सरकारी खजाने को कर्ज से राहत….

सरकारी खजाने

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। नए वित्त वर्ष के अब दो माह पूरे होने जा रहे हैं,लेकिन सरकार ने इस अवधि में एक भी बार कोई नया कर्ज नहीं लिया है। इसकी वजह से सरकारी खजाने को कर्ज से राहत मिली है। अंतिम बार प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष की समाप्ती के चंद दिनों पहले 27 मार्च को लिया था। इसके पहले उसने जनवरी में 2500 करोड़, फरवरी में 5000 करोड़ तथा मार्च में भी पांच हजार करोड़ का नया कर्ज लिया गया था। इसके बाद से अप्रैल और मई में सरकार द्वारा कोई नया कर्ज नहीं लिया है। अगर कुल कर्ज की बात की जाए तो मौजूदा समय में सरकार पर करीब 3 लाख 79 हजार करोड़ का कर्ज है। मप्र सरकार अभी तक आईबीआई द्वारा तय गाइडलाइन के आधार पर बाजार सहित केंद्रीय संस्थाओं से कर्ज लेती रही है। बाजार से अभी तक सरकार ने 10 से 20 साल तक के लिए दो लाख करोड़ का कर्ज उठाया है। कर्ज लेने की लिमिट तय होने की वजह से जनवरी माह में 2500 करोड़, फरवरी में 5 हजार करोड़ और 27 मार्च को पांच हजार करोड़ का कर्ज लेने के बाद सरकार ने बाजार से कोई नया लोन नहीं लिया, लेकिन माना जा रहा है कि चुनावी आचार संहिता समाप्त होने के बाद सरकार अगले माह जून माह में करीब 4 हजार करोड़ का कर्ज ले सकती है। वर्तमान में कर्ज पर ब्याज के रूप में हर साल सरकार को  ब्याज के रूप में 20 हजार करोड़ का भुगतान करना पड़ रहा है। वैसे केंद्र सरकार से एडवांस के रूप में 52 हजार 617 करोड़, बॉन्ड्स के माध्यम से 6, 624 करोड़, वित्तीय संस्थाओं से 14 हजार 620 करोड़, नेशनल स्माल सेविंग से 38 हजार 498 करोड़ तथा अन्य संस्थाओं से 18 हजार 472 करोड़ का कर्ज ले रखा है। सरकार अधोसंरचना विकास सहित अन्य कामों के नाम पर कर्ज लेकर हितग्राही मूलक योजनाओं में बांट रही है।
चुनाव से सुधरी आर्थिक सेहत
दरअसल नए वित्त वर्ष के शुरु होते ही लोकसभा चुनाव की आचार संहिता भी प्रभावशील हो गई थी। ऐसे में प्रदेश में सरकार पर होने वाले खर्च में तो कमी आयी ही है, साथ ही नई योजनाएं और काम भी शुरू नहीं हो सके हैं। इसकी वजह से सरकारी खजाने पर भार कम हुआ है, जिसकी वजह से कर्ज लेने की नौबत ही नहीं आयी है। अगर सरकार उन योजनाओं को बंद कर दे , जो चुनावी फायदे के लिए पूर्व की तीन सरकारों ने लिए हैं, तो प्रदेश के खजाने को बड़ी राहत मिल सकती है। सरकारी बजट का एक बड़ा हिस्सा फ्री की योजनाओं पर ही खर्च हो जाता है। इसकी वजह से सरकार को कर्ज दर कर्ज लेना पड़ रहा है।
फिजूलखर्ची पर रोक जरुरी
सरकार फ्री बीज योजनाओं के अलावा फिजूलखर्ची पर रोक लगा लेती है तो भी खजाने की हालत बहुत बेहतर हो सकती है। फिजूलखर्ची का आलम यह है कि कई विभागों द्वारा जहां अपने दफ्तरों में अनावश्यक रूप से रिनोवेशन का काम कराया जाता है तो वहीं , सौंदर्यीकरण के नाम पर भी भारी राशि खर्च कर दी जाती है। इसी तरह से चार इमली और चौहत्तर बंगला के सरकारी अवासों पर भी अनवाश्यक रुप से हर साल करोड़ों रुपए तब खर्च कर दिए जाते हैं, जबकि अन्य विकास काम बजट के अभाव में बंद पड़े रहते हैं।

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