मोहन की निगरानी में… सिंहस्थ की तैयारी

  • निर्माण कार्यों से लेकर भीड़ प्रबंधन की बनेगी सुव्यवस्थित रणनीति…
  • गौरव चौहान

बारह बरस में एक बार होने वाले महाकाल के दरबार के बड़े आयोजन सिंहस्थ की तैयारियां मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव खुद संभालेंगे। इसके लिए एक कैबिनेट कमेटी बनाई जाएगी। इन तैयारियों के बीच नमामी क्षिप्रा प्रोजेक्ट भी जल्दी ही शुरू किया जाएगा। चूंकि, डॉ. मोहन उज्जैन से ही हैं, इस वजह से महाकाल लोक से लेकर सिंहस्थ कामों तक में उनकी गहरी रुचि और अहम भूमिका रही है। इसी के चलते उन्होंने इन सारी व्यवस्थाओं को अपने हाथों में रखने का निर्णय लिया है। सिंहस्थ को लेकर अभी तक कार्ययोजना में 18 हजार 840 करोड़ की लागत से 523 कार्य प्रस्तावित किए जा चुके हैं, इनमें अधिकतर स्थायी प्रवृत्ति के कार्य हैं, जिनका लाभ सिंहस्थ के बाद भी मिलेगा। प्रशासन सिंहस्थ- 2028 में 14 करोड़ श्रद्धालुओं के आने का आंकलन कर रहा है। यह आंकड़ा सिंहस्थ-16 से लगभग दोगुना है। सिंहस्थ महाकुंभ 27 मार्च से शुरू होगा। सिंहस्थ में 27 मई तक तीन शाही स्नान होंगे। राज्य सरकार ने चार साल बाद यानी वर्ष 2028 में उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ की तैयारियां तेज कर दी हैं। वर्ष 2028 में ही प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे। सिंहस्थ का आयोजन मार्च से मई के बीच होगा और उसके करीब छह महीने बाद यानी नवंबर में विधानसभा चुनाव होंगे। सरकार नहीं चाहती कि जिस तरह 2016 में सिंहस्थ में निर्माण कार्यों और खरीदी में गड़बड़ी के आरोपों से सरकार की बदनामी हुई थी, वैसी किसी प्रकार की अनियमितता सिंहस्थ- 2028 के आयोजन में न हो। इसकी वजह है सरकार विपक्ष को चुनाव से पूर्व कोई मौका नहीं देना चाहती है। यही वजह है कि पूर्व की तरह इस बार किसी मंत्री विशेष को सिंहस्थ के आयोजन की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाएगी। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सिंहस्थ के आयोजन की मुख्य कमान अपने हाथ में रखेंगे। इसके लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में जल्द ही मंत्रियों की एक कमेटी गठित की जाएगी। उधर, वरिष्ठ अधिकारियों की टीम उप्र पहुंचकर 28 मई से प्रयागराज कुंभ-2025 की तैयारियों का अवलोकन करेगी।
बजट में राशि का प्रावधान
सिंहस्थ-2028 के मद्देनजर उज्जैन में होने वाले बड़े विकास कार्यों के लिए जुलाई में पेश होने वाले मप्र सरकार के बजट में राशि का प्रावधान किया जाएगा, ताकि इन कार्यों में बजट के अभाव में किसी तरह की रुकावट नहीं आए। मुख्यमंत्री के निर्देश पर वित्त अधिकारियों ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। दरअसल, वर्ष 2016 के उज्जैन सिंहस्थ का प्रभार तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने तत्कालीन गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह को सौंपा थी। सिंहस्थ के समापन के बाद मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने सिंहस्थ के निर्माण कार्यों और खरीदी में हुए फर्जीवाड़े को जोर-शोर से विधानसभा में उठाया था। कांग्रेस ने सदन में तथ्य प्रस्तुत करते हुए कई तरह की गड़बडिय़ों के आरोप सरकार पर लगाए थे। इससे सरकार की किरकिरी हुई थी। विधानसभा चुनाव 2018 तक कांग्रेस ने इस मद्दे को गरमाए रखा। इसके बाद उज्जैन में महाकाल लोक के निर्माण कार्यों में हुई अनियमितता के आरोपों से सरकार की बदनामी हुई थी। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव उज्जैन से आते हैं और वे महाकाल के भक्त हैं। वे नहीं चाहते कि सिंहस्थ के आयोजन में कोई कमी रह जाए या फिर आयोजन के बाद किसी तरह की अनियमितता के आरोप सरकार पर लगें, इसलिए मुख्यमंत्री स्वयं सिंहस्थ का आयोजन देखेंगे। वहीं मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारियों को अलग-अलग संभागों का प्रभारी बनाया है। उज्जैन संभाग का प्रभार तेजतर्रार अधिकारी अपर मुख्य सचिव जल संसाधन डॉ. राजेश राजौरा को सौंपा गया है। उन्हें उज्जैन संभाग का प्रभार सौंपने की मुख्य वजह सिंहस्थ का आयोजन है। डॉ. राजौरा लगातार उज्जैन का दौरा कर संभाग के अफसरों के साथ सिंहस्थ की तैयारियों की समीक्षा कर रहे हैं। वे मुख्यमंत्री को समय-समय पर सिंहस्थ की तैयारियों से अवगत कराते रहते हैं।
