- दिनेश निगम ‘त्यागी’

बजट सत्र छोटा, डर रफूचक्कर, दांव-पेंच कम नहीं….
कुछ साल पहले तक विधानसभा का सत्र शुरू होने की आहट से अधिकारी-कर्मचारी चौकन्ने हो जाते थे। डर रहता था कि उनसे जुड़ा मुद्दा सदन के अंदर उठ न जाए। अब सब कुछ बदला हुआ है। सत्र की अवधि सिमटती जा रही है। अधिकारी-कर्मचारियों में विधानसभा को लेकर डर भी रफूचक्कर है। हालांकि राजनीतिक दांव-पेंच कम नहीं हुए हैं। आज से चालू बजट सत्र को ही ले लीजिए। इसकी मात्र 9 बैठकें होने वाली हैं। पहले बजट सत्र महीनों चलता था। 9 दिन में ही बजट और विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा कर इसे पारित कराना है। इसके साथ ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा भी होना है। सत्ता पक्ष की कोशिश बजट पास करा कर सत्र को जल्द समाप्त कराने की होगी। दूसरी तरफ विपक्ष की तैयारी बड़ी है। वह परिवहन घोटाले और भिखारी वाले बयान पर मंत्री प्रहलाद पटेल को पूरे प्रदेश में घेर रहा है। विपक्ष की धार को कम करने के उद्देश्य से ही शायद नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंगार का पुराना मामला कोर्ट में पहुंच गया है और उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे की जांच तेज हो गई है। गोहद से कांग्रेस विधायक केशव देसाई को विधानसभा में सवाल पूछने पर जान से मारने की धमकी मिल चुकी है। लंबे समय बाद सदन की ऐसी सनसनी बनी है कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सत्र से 5 दिन पहले ही विधायकों से वर्चुअल चर्चा कर मुस्तैद रहने को कह दिया है।
मप्र में भी खुल सकती है वीडी के नाम की लाटरी….!
राजनीतिक हलकों में भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष को लेकर निर्णय का इंतजार है। पहले जिलाध्यक्षों के चुनाव के कारण विलंब हुआ। इसके बाद दिल्ली चुनाव के कारण फैसला टला। अब कहा जा रहा है कि पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव होगा, इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष का। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष चुनाव प्रक्रिया के प्रारंभ में प्रदेश के दौरे पर थे तब सार्वजनिक तौर पर कहा था कि प्रदेश को नया प्रदेश भाजपा अध्यक्ष जल्दी मिलेगा। इसके बाद वीडी शर्मा के स्थान पर नए नेता की ताजपोशी तय मानी जाने लगी थी। दौड़ में शामिल नाम अब भी चर्चा में हैं। पर वीडी शर्मा के अपने प्रयास जारी रहे। आखिर, उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते भाजपा ने पहले विधानसभा के चुनाव में अच्छी सफलता हासिल की, इसके बाद लोकसभा चुनाव में क्लीन स्वीप कर सभी 29 सीटें जीत लीं। एक बार उनका कार्यकाल बढ़ चुका है, इसलिए उनके रिपीट होने की संभावना कम बताई जा रही है। इस बीच भाजपा नेतृत्व ने पड़ोस के छत्तीसगढ़ और राजस्थान राज्यों में अपने प्रदेश अध्यक्ष रिपीट कर दिए। छत्तीसगढ़ में किरण सिंह जूदेव और राजस्थान में मदन राठौड़ को एक और मौका देकर प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। वीडी की उपलब्धियां इन दोनों से कम नहीं हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तर्ज पर मप्र में भी उनके नाम की लाटरी खुल सकती है!
सरकार का अता-पता नहीं, इन्होंने बना दिया मंत्री….
कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी भंवर जितेंद्र सिंह के स्थान पर आए नए प्रभारी हरीश चौधरी बातें फेंकने में कमतर नहीं दिखते। जितेंद्र सिंह कांग्रेस कार्यकारिणी की घोषणा करते रहते थे लेकिन वह गठित नहीं होती थी। हरीश चौधरी उनसे भी दो कदम आगे निकले। वे झाबुआ दौरे पर पहुंचे तो घोषणा कर डाली कि आप सब कांतिलाल भूरिया को पूर्व केंद्रीय मंत्री न कहें बल्कि भावी केंद्रीय मंत्री बोलें। चौधरी ने कहा कि अगले चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनेगी और भूरिया केंद्र सरकार में मंत्री बनेंगे। भला, इससे बड़ा खयाली पुलाव और क्या हो सकता है? कांग्रेस मुकाबले में कहीं दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ रही। पिछले चुनाव में कांग्रेस को जब देश भर में लोकसभा की सौ सीटें मिलीं, तब भी मप्र में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी। भाजपा ने क्लीन स्वीप किया। भूरिया खुद लगातार लोकसभा के दो चुनाव हार चुके हैं। इतना ही नहीं, लोकसभा के पिछले चुनाव प्रचार के दौरान भूरिया ने कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। इसके बाद वे चुनाव नहीं लड़ेंगे लेकिन आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ते रहेंगे। अब प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी पहुंचे तो कह दिया कि भूरिया कांग्रेस की अगली सरकार में केंद्रीय मंत्री बनेंगे। कोई नेता ऐसे सपने कैसे देख और दिखा सकता है, फिलहाल, जिनके सच होने की दूर-दूर तक संभावना नजर नहीं आती।