रामनिवास के मंत्री बनने से… वरिष्ठ विधायकों में नाराजगी, छलका दर्द

  • गौरव चौहान
रामनिवास

प्रदेश में इन दिनों वरिष्ठ भाजपा नेताओं में अंदर ही अंदर मंत्री न बनाए जाने से नाराजगी खदबदा रही है। यह नाराजगी तब और बढ़ गई, जब उन्हें दरकिनार कर कांग्रेस से आयतित विधायक रामनिवास रावत को कैबिनेट मंत्री की शपथ दिला दी गई। यही वजह है कि अब पार्टी के वरिष्ठ विधायकों का दर्द रुक -रुक कर बाहर आना शुरू हो गया है। प्रदेश में बीते दो दशक से बन रही भाजपा की हर सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ विधायक गोपाल भार्गव लगभग हर सार्वजनिक कार्यक्रम में अपना दर्द जाहिर करने में पीछे नहीं रह रहे हैं। यही वजह है कि उनके बयान इन दिनों खूब चर्चा में रह रहे हैं। इसी बीच पूर्व मंत्री जयंत मलैया, अजय विश्नोई के आए बयानों में भी दर्द छलकता हुआ दिखाई दिया है। अहम बात यह है कि यह तीनों न केवल पार्टी के वरिष्ठ विधायकों में शामिल हैं , बल्कि उनके बीच पटती भी अच्छी है। भार्गव व मलैया तो लगभग हर भाजपा सरकार  में मंत्री रह चुके हैं और महत्वपूर्ण विभागों का दायित्व सम्हाल चुके हैं।
यह नेता पार्टी अनुशासन के चलते भले ही रामनिवास का खुलकर विरोध नहीं कर रहे हैं , लेकिन मन ही मन आक्रोषित जरुर हैं। दरअसल, लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे रामनिवास रावत भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय उन्हें शामिल कराने वाले नेताओं ने मंत्री पद दिए जाने का आश्वासन दिया था। हालांकि जिस तरह का प्रदेश में भाजपा को बहुमत मिला था, उसे देखते हुए कार्यकर्ता जरुर यह सवाल खड़ा कर रहे थे, आखिर दूसरे दल के विधायक को पार्टी में लाने की क्या जरुरत है। यह बात जरूर कही जा रही है कि लोकसभा चुनाव में रावत के आने से भाजपा को मुरैना सीट पर फायदा हुआ है। अब रावत के मंत्री बनते ही विधायक अजय विश्नोई ट्वीट करके अपनी बात कह चुके हैं।  
कुछ दिन पहले विश्नोई ने पाटन से चुनाव हराने वाले कांग्रेस के पूर्व विधायक नीलेश अवस्थी के भाजपा में शामिल होने का भी खुलकर विरोध किया था। चूंकि नीलेश भी पाटन विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं। वे दलबदल के विरोधी माने जाते हैं। विश्नोई को मंत्री नहीं बनाने का दर्द पहले भी सामने आ चुका है। उन्होंने मप्र भाजपा संगठन की कार्यप्रणाली को लेकर भी बयान दिया था, जिसकी वजह से संगठन ने उन्हें तलब कर समझाइश भी दी थी। पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सकलेचा का भी बयान सामने आया है। सकलेचा पिछली सरकार में राज्यमंत्री थे। पिछला विधानसभा चुनाव मामूली अंतर से जीते सकलेचा को कैबिनेट मंत्री नहीं बनने का दर्द है। हालांकि वे सार्वजनिक रूप से कुछ भी नहीं कह रहे हैं , लेकिन यह जरूर कह चुके  हैं कि वे संगठन में अपनी बात रखेंगे।
भार्गव ने नहीं छोड़ी उम्मीद …
लगातार 9वीं बार विधायक निर्वाचित होने वाले गोपाल भार्गव अब भी  मंत्री बनने की उम्मीद लगाए हुए हैं। पिछले साल जब उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा था, तब उनका यह बयान चर्चा में रहा था कि गुरु का आशीर्वाद है, इस बार मुख्यमंत्री बनोगे। भाजपा को बहुमत मिलने के बाद भार्गव ने मुख्यमंत्री का दावा पेश किया था। हालांकि शीर्ष नेतृत्व के फैसले के बाद किसी भी पुराने नेता को मंत्री नहीं बनाया गया है। भार्गव द्वारा रामनिवास रावत को मंत्री बनाए जाने के बाद दिए जा रहे बयान को उनके दर्द से जोडक़र देखा जा रहा है। उधर, रावत के मंत्री बनने के बाद भाजपा नेताओं के अचानक सामने आए बयानों को बड़े विभाग मिलने से रोकने की कवायद के रूप में देखे जा रहे हैं। दरअसल, कुछ नेता चाहते हैं कि रावत को बड़ा विभाग न मिले। यही वजह बताई जा रही कि शपथ लेने के 5 दिन बाद भी विभाग का आवंटन नहीं हो पाया है। रावत के मामले में सिंधिया समर्थक भी इन तीनों नेताओं के पक्ष में बजता जाते हैं। दरअसल, जितना रावत का प्रभाव बढ़ेगा उतना ही सिंधिया गुट को नुकसान होगा।
उपचुनाव में मलैया की दिखी थी नाराजगी
2020 में दमोह विधानसभा उपचुनाव के दौरान भी जयंत मलैया और उनके बेटे सिद्धार्थ मलैया की भूमिका पर सवाल उठे थे। उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी राहुल लोधी कांग्रेस के अजय टंडन से चुनाव हार गए थे। तब राहुल लोधी ने मलैया पर पार्टी के विरोध में काम करने के आरोप लगाए थे। प्रदेश संगठन ने सिद्धार्थ मलैया को पार्टी से निष्कासित कर और जयंत मलैया को भी नोटिस भेजा था। जयंत मलैया फिलहाल दमोह से विधायक हैं। वे लंबे समय तक भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं। दरअसल भाजपा कार्यकर्ता और नेता बाहरी नेताओं को पार्टी में लेकर उन्हें दी जाने वाली अहमियत मिलने से नाराज हैं।

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