मालवा-निमाड़ में बगावती… बिगाड़ेंगे खेल

  • बागियों के तेवर गर्म… पार्टियों का रुख नर्म
  • विनोद उपाध्याय
मालवा-निमाड़

आज नाम वापसी का आखिरी दिन है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस के कई बागी नेता चुनावी मैदान में जुटे हुए हैं। हालांकि इन बागी नेताओं को मनाने के लिए दोनों पार्टियों के दिग्गजों ने पूरा दम लगा रखा है। बागियों के गर्म तेवर को देखते हुए पार्टियों ने अपना रुख नर्म कर लिया है। आज शाम को तस्वीर साफ हो जाएगी की किन-किन सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बागी नेता पार्टी का खेल बिगाड़ेंगे। दरअसल, दोनों पार्टियों को अपने-अपने बागियों से खेल बिगड़ने का डर बना हुआ है। टिकट नहीं मिलने पर दर्जा प्राप्त मंत्री से लेकर, पूर्व मंत्री और पूर्व विधायक तक पार्टी से बगावत कर निर्दलीय या फिर किसी दूसरे दल से नामांकन कर चुके हैं। मालवा-निमाड़ में बगावती खेल बिगाड़ने का दम भर रहे हैं। 13 सीटों पर बागियों ने पेंच उलझा दिया है।
विधानसभा चुनाव में टिकट ना मिलने को लेकर भाजपा और कांग्रेस में किस कदर कार्यकर्ताओं में नाराजगी है, इसका इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कार्यकर्ताओं को मनाने के लिए दिग्गजों को मैदान में उतरना पड़ा है। दरअसल, चुनावी दौर में बगावतियों का भी अपना रूतबा होता है, क्योंकि उनकी मौजूदगी चुनाव परिणाम को नई दिशा देने का काम कर देती है। इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस जैसे दल टिकट तय करते समय खासे तनाव में दिखे थे। प्रत्याशियों की सूची जारी करने में दोनों प्रमुख दलों में हिम्मत से ज्यादा डर नजर आया। यही कारण रहा कि कुछ सीटों पर तो नए चेहरे उतारने की हिम्मत दिखा दी, मगर अधिकांश सीटों पर पुराने चेहरों को ही मैदान में उतारा गया है। दलों की इसी हरकत से बागियों के तेवर सख्त हो गए।
13 सीटों पर बागियों ने उलझाए पेंच
खास बात यह कि खुद केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने अपने दल के बागियों से चर्चा की, लेकिन बागियों के तेवर फिलहाल ढीले नहीं हुए हैं। जिस मालवा निमाड़ से दोनों दलों की आस लगी हुई है, वहां की 13 सीटों का मिजाज इस वक्त बिगड़ा हुआ है। इसमें भाजपा को सूबे की सात सीट पर और कांग्रेस को छह सीटों पर संकट का सामना करना पड़ रहा है। बहरहाल रूठों को मनाने का दौर जारी है। आज नाम वापसी का अंतिम दिन है। आज ही तय होगा कि बागियों को लेकर दोनों प्रमुख दलों का तनाव खत्म होगा या और बढ़ेगा। कांग्रेस और भाजपा के लिए संकट पैदा करने वाले नेताओं ने अपने बगावती तेवर से बारह सीटों पर पेंच फंसा दिए हैं। इनमें इंदौर जिले की देपालपुर, महू और इंदौर-3 विधानसभा सीट शामिल हैं। इंदौर के अलावा झाबुआ, जोबट, अलीराजपुर, धार, मनावर, बुरहानपुर, जावरा, आलोट, उज्जैन जिले की बडऩगर सीट में भी बागी मैदान संभाले हुए हैं। जिन नेताओं ने बागी तेवर अख्तियार किए हैं, वे सभी अपने अपने दल के प्रमुख नेता रहे हैं। तेरह सीट पर तेरह बागी मैदान में हैं। इंदौर के मध्य क्षेत्र की विधानसभा सीट 3 में हार जीत का अंतर हमेशा कम ही रहा है। इस सीट पर बीते दो चुनाव से भाजपा जीत रही है और इस बार नया चेहरा गोलू शुक्ला मैदान में है। टिकट की दावेदारी कर रहे भाजपा के युवा नेता अखिलेश शाह ने पार्टी के फैसले पर बगावत कर दी। नतीजा क्या होगा, इसका दावा कोई नहीं कर सकता है, मगर कम अंतर के कारण भाजपा के सामने एक चुनौती तो खड़ी है। जोबट में भाजपा के लिए पूर्व विधायक माधोसिंह डाबर ने संकट खड़ा किया है। जोबट सीट पर हुए उप चुनाव में भी डाबर टिकट के दावेदार थे। इस सीट पर भाजपा ने कांग्रेस छोडक़र आई सुलोचना रावत को उम्मीदवार बनाया था। रावत चुनाव जीत गई थीं, लेकिन डाबर को उम्मीद थी कि अगला मौका उन्हें मिलेगा। पार्टी ने सुलोचना के बेटे विशाल को मैदान में उतार दिया। नाराज डाबर अब मैदान से हटने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। देपालपुर में हिन्दूवादी नेता राजेंद्र चौधरी ने भी भाजपा को खुली चुनौती देते हुए बगावत का ऐलान कर दिया। पिछले एक पखवाड़े से चौधरी भाजपा से टिकट के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। इंदौर, उज्जैन से लेकर भोपाल तक उन्होंने शक्ति प्रदर्शन तक किया। सोमवार को चौधरी ने भारी भीड़ के साथ नामांकन जमा किया। इस भीड़ को देख अब भाजपा सहमी हुई नजर आ रही है। भाजपा के पेंच