आरक्षण ने फेरा कई की उम्मीदों पर..पानी, बने नए समीकरण

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  • दिग्गज नेताओं के इलाकों की सीटों में भी हुआ बदलाव

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। नगरीय निकाय और पंचायत चुनावों के लिए बीते रोज हुए आरक्षण में कई सीटों के समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं, जिसकी वजह से कई नेताओं व चुनाव लड़ने  की तैयारी करने वाले लोगों की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। इसकी वजह है कई सामान्य सीटें आरक्षित हो गई तो कई सीटें महिलाओं के खाते में चली गर्इं। यही नहीं कई सीटों का सामान्य हो जाना रहा है। यही वजह है की नगर पालिकाओं में अध्यक्ष बनने के सपने देख रहे उम्मीदवारों के लिए मंगलवार का दिन बेहद अहम रहा।
भोपाल के  रवींद्र भवन में अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण दोपहर बाद शुरू हुआ तो प्रत्याशियों की धड़कन कम औश्र अधिक होती रहीं। उधर, लगभग यही हाल जिला पंचायत अध्यक्षों के लिए हुए आरक्षण के समय भी बना रहा। इस बार पदों के आरक्षण होने से कई मंत्रियों, विधायकों और स्थानीय नेताओं को झटका लगा है। वहीं सबसे ज्यादा निराशा ओबीसी वर्ग के लिए हुई है। इस बार के चुनाव में जिला पंचायतों में 9 सीटें इस वर्ग की कम हो गई हैं। वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए जिले बदलने से निराशा हुई है। क्योंकि वे इस उम्मीद से तैयारी कर रहे थे कि उनका जिला आरक्षित होगा। हालांकि सीटों की संख्या पिछले साल के बराबर ही है। अगर नगरीय निकायों की स्थिति देखें तो अब प्रदेश की 99 नगर पालिकाओं में 28 पर ओबीसी अध्यक्ष पद होंगे। महिलाओं के लिए 25 पद, अनुसूचित जाति के लिए 15 और अनुसूचित जनजाति के लिए 6 पद होंगे। आरक्षण की स्थिति स्पष्ट होने के बाद कई दावेदारों के सपने टूट गए तो कइयों की चेहरों पर खुशी दौड़ गई। इसी तरह से नगर परिषद अध्यक्ष के आरक्षण में एससी की 42, एसटी की 21, ओबीसी की 68 और महिलाओं को 66 पद मिले हैं। उधर, 35 नवगठित नगर परिषदों एससी व एसटी के लिए 6-06, ओबीसी के लिए 05, और महिलाओं के लिए 9 पद तय किए गए हैं।
इन जिलों में बदला गणित
ग्वालियर जिपं महिला अजा के खाते में चली गई है। जबकि यहां से मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर के नजदीकी अपनी उम्मीद लगाए  बैठे थे। इसी तरह इंदौर जिला पंचायत अध्यक्ष का पद भी महिला अजा के खाते में गया है। रतलाम और देवास के नेताओं को भी झटका लगा है। नर्मदापुरम की सीट अजा महिला के खाते में जाने से यहां के सवर्ण नेताओं को निराशा हुई है। जिले से अध्यक्ष का चुनाव लड़ने  के लिए कई नेता चुनावी तैयारी में जुट गए थे। उधर, जिला पंचायत आरक्षण में सबसे बड़ा नुकसान ओबीसी वर्ग को हुआ है। इस बार महज चार जिले ही मिले हैं। मंत्री भूपेन्द्र सिंह का गृह जिले सागर भी आरक्षण मुक्त हो गया। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरीशंकर बिसेन का बालाघाट जिला भी आरक्षित नहीं हो पाया है।
फिर वार्ड की तलाश
नगर पालिका अध्यक्ष के कई दावेदार अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव होने के कारण ही निराश थे, लेकिन अध्यक्ष पद का आरक्षण अपने वर्ग का होने के कारण उनमें फिर उम्मीद जागी है। ऐसे उम्मीदवार अब स्वयं के या किसी पड़ोसी वार्ड से चुनाव लड़ने की तिकड़म लगा रहे हैं। हालांकि वार्ड का चुनाव में पार्टी के सिंबॉल के अलावा व्यक्तिगत संपर्क भी मायने रखते हैं। ऐसे में अपने वरिष्ठ नेताओं के दम पर चुनाव जीतने का सपना देखने वालों को झटका लगा है। ऐसे कई दावेदार तो अब पीछे हट गए हैं तो कई दूसरे वार्डों की जुगत में लग गए हैं।
निकायों में ओबीसी को हुआ फायदा, दावा
नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेंद्र सिंह का दावा है की आरक्षण प्रक्रिया के बाद जो आंकड़े आए हैं, उनके अनुसार, प्रदेश की नगर पालिकाओं में अध्यक्षों के 99 पदों में से 28 पद ओबीसी के लिए आरक्षित हुए हैं जो 28.28 प्रतिशत है। इसमें भी बढ़ोतरी हुई है, पूर्व में अध्यक्ष पद 25 थे। नगर पालिका पार्षदों के ओबीसी आरक्षण में भी बढ़ोतरी हुई है। अभी 488 वार्ड ओबीसी के खाते में आए हैं जो कि 26.20 प्रतिशत है, पूर्व में 479 वार्ड ही आरक्षित थे, जो 25 प्रतिशत था। साथ ही नगर परिषदों में 73 पद ओबीसी अध्यक्षों को मिले है और इतने ही पद पूर्व में ओबीसी के लिए आरक्षित थे।
इस तरह से बिगड़े समीकरण
सागर जिला पंचायत को लेकर उलटफेर हुआ है। यह सीट पहले अनारक्षित महिला थी। इस बार अनारक्षित हो गई है। जिले की पंचायत राजनीति में मंत्री गोपाल भार्गव, भूपेन्द्र सिंह और गोविंद राजपूत का बराबर का दखल है। इसलिए प्रत्याशी चयन को लेकर काफी जद्दोजहद होने की संभावना जताई जा रही है। रीवा जिपं की सीट महिला अजजा के लिए आरक्षित हुई है। इससे यहां के ब्राह्मण नेताओं को झटका लगा है। सतना जिपं सीट अजजा के खाते में जाने से सांसद गणेश सिंह के लिए नुकसान है। यह सीट ओबीसी महिला के नाम पर थी। यहां से सांसद के परिवार के जिला पंचायत अध्यक्ष हैं। जबलपुर में भी ऐसा ही हुआ।

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