कई दिग्गजों की हार की वजह बने विद्रोही

भाजपा-कांग्रेस
  • भाजपा-कांग्रेस दोनों को उठाना पड़ा है नुकसान…

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। चुनाव के समय जिस समस्या का हर बार कांग्रेस व भाजपा को सामना करना पड़ता है, उसका तमाम प्रयासों के बाद भी कोई हल नहीं निकल पा रहा है। यह ऐसी समस्या है जिसकी वजह से चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के कई दिग्गजों तक को हार का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से हर चुनाव में दोनों दलों को कई सीटों तक का नुकसान उठाना पड़ता है।
हाल ही में हुआ विधानसभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहा है। अहम बात तो यह है कि भाजपा की आंधी के बाद भी वह ऐसी सीटों पर हार गई है, जो भाजपा लगातार कई चुनाव से जीतती आ रही थी। खास बात यह कि भाजपा के पक्ष में ऐसी आंधी चली कि वह वे सीटें भी जीत गई, जहां उसके मजबूत बागी मैदान में थे। इसके विपरीत कांग्रेस को अपनी पार्टी के साथ भाजपा के बागियों से भी नुकसान हुआ। चार सीटें ही ऐसी थीं, जहां भाजपा को पार्टी के से बगावत कर मैदान में उतरे प्रत्याशियों के कारण पराजय का सामना करना पड़ा।
बगावत की वजह से अरविंद भदौरिया, डॉ. गोविंद सिंह, लक्ष्मण सिंह, एनपी प्रजापति और चौधरी राकेश सिंह जैसे दिग्गजों को हार का सामना करना पड़ा। भाजपा को जहां पार्टी के बागियों के कारण पराजय का सामना करना पड़ा, उनमें अटेर, टीकमगढ़, मुरैना और महिदपुर शामिल हैं। अटेर में पार्टी के बागी मुन्ना सिंह भदौरिया के मैदान में होने के कारण प्रदेश के सहकारिता मंत्री अरविंद भदौरिया हार गए। टीकमगढ़ में केके श्रीवास्तव ने निर्दलीय लडक़र भाजपा के राकेश गिरि को हरवा दिया। अटेर में कांग्रेस के हेमंत कटारे और टीकमगढ़ में यादवेंद्र सिंह चुनाव जीत गए। इसी प्रकार मुरैना में पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह ने अपने बेटे राकेश को चुनाव लड़ा दिया। उन्होंने 37 हजार से ज्यादा वोट लेकर भाजपा को हरा दिया और कांग्रेस के दिनेश गुर्जर चुनाव जीत गए। महिदपुर में भ भाजपा के प्रताप सिंह बगावत कर चुनाव लड़ रहे थे। वे 20 हजार से ज्यादा वोट ले गए और भाजपा के बहादुर सिंह 290 वोट के अंतर से चुनाव हार गए।
बागियों पर यहां भारी पड़े प्रत्याशी
प्रदेश की आधा दर्जन से ज्यादा सीटें ऐसी है, जहां भाजपा में बगावत हुई। मजबूत नेता मैदान में उतर गए, फिर भी भाजपा ने सीट पर कब्जा किया। इनमें सुमावली, भिंड, लहार, चाचौड़ा और होशंगाबाद जैसी सीटें शामिल हैं। सुमावली में भाजपा के बागी कुलदीप सिंह सिकरवार के मैदान में होने के बावजूद भाजपा जीत गई और कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई। भिंड में संजीव सिंह की बगावत के बावजूद भाजपा जीती और कांग्रेस के चौधरी राकेश सिंह चुनाव हार गए। लहार में भाजपा के बागी रसाल सिंह ने बगावत की फिर भी भाजपा जीती और नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को हार का सामना करना पड़ा। चाचौड़ा में भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा आप से चुनाव लड़ गई फिर भी भाजपा जीती और कांग्रेस के लक्ष्मण सिंह हार गए। होशंगाबाद में भगवती चौरे भाजपा से बगावत कर चुनाव लड़ गए लेकिन यहां भाजपा ही जीती और कांग्रेस तीसरे नंबर पर खिसक गई।
इन सीटों पर कांग्रेस पर भारी रहे बागी
कांग्रेस में भी बागियों ने कई जगह कमाल दिखाए। भाजपा से फर्क यह है कि बागियों के होने के कारण कांग्रेस सिर्फ हारी, उसे एक भी सीट पर  जीत नसीब नहीं हुई। गोटेगांव में कांग्रेस ने शेखर चौधरी को टिकट देकर काट दिया था। वे नाराज होकर निर्दलीय चुनाव लड़ गए। उन्हें 47 हजार से ज्यादा वोट मिले और कांग्रेस के एनपी प्रजापति बुरी तरह हार गए। देपालपुर में कांग्रेस के बागी राजेंद्र चौधरी लगभग 38 हजार वोट ले गए और कांग्रेस विधायक विशाल पटेल 13 हजार से ज्यादा वोटों से हार गए। बडऩगर में भी कांग्रेस ने राजेंद्र सोलंकी को टिकट देकर काट दिया था। वे निर्दलीय चुनाव लडक़र 31 हजार से ज्यादा वोट ले गए और कांग्रेस विधायक मुरली मोरवाल को बड़ी हार का सामना करना पड़ा। आलोट में प्रेमचंद गुड्डू बगावत कर मैदान में थे। उन्हें 37 हजार से ज्यादा वोट मिले और विधायक मनोज चावला को पराजय का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार महू में अंतर सिंह दरबार बगावत कर निर्दलीय लड़े तो, कांग्रेस प्रत्याशी तीसरे नंबर पर पहुंच गए और भाजपा की ऊषा ठाकुर बड़े अंतर से चुनाव जीत गई।

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