
- मप्र के अस्पतालों में 10 साल से नहीं बढ़ा बजट
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र वाकई अजब है गजब है। यहां एक तरफ सरकार अस्पतालों को हाईटेक बनाने में जुटी हुई है, वहीं स्थिति यह है कि अस्पतालों में रोगियों के हर दिन भोजन और नाश्ते के लिए सरकार अभी मात्र 48 रुपये दे रही है।
पिछले 10 वर्ष में मंत्री, सांसद, विधायक, कर्मचारी और अधिकारियों में सभी के वेतन-भत्ते बढ़ गए, पर रोगियों के भोजन का बजट बढ़ाने में किसी ने रुचि नहीं ली। यह स्थिति इसलिए भी चर्चा का विषय बनी हुई है कि प्रदेश की जेलों में बंद कैदियों के भोजन पर सरकार प्रतिदिन 60 से 70 रुपये खर्च कर रही हैं। गोशालाओं में गायों की खुराक के लिए प्रतिदिन 40 रुपये मिल रहे हैं, पर रोगियों को दो-दो वक्त के नाश्ते और भोजन के लिए सरकार मात्र 48 रुपये ही दे रही है। हास्यास्पद यह भी है कि इतने बजट में उन्हें गुणवत्तायुक्त भोजन देने का दावा किया जाता है। विधानसभा के बजट सत्र में विपक्ष ने भ्रष्टाचार, गरीबी, बेरोजगारी और अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के मुद्दे उठाए, पर उन रोगियों का दर्द नहीं समझा। जिन्हें डाक्टर अच्छी खुराक लेने का परामर्श देते हैं, जिससे उन्हें स्वस्थ होने में मदद मिले।
सरकारी कर्मचारी हों या आउटसोर्स उनके वेतन-भत्ते को भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ा जा रहा है, लेकिन रोगियों के भोजन के बजट पर किसी को चिंता नहीं है। एम्स में 150 रुपये प्रतिदिन का बजट है, जिससे गुणवत्ता बेहतर है। इस मामले में विभाग के अधिकारियों और पूर्व मंत्रियों ने भी रुचि नहीं दिखाई। यही कारण है कि वर्ष 2014 के बाद से भोजन का बजट जस का तस है, जबकि महंगाई कई गुना बढ़ गई है। गर्भवती महिलाओं के लिए 40 रुपये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) से अतिरिक्त मिल रहा है। इस तरह उनका भोजन और नाश्ते पर हर दिन का बजट 88 रुपये हो गया है। उल्लेखनीय है रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रखने के लिए पर्याप्त पोषण तत्वों वाले भोजन की आवश्यकता होती है।
2014 के बाद नहीं बढ़ा बजट
वर्ष 2014 में बजट मात्र आठ रुपये बढ़ाया गया था, उसके बाद से बढ़ोतरी नहीं हुई। तेल, दाल, आटा सहित अन्य खाद्य पदार्थों की महंगाई पिछले 10 वर्ष में दो से तीन गुना तक बढ़ चुकी है। स्वास्थ्य संचालनालय की ओर से इसे बढ़ाकर सौ रुपये करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, पर स्वीकृति नहीं मिली है। सरकार बड़े-बड़े निर्णय पल भर में ले लेती है, पर इतने महत्वपूर्ण विषय पर रुचि नहीं दिख रही है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग पिछले एक वर्ष से खुराके की राशि बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार करने की बात कर रहा है, पर यह तैयारी तक ही रह गया। एम्स भोपाल में प्रति रोगी प्रतिदिन 150 रुपये नाश्ता और भोजन पर खर्च किए जा रहे हैं। इसे समझा जा सकता है कि इस मुद्दे पर सरकार और विभाग के अधिकारी कितने संवेदनशील हैं। वित्त विभाग बजट 48 रुपये से बढ़ाकर 100 रुपये करने को तैयार नहीं है। उधर, चिकित्सा शिक्षा विभाग ने अपने अस्पतालों के लिए राशि 200 करने का प्रस्ताव भेजा था, पर इस पर भी अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है। अब दोनों विभाग एक होने के बाद प्रति रोगी हर दिन का बजट लगभग 20 रुपये बढ़ाकर समान ही रखा जाएगा।
माननीयों और अधिकारियों के वेतन-भत्ते बढ़े
अधिकारियों ने बताया नए सिरे प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाएगा। पिछले 10 वर्ष में मंत्री, सांसद, विधायक, कर्मचारी और अधिकारियों में सभी के वेतन-भत्ते बढ़ गए, पर रोगियों के भोजन का बजट बढ़ाने में संबंधित विभागों के मंत्रियों ने रुचि ली न ही अधिकारियों ने। 48 रुपये में प्रतिदिन के बजट में किस गुणवत्ता का नाश्ता और भोजन मिलता होगा यह सोचने का विषय है, पर विभाग के अधिकारी इतने में भी अच्छा खाना खिलाने का दावा कर रहे हैं। एम्स भोपाल में एक रोगी के भोजन और नाश्ते पर प्रतिदिन डेढ़ सौ रुपये खर्च किया जाता है। वहीं गर्भवती महिलाओं और प्रसूताओं के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की ओर से 40 रुपये प्रतिदिन अतिरिक्त दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ में तीन गुना से ज्यादा बजट…: 2007 में हमीदिया का बजट 20 रुपए रोज से बढ़ाकर 40 रुपए किया गया था। 2014 में 40 से बढ़ाकर 48 रुपए किया गया। इसके बाद से कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। हमारे पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में मरीजों को दिए जाने वाले खाने पर सरकार 150 रुपए रोज खर्च करती है। गर्भवती महिलाओं के लिए 10 रुपए अतिरिक्त यानी 160 रुपए रोजाना बजट है। जो मध्यप्रदेश के मुकाबले तीन गुना से भी ज्यादा है।