मजहब मनुष्यता के लिए है, न कि उन्माद के लिए

  • वीरेंद्र नानावटी
मजहब मनुष्यता

सच को सामने लाने और उसकी तथ्यात्मक / तार्किक ऐतिहासिक प्रामाणिकता और पुष्टि के लिए अध्ययन, ईमान और साहस तीनों चाहिए.. इतिहास से आने वाली नस्लों को रूबरु कराना वक्त की धार पर चेतना का उदघोष है.. हर कौम को ये हक हांसिल है कि वो इतिहास से सबक लेकर आने वाले खतरों के लिए मुल्क को आगाह करें.. लेकिन छद्म धर्मनिरपेक्षता के शातिर ढ़ोगी इन मुद्दों पर शुतुरमुर्ग हो जाते हैं.. सत्तर सालों में इसी पाखंड के गंडे-ताबीज देश के गले में लटकाए गए हैं.. मनुष्यता और सर्वधर्म सदभाव के पैरोकार हम भी हैं.. लेकिन सच को स्वीकार करना भी सच को उदघाटित करने जैसा है.. लेकिन ये सामर्थ्य हमारी प्राणग्रंथियों में नहीं है.. चीन और इजराइल जैसी इच्छा शक्ति हमारी कवायदों में शुमार क्यों नहीं होती? इतिहास ने हमें कितना भयाक्रांत कर रखा है…
संदर्भ..इतिहास के सच को सामने आना चाहिए ..?
क्या इतिहास के पन्नों पर ताले लटका दिये जाने चाहिए..?
 ..उबलता सवाल जो मेरे एक वामपंथी मित्र ने सुलगाया फोन पर मुझे ये कहकर कि इतिहास की परतों
को उधेड़ने से जख्म उभर आते हैं..
मैंने जबाब दिया कि जख्म कब तक छुपाते रहोगे..?
इन्हें छुपाओ मत..इनका इलाज करो..वर्ना एक दिन
ये नासूर बन जायेंगे..!
सच घटे या बढ़े तो सच ना रहे!
झूठ की कोई इन्तेहा नहीं!!
2..मैं भी सहमत हूं कि धर्म के आधार पर निर्दोष अल्पसंख्यकों पर जुल्म नहीं होना चाहिए! किसी पर भी नहीं होना चाहिए!
लेकिन जब कोई मजहब या धर्म खुद कुरानऔर गीता जैसी पवित्र किताबों (ग्रंथों)को छोड़कर आतंक का रास्ता अख्तियार करने लगे तो सहिष्णुता के सारे सिद्धांत स्वत: तार-तार हो जाते हैं!
ये पवित्र किताबें जब तुम्हें इंसान नहीं बना सकी तो फिर तुम्हारे भीतर के जानवर का कोई इलाज नहीं है दुनिया में!
देश के तमाम दानिशमंद मुस्लिम बुद्धिजीवी भी ये मानते हैं कि भारत से बेहतर कोई उदार, अहिंसावादी, लोकतांत्रिक और सहिष्णुता के मूल्यों से अनुप्राणित कोई दूसरी जगह नहीं है दुनिया में!
ये बात दुनिया के उन मुस्लिम देशों को भी समझनी चाहिए कि जो भारतीय मुसलमानों को दोयम दर्जे का मुसलमान मान कर व्यवहार करते रहे है!
जिन लोगों ने और जिन देशों ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हुए बेशुमार अत्याचारों और बर्बरताओं पर कभी मुंह नहीं खोला/ मंदिरों और गिरजाघरों को ध्वस्त करने की हजारों शर्मनाक हरकतों पर मजहबी बेशर्मी दिखाते रहे/ यहां तक कि भारत से गए मुसलमानों (मुजाहिर) और अहमदियों के साथ हुए जुल्मों पर तुम सब गूंगे -बहरे बने रहे…आज कौरव सभा की तरह एक जुबानी गलती पर किसी द्रोपदी का चीरहरण करने पर आमादा हो! यकीनन पैगंबर साहब का अपमान कभी नहीं होना चाहिए! लेकिन दूसरों के आराध्य का भी नहीं!
जिंदा इंसानों की कद्र कीजिए… पैगंबर, अवतार और देवता सब तुम्हारे भीतर होंगे!
लेकिन सच्चे मजहबी चश्मे से देखिए..
तुम्हें इंसान और इंसानियत के सिवा कुछ नहीं दिखेगा, वर्ना तुम लहू से ही इंसानियत को नहलाते रहोगे और सारे मजहब… महब्बत नहीं,मारकाट की अंधी सुरंगों में फंस कर रह जायेंगे!
इस बात को समझना कि मजहब है ही मनुष्यता का रास्ता बताने के लिए!
वर्ना तुम जिस उन्माद को धर्म या मजहब समझ बैठे हो..
वो सिर्फ नफरत के खूंटों पर टंगी पागल प्रेतात्माओं का डरावना संसार भर है!
मजहब है गीता के पवित्र श्लोकों में, शिवालय की घंटियों में, मस्जिदों से गर निकले अमन की दुआओं में, गिरजाघरों की प्रार्थनाओं में, गुरूद्वारों के कीर्तनों में!
सामूहिक गुंडागर्दी और वीरता में जिस दिन तुम्हें फर्क समझ में आ जायेगा,बस उस दिन मजहब /धर्म का ध्वज तुम्हारे हाथों में होगा!
जन्नत के रास्ते भी यहीं से जाते हैं!
(लेखक पत्रकार एवं विचारक हैं)

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