहित दूसरे ई गैजेट्स खराब होने पर री-साइक्लिंग के लिए नहीं दिए जाते। न उनका सही तरीके से निपटारा होता है। अधिकतर जगह कबाड़ को दे दिए जाते हैं। इसमें दोनों ही स्तर पर उपयोगी पाट्र्स निकालकर बाकी ई-वेस्ट को नदी-नालों में फेंक या जमीन में दबा दिया जाता है। ऐसे में री-साइक्लिंग के साथ रिकवरी बड़ी चुनौती बन चुकी है। समाजसेवी विजय पांचाल कहते हैं कि भोपाल में ई-वेस्ट एकत्र करने के लिए सेंटर शुरू हुआ, लेकिन ज्यादा लोगों ने ई-वेस्ट को देने में रूचि नहीं ली। इसलिए ई-वेस्ट प्रबंधन में रिकवरी भी बड़ी समस्या है। ऐसे में जागरूकता पर काम भी जरूरी है। राज्यमंत्री पर्यावरण विभाग दिलीप अहिरवार का कहना है कि प्रदेश में ई-वेस्ट प्रबंधन को लेकर सरकार के स्तर पर कई कदम उठाए गए हैं। इसमें विशेष तौर पर ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस मामले में हम भारत सरकार की गाइडलाइन के आधार पर और कदम उठाए जाएंगे।
ई-वेस्ट का प्रबंधन फिलहाल नाकाफी
आलम यह है कि प्रदेश में ई-वेस्ट पर महज 6 री साइक्लिंग कंपनी और 8 निर्माता कंपनी ही केंद्रीय स्तर पर रजिस्टर्ड हैं। इस वजह से ई-वेस्ट कलेक्शन व रिकवरी का काम संतोषजनक नहीं है। सूबे में डिजिटल कनेक्टिविटी और ई-वाहनों के बढऩे से भी ई-वेस्ट में तेजी देखी गई है। अगले पांच साल में इसमें और भी इजाफा हो सकता है। प्रदेश में वर्ष-2022 में 553 टन ई-वेस्ट निकला है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, प्रदेश में पहले 6 से 7 फीसदी की दर से हर साल ई-वेस्ट बढ1 रहा था, लेकिन बीते पांच सालों में यह दर 10 से 12 फीसदी तक हो गई है। अगले तीन सालों में यह 14 से 16 फीसदी तक पहुंचने का अनुमान है।
ई-वेस्ट प्रबंधन में भोपाल फिसड्डी
ई-वेस्ट प्रबंधन में गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उप्र और छत्तीसगढ़ हमसे आगे हैं। भोपाल में ई-वेस्ट एकत्रित करने सेंटर भी शुरू हुआ, परंतु बात बनी नहीं। अब इस मामले में इंदौर के कॉन्सेप्ट को अपनाया जाएगा। इंदौर को आदर्श बनाकर इस दिशा में काम करने का संकल्प लिया गया है। बीते महीने ही सरकार ने भी प्रबंधन को लेकर गाइडलाइन तय की है। इसके तहत इंदौर में ई-वेस्ट को लेकर हो रहे कामों को आदर्श बनाकर दूसरे शहर अपनाएंगे। जानकारी के अनुसार 5 करोड़ टन ई-वेस्ट साल में दुनिया में निकलता है। वहीं 20 लाख टन ई-वेस्ट सालाना भारत में निकलता है। 553 टन ई-वेस्ट मध्यप्रदेश से सालाना निकल रहा है। 0.003 मीट्रिक टन ही ई-वेस्ट का अभी निपटारा होता है।

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