राजगढ़ लोकसभा: राजा व प्रजा के बीच रोचक मुकाबला

राजगढ़ लोकसभा
  • गढ़ बचाने दिग्विजय ने झोंकी पूरी ताकत, तो रोडमल कर रहे कमल खिलाने के लिए मेहनत

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम।  तीसरे चरण में जिन सीटों पर चुनाव होने हैं। उनमें राजगढ़ सीट भी शामिल है। इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के चुनावी मैदान में उतरने से सभी की निगाहें इस सीट पर लगी हुई हैं। कभी दिग्विजय परिवार का गढ़ रही इस सीट पर बीते दो चुनावों से भाजपा का परचम लहरा रहा है। इस सीट पर इस बार राजा व प्रजा के बीच बेहद रोचक मुकाबला हो रहा है। ये वही दिग्विजय हैं, जिन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में एक अनजाने से कांग्रेस कार्यकर्ता नारायण सिंह आमलाबे को टिकट दिलवाया था। नारायण ने दिग्विजय के छोटे भाई भाजपा उम्मीदवार लक्ष्मण सिंह को 24 हजार वोट से हराया था। पिछले 15 वर्ष में हालात इतने बदल गए कि दो बार के सांसद और दो बार प्रदेश के सीएम रह चुके दिग्विजय को अब खुद के लिए वोट मांगने भटकना पड़ रहा है। राजगढ़ में भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला है। नरसिंहगढ़, राजगढ़, खिलचीपुर और राघौगढ़ जैसी रियासतों के कारण इन स्थानों पर आज भी पुराने किले हैं। संसदीय क्षेत्र कई वर्षों तक कांग्रेस का गढ़ रहा। दिग्विजय 1984 और 1991 में सांसद रहे। उनके अनुज लक्ष्मण कांग्रेस से चार बार और भाजपा से एक बार सांसद रहे। पिछले दो चुनाव से भाजपा के रोडमल नागर सांसद हैं। उन्हें तीसरी बार मौका दिया गया है। नागर को भाजपा का गढ़ बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है। कहने को तो नागर के साथ संसदीय क्षेत्र के आठ में से छह विधायक हैं। इनमें दो राज्यमंत्री भी शामिल हैं। हकीकत यह है कि उनके साथ इनमें से कोई नहीं। उन्हें सिर्फ पीएम मोदी के नाम का सहारा है। दिग्विजय के साथ पुत्र विधायक जयवर्धन और एक अन्य विधायक के साथ भूतपूर्व विधायकों का जमावड़ा है। इसके बावजूद दिग्विजय कोई चूक नहीं कर रहे। समाजों को साध रहे हैं। रूठों को मना रहे हैं और पुरानी गलतियों के लिए माफी मांग रहे हैं। संसदीय क्षेत्र में दांगी, सौंधिया, गुर्जर, मीना, तंबर और ब्राह्मण मतदाता ज्यादा होने के कारण वोट निर्णायक माने जाते हैं।
नहीं रहा कई सालों से संपर्क
राजगढ़ लोकसभा सीट पर सालों तक राघोगढ़ के किले का कब्जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्र में आखिरी चुनाव बीस साल पहले लड़ा था। इसके बाद वे केन्द्र की राजनीति में सक्रिय हुए तो उन्होंने अपना संपर्क भी सीमित कर लिया। इसका अहसास उन्हें राजगढ़ सीट पर लोकसभा का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद हुआ। अब वे जब इलाके में पहुंच रहे हैं, तो उन्हें पीढ़ी परिवर्तन की वजह से नए चेहरे मिल रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें चाचौड़ा में दस दूरी के लिए सफाई देते हुए कहना पड़ा है कि पार्टी ने मुझे अलग-अलग प्रदेशों में प्रभारी बनाकर भेजा। मैं घूमता रहा जिसकी वजह से चाचौड़ा नहीं आ पाया। अब उस बीच में क्या हुआ, जो हमारी घर की सीट थी, वो इस बार 60 हजार से हार गए। कहीं न कहीं हमसे गलती हुई, कहां गलती हुई मैं नहीं जानता। जो कोई गलती हुई है, वो किसी ने की हो, मैं उसके लिए माफी मांगता हूं।
