निकाय बसें संचालित करने में पीछे हट रहे
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। अगस्त 2, 2021 को नगरीय विकास एवं आवास मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट को सुदृढ़ करने का निर्देश अफसरों को दिया था। उन्होंने कहा था कि इससे शहरों में प्रदूषण कम होने के साथ ही दुर्घटनाएं भी कम होंगी। लेकिन एक साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी आज तक परिवहन की सुविधा नहीं मिल पाई है। इसी वजह यह है कि निकायों के अफसर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे। गौरतलब है कि अमृत योजना में शुरू की गई सूत्र सेवा में प्राथमिक रूप से इंट्रा सिटी के लिए 70 और इंटर सिटी के लिए 30 का अनुपात निर्धारित किया गया था। अमृत योजना में प्रदेश को 258 करोड़ रूपए शहरी परिवहन के लिए मिले थे। लेकिन अफसरों की भरार्शाही के कारण उस फंड का सही से उपयोग नहीं किया जा सका है। इससे जनता को परिवहन की सुविधा नहीं मिल पा रही है। आलम यह है कि राजधानी भोपाल के ही अधिकांश क्षेत्र ऐसे हैं जहां सार्वजनिक परिवहन की कोई सुविधा नहीं है।
अमृत योजना से पहले मांगी थीं दो हजार बसें
नगरीय निकायों की उदासीनता के चलते जनता को मजबूत और पर्याप्त परिवहन व्यवस्था नहीं मिल पा रही है। निकाय बसें संचालित करने में पीछे हट रहे हैं, जबकि इन्हीं निकायों ने अमृत योजना लागू होने से पहले दो हजार बसें मांगी थीं। राजधानी भाजपा के क्षेत्र विस्तार के बाद भी नगर निगम ने करीब 125 बसें खरीदने से मना कर दिया है। निगम ने पहले 600 बसों की डिमांड की थी। इंदौर नगर निगम ने 400 बसें मांगी थीं। अब चार वर्ष में सिर्फ 175 बसें ही खरीद पाया है। जबलपुर ने 200 बसें मांगी थीं। खरीदीं लगभग 75 बसें। जानकारी के अनुसार बसों के जरिए निकायों को शहर की आउटर कॉलोनियों को मुख्य शहर से जोडऩा था। इसके अलावा उन क्षेत्रों में इन बसों को संचालित करना था जहां ट्रैफिक का दबाव ज्यादा है और शहरी परिवहन व्यवस्था थोड़ी कमजोर है। सरकार का फोकस बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, मुख्य बाजार हाट तक पहुंच सुविधा देना है।
मार्च 2023 में समाप्त हो जाएगी अमृत योजना
बताया जाता है कि सभी निकायों ने शहरी यातायात को बेहतर बनाने के लिए योजना से दो हजार बसें चलाने के संबंध में प्रस्ताव सरकार को दिया था। इसी के आधार पर उन्हें बसें स्वीकृत की गई थीं। पिछले तीन साल से निकाय बसें लेने से पीछे हट रहे हैं। पहले कोरोना की आड़ ली और फिर चुनाव की। निकाय अगर बसें खरीदते हैं तो उन्हें बस खरीदी लागत की दस फीसदी राशि तत्काल देनी होगी, जबकि निकायों की हालत काफी खराब है। निकायों के पास बिजली के बिल और कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे नहीं हैं। अमृत योजना मार्च 2023 में समाप्त हो जाएगी। इससे पहले स्वीकृत सभी परियोजनाएं निकायों को पूरा करनी होंगी। उन्हें बसें भी खरीदनी होंगी।
पीपीपी मोड पर चलाना हैं बसें
निकायों को इन बसों को पीपीपी मोड पर संचालित करना है। अमृत योजना से सरकार बसें खरीदकर उसे ऑपरेटरों के हवाले कर देगी। ऑपरेटर बसें संचालित करेंगे और जनता को सामान्य किराया वसूल कर परिवहन सुविधाएं उपलब्ध करना है। इस योजना में मिडी बसें खरीदना था। निकायों को ई व्हीकल, सीएनजी व्हीकल भी खरीदने की आजादी दी गई थी।