- जमीनों के नामांतरण का मामला
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। भले ही प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव चाहते हैं कि जमीनों के नामांतरण के लिए कोई भटके नहीं, लेकिन अफसरों ने ऐसी तैयारी की है की सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। अफसरों द्वारा ऐसी योजना बनाई गई है कि इस मामले में बड़ों को तो राहत मिल जाए, लेकिन छोटों को अब भी चक्कर काटने पर मजबूर बना रहना पड़े। यानि की मुख्यमंत्री की मंशा पर पलीता लगाने को तैयार है।
यही वजह है कि इस मामले में ऐसी योजना तैयार की गई है कि पैसे वालों को तो नामांतरण की सुविधा मिल जाए, लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय अब भी तहसीलों के चक्कर काटते रहें , जिससे अफसरों के अपने हित पूरे होते रहें। दरअसल एक पखवाड़े में स्वत: नामांतरण के लिए तैयार की गई योजना में प्रावधान कर दिया गया है कि पूरे एक खसरे की खरीदी के मामले में ही इस नई सुविधा का फायदा मिल सकेगा। इस वजह से अब साइबर तहसील की व्यवस्था पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। गौरतलब है कि सर्वाधिक परेशानी तो छोटे- छोटे प्लॉट खरीदने वाले लोगों को ही होती है।
छोटे- छोटे जमीन टुकड़े खरीदने वाले मध्यवर्गीय और गरीब ही होते हैं। इन्ही को नामांतरण के लिए परेशान होना पड़ता है। पैसे वाले तो अपने रसूख या फिर अन्य तरह से अपनी जमीन का नामातंरण करा ही लेते हैं। पूरा खसरा खरीदने के मामले को विभाग ने अविवादित नामांतरण की श्रेणी में शामिल किया है। गिरवी और बंधक जमीनों को बेचने पर भी नामांतरण पुरानी व्यवस्था के तहत ही होंगे। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रदेश में हर साल 14 लाख प्रकरण नामांतरण के आते हैं, जिनमें से महज दो लाख ही ऐसे मामले होते हैं, जिनमें पूरा खसरा खरीदा -बेंचा जाता है।
ऐसे प्रकरणों का नामांतरण साइबर तहसील के माध्यम से 15 दिन के भीतर ही ऑनलाइन हो जाता है। खास बात यह है कि इसके लिए न तो आवेदन देना पड़ता है और न ही किसी तरह की जांच पड़ताल या तारीख लगती है। लेकिन नामांतरण के शेष 12 लाख प्रकरणों में नामांतरण मौजूदा व्यवस्था के तहत ही होंगे। यानी नामांतरण के लिए सरकारी कार्यालय के चक्कर तो काटना ही पड़ेंगे। यह बात अलग है कि राजस्व विभाग के अफसर कह रहे हैं कि आने वाले समय में तकनीक के जरिए टुकड़ों में बेचे जाने वाली जमीनों के नामांतरण भी इस दायरे में आ सकते हैं।
भू-राजस्व संहिता में किया गया है बदलाव
प्रदेश में साइबर तहसील की व्यवस्था के लिए मप्र भू-राजस्व संहिता, 1959 में संशोधन कर धारा 13-क में साइबर तहसील के प्रावधान किए गए हैं। साइबर तहसील परियोजना की शुरुआत जून 2022 से जिला सीहोर और दतिया में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू हुई। वर्तमान में यह परियोजना राज्य के 12 जिले दतिया, सीहोर, इंदौर, सागर, डिण्डौरी, हरदा, ग्वालियर, आगर मालवा, श्योपुर, बैतूल, विदिशा एवं उमरिया में चल रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव इस व्यवस्था को पूरे प्रदेश में लागू करना चाहते हैं। इसके लिए सरकार व शासन स्तर पर तैयारी पूरी की जा चुकी है।
लगता है अभी लंबा समय
वर्तमान में नामांतरण की व्यवस्था अत्यंत जटिल है। किसी भी तरह की जमीन की रजिस्ट्री होने के बाद नामांतरण में औसतन 3 महीने से लेकर 1 साल तक समय लगता है। यानी जमीन की कीमत देने और सरकार को रजिस्ट्री शुल्क अदा करने के बाद भी नामांतरण के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता है। इस व्यवस्था पर शुरू से ही सवाल उठते रहे हैं।