दिग्विजय सिंह को छवि से हो रहा नुकसान
दिग्विजय सिंह का मुकाबला भाजपा के दो बार के सांसद रोडमल नागर से हो रहा है। कांग्रेस अपने अनुभवी चेहरे के जरिए इसी सीट को भाजपा से छिनना चाहती है। लेकिन, 33 साल में दिग्विजय सिंह ने अपनी जो छवि बनाई है वह भी यहां उनके साथ-साथ चल रही है। इस वजह से उन्हें अपनी कथित बहुसंख्यक विरोधी छवि से जूझना पड़ रहा है। पिछले दो दशक में इस सीट का मिजाज भी बदला है। वोटर के साथ-साथ उसकी सोच भी बदली है। इस चुनाव में जीत के लिए अब सिंह को रिश्तों को पुर्नजीवित करने पड़ रहे हैं। इसके लिए ही वे पदयात्रा कर रहे हैं। 77 साल की उम्र और भरी गर्मी में वे रोज 18 किलोमीटर चल रहे हैं। हर गांव में वे वोट मांगने के साथ-साथ लोगों से माफी भी मांग रहे हैं।  
रोडमल नागर भी मांग रहे माफी
ऐसा नहीं है कि अकेले दिग्विजय सिंह वोटर से माफी मांग रहे हैं और सफाई दे रहे हैं, बल्कि भाजपा उम्मीदवार रोडमल नागर को भी सफाई देना पड़ रही है। उन्हें भी वोटर से माफी भी मांगना पड़ रही है। नागर के माफी मांगने की वजह क्षेत्र में निष्क्रियता है।  लगातार दो चुनाव जीतने के बाद भी उनके पास वोटर को बताने के लिए कोई उपलब्धियां नहीं हैं। कांग्रेस इसी मुद्दे पर जोर दे रही है। नागर ने सारंगपुर में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के मंच से लोगों से हाथ जोडक़र माफी मांगते हुए कहा है कि भूूल-चूक माफ कर दें, हो सकता है कि मुझसे भूल हुई हो।  इसके लिए मैं सभी से क्षमा मांगता हूं। और इस बार वोट आपको मेरे लिए नहीं बल्कि मोदी जी के लिए करना है।
भाजपा का दबदबा: हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम भाजपा के पक्ष में रहे। क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों पर कुल एक लाख 71 हजार वोट भाजपा को कांग्रेस की तुलना में अधिक मिले हैं। यही नहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में आठों विधानसभाओं में कांग्रेस को 97 हजार वोटों की बढ़त मिली थी , लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा चार लाख से अधिक वोटों से जीत गई थी। इस लोकसभा के तहत आने वाली आठ में से अभी कांग्रेस के पास महज दो सीटें ही हैं। इनमें से एक सीट राघोगढ़ से दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह विधायक हैं और दूसरी सीट सुसनेर पर भेरू सिंह बापू विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में चाचौड़ा सीट पर दिग्विजय सिंह के छोटे भाई लक्ष्मण सिंह 60 हजार से अधिक वोटों से चुनाव हार चुके हैं।  
रोजगार क्षेत्र की बड़ी समस्या: नागर पहली बार 2014 में चुनाव जीते थे, तब वे लाख वोटों से जीते थे। 2019 में यह बढक़र चार लाख को पार गई थी। यहां के लोगों का कहना है कि  क्षेत्र में अब तक रोजगार के साधन नहीं के बराबर हैं. 80 प्रतिशत तक आबादी खेती पर निर्भर है और जब खेती में काम नहीं होता तो पलायन शुरू हो जाता है। मोहनपुरा और कुंडालिया परियोजना से सिंचाई की स्थिति कुछ हद तक सुधरी है लेकिन रोजगार का मुद्दा अहम बना हुआ है। इस तरह से लोग इलाके के तीन सबसे बड़ी समस्याएं रोजगार, स्वास्थ्य सेवाएं और उच्च शिक्षा को बताते हैं। 

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