आजादी का अमृत महोत्सव वाले साल में की जा रही अनदेखी…
भोपाल/विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। लोकतंत्र में आमआदमी ही महत्वपूर्ण होता है, लेकिन अब ऐसा नहीं है, बल्कि आम आदमी की जगह सिर्फ माननीय ही महत्वपूर्ण होते हैं। शायद यही वजह है कि शासन व प्रशासन उन पर पूरी तरह से मेहरबान बना रहता है । अगर मामला सुख सुविधाओं का हो तो फिर विशेष मेहरबानी दिखाने में पीछे नहीं रहता है।
ऐसा ही कुछ रेलवे प्रशासन का है। देश में जहां आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है, ऐसे में आम आदमी की सुविधाएं छीनने वाला रेलवे प्रशासन की माननीयों पर मेहरबानी लगातार जारी है। इसमें सीट आरक्षण से लेकर उन्हें दी जाने वाली मुफ्त यात्रा की सुविधाएं तक शामिल हैं। हालात यह हैं कि 53 तरह की कैटेगिरी में शामिल लोगों को दी जाने वाली रियायत बीते ढाई साल से बंद है, जबकि माननीयों को मिलने वाली फ्री सुविधाएं लगातार जारी हैं। ऐसे में रेलवे की कार्यप्रणाली को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना काल के दौरान मार्च 2020 में ट्रेनों के संचालन को बंद करते हुए रेलवे सब्सिडी को सस्पेंड कर दिया था। जिसका सिलसिला अब भी बंद होने का नाम नहीं ले रहा है।
यात्रियों को जिन कैटेगिरी में रियायत दी जाती थी उसमें सीनियर सिटीजन से लेकर, किसान, युवा एवं विद्यार्थी तक शामिल थे। इसमें खास बात यह थी कि ,यह छूट 25 फीसद से लेकर 75 फीसद तक अलग- अगल श्रेणियों में दी जाती थी। इसमें सीनियर सिटीजन के पुरुषों को 40 एवं महिलाओं को 50 फीसद सब्सिडी दी जाती थी। इनके अलावा विधवा महिलाएं, खिलाड़ी, पत्रकार, किसान, युवा और अवार्ड प्राप्त समेत अन्य यात्रियों को अलग-अलग दरों पर रियायत मिलती थी। बता दें कि यह छूट सभी कोचों पर आरक्षित एवं अनारक्षित दोनों श्रेणी के यात्रियों को मिलती थी। रेलवे के अफसरों ने बताया कि अभी सिर्फ दिव्यांग और कैंसर से पीड़ित मरीजों को यह छूट दी जा रही है, जबकि माननीयों को मिलने वाली रियायत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। इसके तहत माननीयों को ट्रेन में यात्रा करने के लिए मिलने वाली छूट में मौजूदा सांसद और विधायकों को प्रथम श्रेणी में दो सीटें फ्री मिलती हैं। जबकि पूर्व सांसद और पूर्व विधायक को एक सीट फ्री में मिलती है।
पेंशन में भी भेदभाव
इसी तरह से केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों द्वारा भी कर्मचारियों व माननीयों की पेंशन तक में भारी भेदभाव किया जाता है। कर्मचारियों के लिए तो खर्च बचाने के लिए नई पेंशन योजना बना दी गई है , लेकिन माननीयों की पेंशन को लेकर कोई कदम तक नहीं उठाया जा रहा है। पुरानी पेंशन योजना को दिसंबर 2003 में भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने बंद कर दिया था। नई पेंशन योजना 1 अप्रैल 2004 को लागू हुई। ऐसा है पुरानी और नई पेंशन स्कीम में कर्मचारी की सैलरी से 10 फीसदी की कटौती की जाती है। साथ ही 14 फीसदी हिस्सा सरकार मिलाती है। इसे शेयर मार्केट बेस्ड है। इसका भुगतान बाजार पर निर्भर करता है। यही नहीं अब नई पेंशन स्कीम में जीपीएफ की सुविधा मौजूद नहीं है। इसके उलट पूर्व माननीयों को एक दिन माननीय रहने पर न केवल पेंशन की सुविधा है , बल्कि उन्हें दोहरी पेंशन की भी सुविधा दी जाती है। यही नहीं हर बार निर्वाचित होने पर उसमें अतिरिक्त रुप से वृद्वि की भी सुविधा मिली हुई है। इसके उलट कर्मचारियों के मामले में नई पेंशन स्कीम में निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायर्ड कर्मचारियों को भी हर 6 महीने में मिलने वाला महंगाई भत्ता भी मिलता था। लेकिन नई स्कीम में इसकी व्यवस्था नहीं है। पुरानी योजना में कर्मचारी की मौत पर उसके परिजनों को भी पेंशन मिलती थी। नई पेंशन स्कीम में भी कर्मचारी की मौत पर परिजनों को पेंशन मिलती है, लेकिन योजना में जमा पैसा सरकार ले लेती है। इसी तरह से स्कीम में शेयर मार्केट के आधार पर जो पैसा मिलता है, उस पर टैक्स भी देना पड़ता है।
माननीयों को डबल पेंशन का हक!
नियम ऐसे हैं कि अगर कोई नेता पूर्व सांसद या विधायक की पेंशन ले रहा है और फिर से मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन भी मिलती है। सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन लेने का हक है। अगर कोई विधायक रहा हो और बाद में सांसद बन जाए तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समयसीमा तय नहीं है, यानी कितने भी समय के लिए नेताजी सांसद रहे हों पेंशन पाने के हकदार रहेंगे। मृत्यु होने पर परिवार को आधी पेंशन मिलती है।