प्रदेश में फिर पंचायत चुनाव की तैयारियां शुरू, चुनाव आयोग हुआ सक्रिय

पंचायत चुनाव
  • ग्वालियर बेंच ने फैसला दिया था कि संविधान के अनुसार रोटेशन के आधार पर ही चुनाव कराए जाएं…

    भोपाल/राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। 
    मध्य प्रदेश ऐसा राज्य है जिसमें निकाय चुनावों से लेकर पंचायत तक के चुनाव बीते एक साल से अधिक समय से अटके हुए हैं। हालत यह है कि राज्य का चुनाव आयोग सक्रिय होता है, लेकिन सरकार की सलाह के बाद वह इन मामलों में हाथ पीछे खींच लेता है। हालत यह है कि इसकी वजह से प्रदेश में तमाम तरह के चुनाव ही नहीं हो पा रहे हैं।
    इसकी वजह से संस्थानों में अफसरों का कब्जा है और तमाम नेता जनप्रतिनिधि बनने की राह देखने को मजबूर बने हुए हैं। यही वजह है कि निकायों, पंचायतों और मंडी समितियों तक के चुनाव अटके हुए हैं। अब एक बार फिर से राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रदेश में पंचायत चुनावों को लेकर सक्रियता दिखाना शुरू कर दी है। इसके तहत अब आयोग ने प्रदेश में जिला पंचायत (जिपं) अध्यक्षों के आरक्षण को लेकर सरकार को पत्र लिखा है। प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के तहत 52 जिला पंचायत अध्यक्षों के चुनाव होने हैं। जिला पंचायत के आरक्षण को लेकर प्रदेश में बीते एक साल से तैयारी की जा रही है। इसके बाद भी यह काम अब तक पूरा नहीं हो पाया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पंचायत चुनावों के लिए अधिसूचना दो माह बाद अक्टूबर में जारी होने की संभावना जताई जा रही है। गौरतलब है कि मप्र राज्य निर्वाचन आयोग ने बीते साल भी अक्टूबर में स्थानीय चुनाव की प्रक्रिया शुरू कर दी थी, लेकिन इस बीच सरकार ने कोरोना का हवाला देते इसे टालने के लिए आयोग से सिफारिश कर दी थी , जिसकी वजह से आयोग ने चुनावी तैयारियों को रोक दिया था।
    अब प्रदेश में कोरोना का लगभग समाप्त हो चुका है। इस वजह से एक बार फिर से आयोग ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। आयोग इन चुनावों को मतदाता सूची एक जनवरी-2021 के आधार पर कराने की तैयारी कर रहा है। फिलहाल कोरोना की तीसरी लहर पर निर्भर है कि प्रदेश में यह चुनाव कब कराए जाएंगे।
    निकाय चुनावों के लिए किया जा रहा है सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार
    निकाय चुनावों को लेकर हाईकोर्ट ग्वालियर का एक फैसला आड़े आ रहा है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। इसकी वजह से यह चुनाव अटका हुआ है। दरअसल हाईकोर्ट कोर्ट ने एक याचिका पर फैसला दिया है कि निकायों में आरक्षण रोटेशन के आधार पर हो, जबकि प्रदेश सरकार हमेशा से जनसंख्या के आधार पर महापौर, अध्यक्ष सहित अन्य पदों के लिए जातिगत आरक्षण करती आ रही है। इसे लेकर कई संगठनों ने कोर्ट में याचिका लगाई थी, जिसमें ग्वालियर बेंच ने इसमें यह फैसला दिया था कि संविधान के अनुसार रोटेशन के आधार पर ही चुनाव कराए जाएं। इसे लेकर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है। जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं हो जाता है तब तक निकायों में चुनाव नहीं होंगे।
    जनपद पंचायतों में आरक्षण पूरा  
    जनपद पंचायतों में अध्यक्षों, सदस्यों तथा सरपंच, पंचों के आरक्षण की प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है। इनके चुनाव पूर्व में किए गए आरक्षण के आधार पर ही कराए जाएंगे। इसकी जानकारी प्रदेश सरकार द्वारा राज्य निर्वाचन आयोग को पांच माह पहले ही दे गई है। इसकी वजह से अब पंचायतों में चुनाव इसी आरक्षण के आधार पर कराए जाएंगे।

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