लोक निर्माण विभाग के… अफसरों की भर्राशाही

  • प्रशासकीय स्वीकृति से 10 प्रतिशत अधिक दी जा रही स्वीकृतियां
  • विनोद उपाध्याय
लोक निर्माण विभाग

भ्रष्टाचार, घटिया निर्माण कार्य, लापरवाही के लिए कुख्यात लोक निर्माण विभाग में अफसरों की भर्राशाही कम होने का नाम नहीं ले रही है। आलम यह है कि नियमों को ताक पर रखकर अधिकारी सरकार को राजस्व हानि पहुंचा रहे हैं। ऐसा ही मामला हाल ही में सामने आया है, जिसके तहत लोक निर्माण विभाग के अफसरों द्वारा प्रशासकीय स्वीकृति से 10 प्रतिशत अधिक की स्वीकृतियां देकर सरकार को करोड़ों रूपए की चपत लगाई जा रही है। गौरतलब है कि लोक निर्माण विभाग के अधिकारी निर्माण कार्यों से जुड़े प्रोजेक्ट में टेंडर दरों में कम दरें प्राप्त होने पर सक्षम प्राधिकारी से अनुमति लिए बगैर ज्यादा राशि स्वीकृत कर रहे हैं। खास बात यह है कि कई प्रकरणों में प्रशासकीय स्वीकृति से भी 10 प्रतिशत अधिक की स्वीकृतियां दी जा रही हैं। इससे शासन को आर्थिक नुकसान हो रहा है।   राज्य शासन के संज्ञान में आया है कि प्रशासकीय स्वीकृति के बाद निविदा दरों में कम दर प्राप्त होने पर आम नागरिक एवं जनप्रतिनिधि यह आग्रह करते हैं कि प्रशासकीय स्वीकृति तक राशि के कार्य कराए जाएं, जिस कारण प्रकरणों में परियोजना की लंबाई, चौड़ाई, मूल स्वरूप एवं नए घटक जोड़े जाकर प्रशासकीय स्वीकृति तक उस कार्य में वृद्धि की जा रही है। कई प्रकरणों में प्रशासकीय स्वीकृति से भी 10 प्रतिशत अधिक की स्वीकृतियां दी जा रही हैं, जो लोक निर्माण विभाग मैनुअल के अनुसार केवल अपवादिक, अपरिहार्य तकनीकी कारणों से ही दिया जाना चाहिए। इसे देखते एक जून, 2018 को जारी आदेश के कुछ बिंदुओं को पूर्णत: निरस्त एवं विलोपित करते हुए इनमें कुछ संशोधन किए गए गए हैं।
अफसरों पर नकेल कसने के लिए कई संशोधन
अफसरों की मनमानी रोकने के लिए कई प्रकार के संशोधन किए गए हैं। अनुपूरक कार्य वेरिएशन जरूरी होने की स्थिति में अनुपूरक कार्यों का समावेश कर सक्षम स्तर से पुनरीक्षित तकनीकी स्वीकृति दी जाएगी। पुनरीक्षित तकनीकी स्वीकृति में मात्राओं के आधार पर कार्य संपादित किया जा सकेगा। जो मात्राएं बढाई जाना जरूरी हो, वह केवल प्रशासकीय स्वीकृति के मूल प्रावधानों के अनुसार किए जाने वाले कार्यों हेतु मान्य होगी। ठेके की अनुबंधित लागत कॉन्ट्रेक्ट प्राइस से 5 प्रतिशत अधिक की सीमा तक के सभी वेरिएशन संबंधित मुख्य अभियंता द्वारा स्वीकृत किए जा सकेंगे। इस संबंध में केवल यह अपवाद रहेगा कि कार्य पर अर्थवर्क की मात्रा में अनुबंधित बीओक्यू में दर्शाई मात्रा से 10 प्रतिशत से अधिक  की वृद्धि होने पर वेरिएशन प्रस्ताव मुख्य अभियता की अनुशंसा पर प्रमुख अभियंता स्तर से स्वीकृत किया जाएगा। स्वीकृति के बाद ही अतिरिक्त व्यय किया जा सकेगा।  सिविल कार्यों के लिए अनूपूरक सूची वेरिएशन स्वीकृत करते समय कार्य पर लगने वाले अन्य कार्य जैसे- भूमि अधिग्रहण मुआवजा, यूटिलिटी शिफ्टिंग का व्यय और अन्य किसी व्यय को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित किया जाए कि कार्य की पुनरीक्षित लागत 10 प्रतिशत की सीमा में हो।  ऐसे प्रकरणों में जहां अनुपूरक कार्यों वेरिएशन का समावेश करने पर अनुबंधित कार्य की लागत 5 प्रतिशत से अधिक बढ़ रही है, वहां मुख्य अभियता की अनुशंसा पर प्रमुख अभियंता द्वारा अनुपूरक कार्यों वेरिएशन की स्वीकृति प्रदान की जाएगी।  इन संशोधनों के मद्देनजर चेंज ऑफ स्कोप (परियोजना के शुरू होने के बाद उसमें परिवर्तन) बिना किसी तकनीकी कारण या स्थानीय मांग के कारण किया जाना पूर्णत: प्रतिबंधित किया जाता है। बिना पुनरीक्षित कराए ये कार्य मौके पर कराए जाने पर संबंधित अधिकारी उत्तरदायी होंगे एवं उन व्यय का निर्धारण किया जाएगा। जरूरत होने पर चेंज ऑफ स्कोप का अनुमोदन बनाकर सक्षम स्वीकृति प्राप्त करने के बाद ही किया जाए।
अपर मुख्य सचिव ने जताई आपत्ति
जानकारी के अनुसार इस तरह के मामले संज्ञान में आने पर अपर मुख्य सचिव लोक निर्माण विभाग नीरज मंडलोई ने कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने लोक निर्माण विभाग मैनुअल के अनुसार प्रशासकीय स्वीकृति से से ज्यादा की स्वीकृति दिए जाने संबंधी में पूर्व में जारी आदेश के कुछ बिंदु पूर्णत: निरस्त एवं विलोपित कर दिए हैं। साथ ही इसमें कुछ जरूरी संशोधन भी किए गए हैं। उन्होंने प्रमुख अभियंता, सभी मुख्य अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्रियों को परिपत्र जारी कर जरूरी निर्देश दिए हैं। अपर मुख्य सचिव नीरज मंडलोई की ओर से जारी परिपत्र में कहा गया है कि लोक निर्माण विभाग में विभिन्न स्तरों पर तैयार किए गए तकनीकी प्राक्कलन संपूर्ण सर्वेक्षण एवं मौके की स्थिति की वास्तविक गणना एवं जरूरत के अनुसार ही बनाए जाते हैं। प्राक्कलनों पर इन बिंदुओं के साथ कार्य के औचित्य एवं दरों और मात्रा के परीक्षण के बाद सक्षम अधिकारी द्वारा तकनीकी स्वीकृति दी जाती है। ऐसी स्थिति में सामान्यत: निर्माण के दौरान परियोजना में कोई मूलभूत परिवर्तन नहीं होना चाहिए।

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