निगम-मंडलों की नियुक्ति में नहीं चलेगा कोटा

  • निष्ठा-समर्पण और योग्यता को देखकर मिलेगी राजनीतिक कुर्सी
  • गौरव चौहान
निगम-मंडलों

प्रदेश में नई सरकार के गठन के आठ माह बाद निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति की सुगबुगाहट तेज हो गई है। सत्ता और संगठन के साथ ही कुर्सी की चाह रखने वाले नेताओं की सक्रियता बढ़ गई है। बड़ी कुर्सियों पर काबिज होने के लिए नेताओं ने दिग्गज नेताओं की परिक्रमा भी शुरू कर दी है। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सत्ता और संगठन ने साफ कर दिया है कि  निगम-मंडलों में राजनीतिक नियुक्ति में कोई कोटा नहीं चलेगा। यानी निष्ठा-समर्पण और योग्यता देखकर ही कार्यकर्ताओं का चयन किया जाएगा।
प्रदेश में जब भी राजनीतिक नियुक्तियों की चर्चा शुरू होती है कोटा सिस्टम से नियुक्ति के लिए नेता सक्रिय हो जाते हैं। कोई सत्ता, कोई संगठन, कोई संघ तो कोई नेताओं की परिक्रमा शुरू कर देता है। खासकर जब से कांग्रेस से बड़ी संख्या में नेता भाजपा में आए हैं, तब से पार्टी में दो तरह का कोटा सिस्टम दिखाई देने लगा है। एक में मूल भाजपाई और दूसरे में कांग्रेस से आए नेता। लेकिन अब सत्ता और संगठन ने साफ कर दिया है कि निगम-मंडलों में होने वाली राजनीतिक नियुक्ति में कोटा सिस्टम नहीं चलेगा। यानी मप्र में निगम और मंडलों में होने वाली राजनीतिक नियुक्तियों में भाजपा केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों और कांग्रेस से आए नेताओं से दूरी बनाएगी। कार्यकर्ताओं की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित करने की तैयारी में जुटे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की एक दौर की बैठक में यह तय किया गया है कि पिछली सरकार में जिस तरह से निगम और मंडल के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष और मंत्री दर्जा देकर सिंधिया समर्थकों को बड़ी संख्या में कुर्सी पर बैठाया गया था, यह नई सरकार में नहीं होगा। इसके पीछे पार्टी नेतृत्व का मानना है कि पिछली सरकार में बाहर से आए लोगों को कुर्सियों पर बैठाने से भाजपा के मूल कार्यकर्ता हतोत्साहित हुए।
मूल भाजपाइयों को मिलेगा महत्व
गौरतलब है कि सरकार में कांग्रेस से आए नेताओं की भारी-भरकम भागीदारी के कारण वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को कार्यकर्ताओं की नाराजगी का सामना करना पड़ा, इससे निपटने के लिए पार्टी ने कई बड़े नेताओं को जिलों में भेजकर जैसे-तैसे कार्यकर्ताओं को मनाया था। वर्ष 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के 22 विधायकों के साथ भाजपा में आए वे और त्यागपत्र देने के कारण सभी सीटों पर उपचुनाव हुए थे। जो जीते, वे सभी मंत्री पद पर बरकरार रहे, जो हारे उन्हें निगम और मंडल में अध्यक्ष बनाकर मंत्री दर्जा दे दिया गया। ऐसे लोगों में इमरती देवी, रघुराज कंसाना, गिर्राज डंडोतिया, रणवीर जाटव, जसवंत जाटव, मुन्नालाल गोयल प्रमुख हैं। इसके अलावा भी कांग्रेस पृष्ठभूमि से आए प्रदीप जायसवाल, प्रद्युम्न सिंह लोधी और राहुल लोधी को भी महत्वपूर्ण निगम में अध्यक्ष बनाया गया था। इन नियुक्तियों के कारण भाजपा कार्यकर्ता दरकिनार हो गए, लेकिन अब भाजपा ऐसा कोई घातक कदम नहीं उठाएगी। भाजपा प्रवक्ता डा. हितेष वाजपेयी का कहना है कि भाजपा की बहुमत की सरकार है। पार्टी में किसी प्रकार की कोई गुटबाजी नहीं है। जहां तक राजनीतिक भागीदारी का सवाल है तो यह पूर्णत: सरकार और पार्टी नेतृत्व का विषय और विशेषाधिकार है। वे कार्यकर्ताओं की निष्ठा-समर्पण और योग्यता देखकर ही चयन करेंगे। भाजपा के दिग्गजों ने यह भी तय किया है कि मंत्री दर्जा बांटने में कोई कोटा भी नहीं चलेगा। कुछ पूर्व संगठन मंत्रियों को भी पिछली सरकार में मंत्री दर्जा दिया गया था, अब उन्हें भी प्रत्यक्ष तौर पर पार्टी के लिए काम करने का निर्देश दिया गया है। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने विचार रखा है कि इन्हें एक बार सरकार में अवसर दे दिया गया है। अब पद पाना है तो पार्टी के प्रति अपना योगदान दें और सक्रियता बढ़ाएं, विशेषाधिकार अब नहीं चलेगा।

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