- प्रदेश में 2016 से सरकारी विभागों में प्रमोशन नहीं हो रहा …
भोपाल/हरीश फतेहचंदानी/बिच्छू डॉट कॉम। मध्य प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण के कारण लगातार पांच साल से पदोन्नति का इंतजार कर रहे राज्य के कर्मचारियों को अभी भी इंतजार ही है। यह इंतजार कब खत्म होगा यह कोई नहीं जानता। जिम्मेदार लोग सिर्फ बैठकों में व्यस्त हैं और भरोसा दिलाया जा रहा है कि सब ठीक होगा लेकिन, कर्मचारियों का सब्र अब टूटने लगा है क्योंकि प्रमोशन का इंतजार करते-करते 80,000 से ज्यादा कर्मचारी रिटायर हो चुके हैं और यह क्रम लगातार जारी है। उधर आईएएस, आईपीएस और आईएफएस की लगातार पदोन्नति हो रही है। ऐसे में कर्मचारी संगठनों का कहना है कि केवल कर्मचारियों और छोटे अधिकारियों पर ही पदोन्नति में आरक्षण का अड़गा क्यों लगाया जा रहा है। दरअसल, प्रदेश में पदोन्नति में आरक्षण का मामला इस कदर उलझ गया है कि उसका समाधान नहीं निकल पा रहा है। इसका असर कर्मचारियों पर पड़ रहा है। वहीं उच्च श्रेणी के अधिकारियों की स्थिति अलग है और इससे अन्य अधिकारी-कर्मचारी नाखुश हैं। दरअसल, साढ़े पांच साल से आईएएस, आईपीएस और आईएफएस को समय पर पदोन्नति मिल रही है और अन्य कर्मचारी मुंह ताक रहे हैं।
मंत्रियों की उपसमिति भी नहीं निकाल पाई हल
कर्मचारियों का आरोप है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों की पदोन्नति अप्रभावित रहने के कारण ही सशर्त पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल पा रहा है। रोक की वजह से अब तक करीब 80 हजार कर्मचारी बगैर पदोन्नति सेवानिवृत्त हो गए हैं। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ राज्य सरकार की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति (स्टेटस को) रखने का आदेश दिया है। पदोन्नति में आरक्षण के विवाद का हल निकालने मध्य प्रदेश सरकार ने मंत्रियों की उपसमिति बनाई है, जिसकी कुछ बैठकें हो गई है, लेकिन परिणाम अब तक नहीं आया है।
पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल रहा
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले शिवराज सरकार ने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु 60 से बढ़ाकर 62 साल कर दी थी। सरकार को उम्मीद थी कि इससे चुनाव में नुकसान भी नहीं होगा और तब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ जाएगा। लेकिन फैसला आने के बाद भी पदोन्नति का रास्ता नहीं निकल रहा है। वहीं गृह मंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा ने सबसे पहले पुलिस विभाग में उच्च पद का प्रभार देने की शुरुआत की। इससे बहुत से कर्मचारियों को राहत तो मिली लेकिन उन्हें आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहे हैं। वर्ष 2018 में भारत सरकार ने कर्मचारियों को सशर्त पदोन्नति देने का आदेश जारी किया था। इस पर राज्य सरकार नियम नहीं बना पाई।
पदोन्नति की दोहरी व्यवस्था
राज्य मंत्रालय कर्मचारी संघ के पूर्व अध्यक्ष सुधीर नायक का कहना है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों ने पदोन्नति की दोहरी व्यवस्था कर रखी है। उन्हें नियमित पदोन्नति तो प्राप्त होती ही है और निर्धारित समयावधि के बाद उच्चतर वेतनमान लेने का भी प्रविधान कर रखा है। इधर कर्मचारी संवर्ग दोनों तरह की व्यवस्थाओं से वंचित है। कर्मचारियों को भी निश्चित समय बाद उच्चतर पद और वेतनमान देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। मप्र कर्मचारी मंच के प्रदेशाध्यक्ष अशोक पांडे का कहना है कि सरकार को कर्मचारियों की चिंता नहीं है। वरना, कर्मचारियों को पदोन्नति को देने को लेकर कब का हल निकाल लिया जाता। सबसे ज्यादा नुकसान आरक्षित- अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों को हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट में मामला होने से कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ ही नहीं मिल पा रहा है। सरकार को चाहिए कि कर्मचारियों के हित में पदोन्नति मामले में जल्दी हल निकाले।