सिंहस्थ अधिनियम में बदलाव की तैयारी…
मप्र सरकार सिंहस्थ अधिनियम- 1955 में बदलाव करने जा रही है। इसमें 17 की जगह 40 धाराएं होंगी। इसके तहत सिंहस्थ मेला क्षेत्र में भूमि प्रबंधन, आवंटन, मेला शुल्क, सुरक्षा, आवागमन से लेकर सभी सुविधाएं दी जाती है। अधिनियम में बदलाव की सबसे बड़ी वजह सिंहस्थ के स्वरूप में पिछले 70 सालों में बदलाव को माना जा रहा है। प्रत्येक 12 वर्ष में सिंहस्थ का आयोजन होता है, इसमें करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु क्षिप्रा में स्नान कर दर्शन पूजन करते हैं। श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या के बावजूद अधिनियम में कोई बदलाव नहीं हुआ था। पिछले सात दशकों में सिंहस्थ महाकुंभ का स्वरूप और आयोजन काफी बदल चुका है। 1950 के दशक में यह आयोजन साधारण और पारंपरिक तरीकों से किया जाता था, जिसमें सीमित संख्या में श्रद्धालु आते थे। परंतु समय के साथ-साथ इसमें काफी बदलाव हुए। इस मेले का आयोजन ज्योतिषीय गणना के अनुसार, सिंह राशि में गुरु के प्रवेश पर किया जाता है। इसे पवित्र नदी क्षिप्रा के तट पर आयोजित किया जाता है। इसे चार प्रमुख कुंभ मेलों में से एक माना जाता है। सरकार ने वर्तमान समय की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मध्य भारत सिंहस्थ मेला एक्ट-1955 में संशोधन करने का निर्णय लिया है। यह संशोधन संभावित है। मेले में यातायात प्रबंधन, स्वच्छता, सुरक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं को आधुनिक बनाया जाएगा। क्षिप्रा नदी और मेले के आसपास के क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण के लिए सख्त नियम लागू होंगे। आर्थिक प्रबंधन के तौर पर सिंहस्थ में फंडिंग, खर्च और राजस्व की पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जाएगा। यह भी होगा कि इस मेला क्षेत्र को सुरक्षित रखा जाए।
भीड़ प्रबंधन पर विशेष जोर
भीड़ में खासा वृद्धि हो चुकी है। पहले जहां लाखों श्रद्धालु आते थे, वहीं अब करोड़ों श्रद्धालु इस आयोजन में भाग लेते हैं। आधुनिक यातायात व्यवस्था, संचार, चिकित्सा और स्वच्छता सुविधाओं का विस्तार हुआ है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अस्थाई अस्पताल, पुलिस नियंत्रण कक्ष और स्वच्छता अभियान चलाए जाते हैं। सिंहस्थ का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाता है. जिससे देश-विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं। डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से इसकी जानकारी व्यापक रूप से फैलाई जाती है। मप्र के गठन से पहले सिंहस्थ को सकुशल कराने मध्य भारत सिंहस्थ मेला अधिनियम-1955 बना था। इतने सालों से इसी अधिनियम के आधार पर मेले का संचालन हो रहा है। उस वक्त सिंहस्थ मेले में कम संख्या में श्रद्धालु आते थे। समय के अनुसार, अधिनियम में साइकिल, तांगा से लेकर बर्फ के गोले की बिक्री आदि पर मेला शुल्क लगाया जाता था। अब यह पूरी तरह से अप्रासंगिक हो चुका है, लेकिन शुल्क के जरिए प्रबंधन पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है। सरकार चाहती है कि इस अधिनियम में बदलाव कर मौजूदा समय के हिसाब से प्रबंधन हो। सरकार के मुताबिक, अभी मेला क्षेत्र करीब 3 हजार हेक्टेयर का है। पिछली बार इसमें से करीब 23 फीसदी क्षेत्र खाली रह गया था। ऐसे में माना जा रहा है कि वर्ष 2040 तक में यह क्षेत्र भर जाएगा। मेला क्षेत्र में आने वाले वाहनों, दुकानों आदि से एक निश्चित शुल्क लिया जाएगा। अभी अधिनियम का ड्राफ्ट तैयार कर आम लोगों से सुझाव लिएं जाएंगे। इस सुझाव के आधार पर एक्ट तैयार कर उसे संभवत दिसंबर में होने वाले विधानसभा सत्र में पारित कराया जाएगा।

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