तैयारी शून्य… अधर में लटक सकते हैं चुनाव

चुनाव
  • सहकारी समितियों के चुनावी कार्यक्रम तय

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद मप्र में तकरीबन 12 साल बाद सहकारी समितियों के चुनाव कराने की घोषणा हुई है। सरकार ने चुनावी कार्यक्रम भी तय कर दिए गए हैं। लेकिन अभी तक चुनावी तैयारी शून्य है। अभी तक सदस्यता भी पूरी नहीं हो पाई है। ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा है कि एक बार फिर सहकारी समितियों के चुनाव अधर में लटक सकते हैं। हालांकि अपर मुख्य सचिव सहकारिता अशोक वर्णवाल का कहना है कि  हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सहकारी समितियों का चुनाव कराने के लिए हम बाध्य हैं। हमारी तैयारी चल रही है, जैसे ही तैयारी पूरी हो जाएगी, उसी तारीख पर चुनाव करा लिया जाएगा।  प्रदेश में अभी तक की जो स्थिति नजर आ रही है उससे लग रहा है कि 4,553 सहकारी समितियों का चुनाव अभी नहीं हो पाएगा। गौरतलब है कि हाईकोर्ट की सख्ती के बाद राज्य सरकार ने 24 मार्च की पांच चरणों में चुनाव कराने का कार्यक्रम जारी किया है। यह चुनाव एक मई से 4 सितंबर तक होना है। पर तैयारी के नाम पर अभी तक में कुछ नहीं हुआ है। मेंबरशिप भी अब तक पूरी नहीं करा पाए। दूसरी तरफ, मप्र सरकार केंद्र सरकार के सहकार योजना के पुर्नगठन स्कीम की बांट जोह रही है। हाईकोर्ट में भी वहीं दलील देने की तैयारी है कि पुनर्गठन प्रक्रिया पूरी होने से पहले चुनाव कराना संभव नहीं है। ऐसे में 2025 में चुनाव करा पाना बेहद मुश्किल है।
बार-बार टलते रहे चुनाव
प्रदेश की सहकारी समितियों में पिछले 12 साल से चुनाव नहीं हुए हैं। जबकि एक्ट में साफ लिखा है कि चुनी हुई समितियों का कार्यकाल 5 वर्ष ही होगा। किंतु सरकार ने 2017 में चुनाव के बजाय प्रशासक की नियुक्ति कर दी। इसमें भी धांधली की शिकायतें हुई थी, किंतु मामला दब गया। 2018 में विधानसभा चुनाव होने से चुनाव टाल दिए गए थे।
जब कांग्रेस की सरकार आई तो उसने भी चुनाव कराने की जहमत नहीं उठाई। सवा साल बाद वह सरकार भी गिर गई और इसके बाद कोरोना व अन्य कारणों से चुनाव टलता रहा। यह मामला अभी हाईकोर्ट में उठा तो कोर्ट ने सरकार से चुनाव कराने तथा कार्यक्रम जारी करने का सख्त निर्देश दिए । सरकार ने भी उसी अंदाज में चुनाव कार्यक्रम जारी करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया। इस बीच केन्द्र सरकार ने देश के सभी राज्यों से कहा कि उनके यहां चूंकि संख्या के अनुपात में सोसायटियों की संख्या कम है, ऐसे में इसका पुर्नगठन कराएं। मप्र सरकार को इस स्कीम का बहाना मिल गया। इस पुर्नगठन के लिए तीन महीने का समय तय किया गया है। इस पुर्नगठन के बाद प्रदेश में समितियों की संख्या बढक़र करीब 12 हजार हो जाएगी। दरअसल, प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सेसायटी बनना है, अभी कई-कई पचायतों को मिलाकर सोसायटी है। दिलचस्प यह है कि इस पुर्नगठन स्कीम की वजह से 2025 में चुनाव हो पाना मुश्किल है।
सहकारिता का पूरा सिस्टम ठप्प पड़ा
गौरतलब है कि प्रदेश की सहकारी समितियों में चुनाव नहीं होने की वजह से सहकारिता का पूरा सिस्टम ही ठप्प पड़ गया है। समितियों में किसानों से जुड़ी गतिविधियों के नाम पर महज खानापूर्ति हो रही है। बताते हैं कि प्रशासक उन सोसाटियों में जमकर मनमानी करते हैं, पर पंचायत का कोई प्रतिनिधि नहीं होने से वे कुछ नहीं कर पाते। सहकारिता विभाग में ही हजारों की संख्या में शिकायतें लंबित है। राजनैतिक हस्तक्षेप की वजह से कार्रवाई तो दूर उन शिकायतों की जांच ही नहीं हो पाती। सरकार की जिम्मेदारी का अहसास इससे से किया जा सकता है कि साल पहले 2012 में समितियों के चुनाव हुए थे , लेकिन  तब से लेकर आज तक फिर चुनाव ही नहीं हुए। समितियों में इस वक्त मेंबरशिप भी नहीं है। सबसे पहले नियमोंं के अनुसार समितियों में मेंबर बनते हंै। इसके लिए एक मापदंड तय है कि अमुक किसान को ही सदस्य बनाया जा सकता है। यदि अभी मेंबरशिप की प्रक्रिया शुरू होती है तो कम से कम 60 दिन का समय लगना तय है। चूंकि पहले समितियां मेंबरशिप की सूची देती हैं। फिर उसका प्रकाशन होता है। इसके बाद रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की नियुक्ति होती है। मेंबरशिप का प्रकाशन स्थानीय स्तर पर होता है। इसके बाद यदि सदस्य संतुष्ट नहीं हैं तो अपीलीय अधिकारी नियुक्त कर उसका निराकरण कराया जाता है। अपीलीय अधिकारी की ओर से फाइनल सूची का प्रकाशन होता है। इसके बाद ही चुनाव आदि कराया जा सकता है।

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