आलीराजपुर जिले की दोनों सीटों पर फंसे हुए है। अलीराजपुर में पूर्व जिलाध्यक्ष वकील सिंह ठकराला अपने बेटे को आगे कर बगावत का बिगुल बजा चुके हैं। पहले अपने और बाद में पुत्र सुरेश ठकराला के टिकट की पैरवी करने वाले वकील सिंह ने पुत्र का नामांकन भी जमा करा दिया है। जिले के नेता तो मनाकर हार चुके हैं, लेकिन अब भोपाल स्तर पर कुछ बात हो तो भाजपा संकट से उभर पाएगी। धार शहर सीट पर तो दोनों दल उलझे नजर आ रहे है। भाजपा के कद्दावर नेता विक्रम वर्मा ने नहीं सोचा होगा कि सियासत के उत्तरार्ध में उनके सामने बगावत का ऐलान भी हो सकता है। पल्ली नीना वर्मा का टिकट तय होते ही पार्टी के राजीव यादव ने निर्दलीय चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी। यादव नामांकन जमा कर चुके है और पार्टी के तमाम नेताओं की समझाईश को भी वे अनसुना कर रहे हैं।
कांग्रेस के लिए ये बने परेशानी का सबब
धार सीट पर पूर्व विधायक मोहन सिंह बुंदेला के पुत्र कुलदीप बुंदेला ने कांग्रेस के लिए तनाव पैदा कर रखा है। इस सीट से कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष बाल मुकुंद सिंह गौतम की पत्नी को प्रत्याशी बनाया है। टिकट के प्रबल दावेदार कुलदीप को पार्टी का फैसला मंजूर नहीं हुआ और उन्होंने बगावती तेवर अपना लिए। इस सीट पर एक वोट से भी हार जीत हो चुकी है और ऐसे में पार्टी के प्रमुख नेताओं की बगावत क्या रंग दिखाएगी, इस पर राजनीतिक पंडितों की नजर है। झाबुआ में कांतिलाल भूरिया और कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. विक्रांत भूरिया के लिए पूर्व विधायक जेवियार मेढ़ा चुनौती बन गए है। जेवियार ने पार्टी से बगावत कर आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया और उसी के टिकट पर मैदान में उतर गए। कभी दस जनपथ के करीबी रहे जेवियार के इस बगावती तेवर ने कांग्रेस संगठन को तनाव में ला दिया है। मौजूदा हालात में अब उनका मैदान से हटना भी लगभग नामुमकिन लग रहा है। इंदौर जिले की महू विधानसभा सीट और देपालपुर में बगावत का बिगुल टिकट तय होते ही बज चुका था। महू में कांग्रेस प्रत्याशी रामकिशोर शुक्ला के विरोध में कद्दावर नेता और पूर्व विधायक अंतर सिंह दरबार खुलकर सामने आ गए है। दरबार ने नामांकन भी जमा कर दिया और अपनी मैदानी पकड़ का मुजाहरा भी कर दिया। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता दरबार को मनाने में जुटे है, मगर सफलता मिलती दिख नहीं रही है। उज्जैन जिले की बडनग़र सीट पर कांग्रेस को टिकट बदलने के कारण एक नए संकट का सामना करना पड़ रहा है। इस सीट पर मौजूदा विधायक मुरली मोरवाल अपने पुत्र पर लगे दुष्कर्म के आरोप में घिरे हुए है। पार्टी ने राजेंद्र सिंह सोलंकी को टिकट दिया था। मोरवाल खेमे द्वारा किए विरोध के बाद पार्टी ने फैसला बदला। मोरवाल को टिकट मिलना सोलंकी को नागवार गुजरा। अब ये चुनाव मैदान में दम भर रहे हैं।  सांवेर में अपनी बेटी के टिकट का विरोध करने वाले कांग्रेस नेता प्रेमचंद गुड्डू अपनी सियासी जमीन बचाने की जद्दोजहद में जुटे है। पार्टी ने सावेर से बेटी रीना को टिकट दिया, तो बगावत का झंडा लेकर गुड्डू अपनी पुरानी सीट आलोट पहुंच गए। चुनाव के फैसले से ज्यादा चर्चा गुड्डू की सियासी पारी के फैसले की होने लगी है।
अमित शाह का प्रयास भी नहीं आया काम
बागियों के गर्म तेवर को इसी से समझा जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री अमित शाह का प्रयास भी विफल होता दिख रहा है। मनावर सीट से विधायक रही पूर्व मंत्री रंजना बघेल का दर्द तो इस वक्त हर मौके पर फूट पड़ रहा है। टिकट कटने से नाराज रंजना से खुद अमित शाह ने इंदौर में मुलाकात की। शाह से मिलने के बाद भी रंजना के तेवर कम नहीं हुए हैं। उन्होंने पार्टी पर यहां तक आरोप लगा दिया कि उन्हें आदिवासी होने की कीमत चुकाना पड़ रही है। पार्टी ने पूरे समाज के साथ अन्याय किया है।  पार्टी के लिए जीवन समर्पित करने वाले नंदकुमार सिंह चौहान (नंदू भैया) के परिवार से बगावत के सुर निकलेंगे, यह भाजपा ने कभी सोचा नहीं था। नंदू भैया के अवसान के बाद से उनके पुत्र हर्षवर्धन टिकट के दावेदार थे। सांसदी तो मिली नहीं, उम्मीद बुरहानपुर विधानसभा सीट पर लगी थी, लेकिन निराशा हाथ लगी। अर्चना चिटनिस पर पार्टी ने भरोसा जताया और हर्षवर्धन बगावत का ऐलान कर निर्दलीय मैदान में उतर गए।

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