सरकार की सख्ती और हाईकोर्ट की फटकार भी बेअसर
भोपाल/रवि खरे/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में सरकार की सख्ती और हाईकोर्ट की फटकार के बाद भी निजी पैरामेडिकल कॉलेजों की मनमानी रूकने का नाम नहीं ले रही है। अभी जबलपुर के 19 पैरा मेडिकल कालेजों मेें स्कॉलरशिप घोटाले का मामला थमा भी नहीं है कि प्रदेश के 500 से ज्यादा निजी पैरामेडिकल कालेजों का 24 करोड़ रुपये का छात्रवृत्ति घोटाले का नया मामला सामने आ गया है। मामला वर्ष 2009 से 2014 के बीच का है। यह छात्रवृत्ति पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कीम (पीएमएसएस) के अंतर्गत ली गई। यह राशि भारत सरकार द्वारा एससी और एसटी वर्ग के विद्यार्थियों को दी जाती है। सरकार ने जनजातीय कार्य और अनुसूचित जाति कल्याण विभाग (पहले आदिम जाति कल्याण विभाग) को इसकी जांच सौंपी थी।
गौरतलब है की पूर्व में जब स्कॉलरशिप में घोटाले का मामला उजागर हुआ था तब 2015 में जांच के बाद विभाग ने संबंधित कालेजों से वसूली करने को कहा था, जो आज तक नहीं हो पाई है। इतना ही नहीं जिम्मेदार अधिकारियों पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। चिकित्सा शिक्षा विभाग की गड़बड़ी यह रही कि आदिम जाति कल्याण विभाग के निर्देश होने के बाद भी पैरामेडिकल संस्थानों में विद्यार्थियों की उपस्थिति के लिए बायोमैट्रिक उपस्थिति अनिवार्य नहीं की गई। ला स्टूडेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल का कहना है कि हमने अभी तक अलग-अलग विभागों से दस्तावेज प्राप्त किए हैं। इनके अनुसार करीब 24 करोड़ का घोटाला हुआ है, लेकिन वास्तविकता में सौ करोड़ रुपये से ज्यादा को घोटाला पैरामेडिकल कालेजों ने किया है। संबंधित कालेजों से इसकी वसूली की जानी चाहिए।
4 साल में 24 करोड़ का घोटाला
पैरा मेडिकल कालेजों मेें यह स्कॉलरशिप घोटाला 4 साल के दौरान हुआ है। जानकारी के अनुसार वर्ष 2010-11 से लेकर 2013-14 के बीच करीब 24 करोड़ का घोटाला हुआ है। 2010-11 में 3.48 करोड़, 2011-12 में 13.47 करोड़, 2012-13 में 3.63 करोड़ और 2013-14 में 3.37 करोड़ यानी कुल 23.95 करोड़ का यह घोटाला हुआ है। छात्रवृत्ति की ऐसी लूट मची कि कुछ विद्यार्थियों के नाम से एक ही वित्तीय वर्ष में समान या अलग-अलग चार से पांच संस्थानों में छात्रवृत्ति ली गई। उदाहरण के तौर पर वित्तीय वर्ष 2011-12 के लिए संजय भोपचे पिता बालचंद्र भोपचे को श्याम प्रभा पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट जबलपुर, बंसल इंस्टीट्यूट आफ पैरामेडिकल साइंस जबलपुर और महावीर इंस्टीट्यूट आफ पैरामेडिकल जबलपुर के लिए छात्रवृत्ति स्वीकृत की गई। सबसे ज्यादा गड़बड़ी जबलपुर में ही हुई हैं। यहां सौ से ज्यादा विद्यार्थियों के नाम से कम से दो से लेकर अधिकतम पांच संस्थानों से एक ही वर्ष में छात्रवृत्ति ली गई।
सुनियोजित तरीके से किया गया घोटाला
यह घोटाला बड़े ही सुनियोजित तरीके से किया गया है। जिलों में सहायक आयुक्त आदिम जाति कार्यालय ने छात्रवृत्ति के लिए आने वाले आवेदनों का भौतिक सत्यापन नहीं किया। कालेजों को संबंधित वर्ष की मान्यता प्रमाण पत्र लगाने के बाद ही अनुमति नहीं दी जानी थी, पर ऐसा नहीं किया गया। छात्रवृत्ति पोर्टल में इंस्टीट्यूट का नाम नहीं दिखाई देने पर भी भुगतान किया गया। उदाहरण के तौर पर बालाजी पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट ग्वालियर को इसी तरह से 20.94 लाख रुपये का भुगतान किया गया। आदिम जाति कल्याण विभाग ने कभी कोई आंतरिक आडिट नहीं कराया। संस्थाओं के पास पर्याप्त रिकॉर्ड नहीं होने पर भी छात्रवृत्ति दी गई। आदिम जाति कल्याण विभाग ने फरवरी 2014 में सभी पैरामेडिकल संस्थानों के लिए बायोमैट्रिक उपस्थिति अनिवार्य की थी, पर इस पर अमल नहीं हुआ। पूर्व विधायक किशोर समरीते का कहना है कि छात्रवृत्ति घोटाले की शिकायत मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय को की थी। वहां के डायरेक्टर रघुराम राजेंद्रन ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर इसकी जांच कराने के लिए कहा गया था, लेकिन अभी तक न जांच हुई, न आरोपितों के विरुद्ध कार्रवाई हुई।