करोड़ों के घोटाले में बाबुओं को बर्खास्त कर, अधिकारियों को बचाने की तैयारी

घोटाले
  • परियोजना अधिकारी और बाबू सूची बदलकर कम्प्यूटर  ऑपरेटर, चपरासी और दोस्तों के बैंक खातों में राशि डलवा देते थे…

    भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश के महिला एवं बाल विकास विभाग का भ्रष्टाचार से गहरा और पुराना नाता है। यहां अधिकारियों से लेकर लिपिक, कम्प्यूटर  ऑपरेटर और चपरासी तक गड़बड़ियों में लिप्त पाए गए हैं।
    सूत्रों की माने तो घोटाले बड़े अधिकारियों की सहमति और मिलीभगत से ही होते हैं। विभाग में कई जिलों में लगभग बारह करोड़ से ज्यादा का मानदेय घोटाला उजागर हुआ है। वहीं विभाग के आला अफसर सिर्फ लिपिक वर्ग पर कार्रवाई कर, घोटाले में फंसे बाल विकास परियोजना अधिकारियों को बचाने में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि यह मामला वर्ष 2017 में सामने आया था। सबसे पहले भोपाल जिले के आठ महिला एवं बाल विकास की परियोजनाओं में घोटाला उजागर हुआ था। तब जिला कोषालय ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका को दिए जाने वाले मानदेय के बिलों पर आपत्ति की थी। इसके बाद जांच शुरू हुई और मामले की परतें खुलती चली गईं। शुरूआत में बीस से पच्चीस लाख रुपए की गड़बड़ी ही सामने आ रही थी।
    लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी घोटाले की राशि और बढ़ती गई। अंत में अकेले भोपाल में ही लगभग चार करोड़ का घोटाला सामने आया। इसके बाद कटनी, मुरैना, विदिशा, रायसेन, बालाघाट और जबलपुर में भी गड़बड़ी सामने आई। प्रारंभिक जांच में घोटाला की राशि 12 करोड़ से भी ज्यादा हो गई। वहीं जांच में संबंधित अधिकारियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत मिलने के बाद भी महिला एवं बाल विकास विभाग के तत्कालीन मंत्री अर्चना चिटनीस के निर्देश पर सभी को निलंबित कर दिया गया था।
    उच्च स्तरीय जांच में पकड़ी गई गड़बड़ी
    दिलचस्प है कि जब इस मामले की जांच विभाग की तत्कालीन संचालक पुष्पलता सिंह ने शुरू कराई तो गड़बड़ी पकड़ में नहीं आई। एक माह के बाद भी चार जांचों में कोई खुलासा नहीं हुआ लेकिन जब पांचवीं बार उच्च स्तरीय जांच की गई जिसमें अपर संचालक, संयुक्त संचालक, वित्त सलाहकार सहित अन्य अधिकारियों की टीम ने जांच की तो पता चला कि यह घोटाला तो वर्ष 2014 से लगातार हो रहा था।
    विभागीय जांच में लगाया चार साल का लंबा समय
    उल्लेखनीय है कि घोटाले में फंसे भोपाल के आठ महिला एवं बाल विकास अधिकारियों को बचाने की पूरी कोशिश की जा रही है। यही वजह है कि मामले में पुलिस ने क्या कार्रवाई की इस तक रिपोर्ट महिला एवं बाल विकास विभाग ने नहीं ली है। वहीं विभाग ने संबंधितों की विभागीय जांच में भी चार साल लगा दिए। यही नहीं विभाग ने संबंधितों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस की आगे की कार्रवाई की जानकारी तक नहीं मांगी। जबकि मामले में पांच लिपिकों को बर्खास्त किया गया है। यह अधिकारी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एवं सहायिकाओं के लिए दोहरा मानदेय जारी करने के मामले में फंसे हैं।
    घोटाले को इस तरह देते थे अंजाम
    विभाग में अधिकारियों, बाबुओं और कम्प्यूटर आॅपरेटर्स के बीच बाकायदा नेक्सस बनाकर काम होता रहा। इनके पास आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका के नाम से बैंक खाते हैं। इन खातों में हर माह मानदेय की राशि डाली जाती है। पहली बार सही व्यक्ति के खाते में राशि जाती थी जबकि उसी महीने का बिल दूसरी बार तैयार होता था और फर्जीवाड़ा करने वाले परियोजना अधिकारी और बाबू सूची बदलकर कम्प्यूटर आॅपरेटर, चपरासी और दोस्तों के बैंक खातों में राशि डलवा देते थे। बाद में इस राशि को सभी मिलकर आपस में बांट लेते थे।

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