- अब तक किए गए प्रयोग रहे हैं फेल

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम
प्रदेश में चुनाव दर चुनाव हार का सामना कर रही कांग्रेस ने अब अपने संगठन में बड़े फेरबदल करने की तैयारी कर ली है। मैदानी स्तर पर अब तक जिले से लेकर विधानसभा क्षेत्र तक में पार्टी के पुराने छत्रपों का बोलबाला है, लेकिन अब उन्हें दरकिनार कर पार्टी अपने नए प्रभारी तैनात करेगी, जिनके पास संगठन के वे सभी अधिकार होंगे, जो अब तक प्रदेश संगठन के पास रहते आए हैं। योजना के तहत हर जिले में पार्टी एक प्रभारी की नियुक्ति करेगी। यह प्रभारी पार्टी के हर काम के लिए जिम्मेदार होगा, फिर चाहे चुनाव हो या फिर संगठन का कोई काम। इसे नियुक्ति करने से लेकर बर्खास्तगी तक का अधिकार होगा। इसी तरह से प्रभारी विभिन्न चुनावों के प्रत्याशी चयन में भी बेहद अहम रोल अदा करेगा। दरअसल, इन दिनों कांग्रेस में केन्द्रीय स्तर पर पार्टी को मजबूत करने और चुनाव में जीत हासिल करने को लेकर लगातार बैठकें कर मंथन का दौर चल रहा है। इसी क्रम में मप्र के संगठन को लेकर भी चर्चा हो चुकी है। इसमें कई नए -नए सुझाव सामने आए हैं। बैठक में तय हुआ कि मप्र और गुजरात जैसे भाजपा के बेहद मजबूत बन चुके किलों में कि जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में जिला नेतृत्व को मजबूत करने का फैसला किया गया है, जिससे पार्टी को अच्छी स्थिति में पहुंचाया जा सके। यह बात अलग है कि प्रदेश में कांग्रेस द्वारा समय-समय पर कई तरह के प्रयोग किए गए हैं, लेकिन पार्टी को उनमें सफलता नहीं मिल सकी है। इसकी वजह है प्रदेश कांग्रेस के नेताओं में गुटबाजी होना। पार्टी के बड़े नेता अपने इलाकों में संगठन के महत्वपूर्ण पदों पर अपनी पसंद के लोगों को ही बिठाना पसंद करते हैं, जिससे दूसरे गुट के नेता भितरघात करने में पीछे नहीं रहते हैं। अगर वास्तव में पार्टी को मजबूत करना है तो सबसे पहले गुटबाजी समाप्त करने के लिए कदम उठाना जरूरी है।
सभी मिलकर करेंगे पार्टी को मजबूत
इस बदलाव पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कहा, हम पार्टी संगठन को मजबूत करना चाहते हैं और यह काम सभी को मिलकर करना होगा। जिले में उन्हीं नेताओं को जिम्मेदारी दी जाएगी, जिनमें समन्वय और संगठनात्मक क्षमता होगी।
लोकप्रिय नेताओं का अभाव
प्रदेश में एक समय कांग्रेस की स्थिति मौजूदा भाजपा जैसी रही है। इसकी वजह थी, कांग्रेस में अर्जुन सिंह, मोतीलाल वोरा, श्यामाचरण शुक्ल और माधवराव सिंधिया जैसे नेताओं का होना। इन नेताओं का अपने अपने इलाकों में बेहद प्रभाव था , जिसकी वजह से पार्टी मजबूत स्थिति में बनी रहती थी। इन नेताओं के बाद यह जिम्मा कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने उठाया, लेकिन अब सिंधिया कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ चुके हैं और कमलनाथ-दिग्विजय चुनाव जिताने में असफल साबित हो रहे हैं। फिलहाल जीतू पटवारी और उमंग सिंघार जैसे नेता पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन इन्हें क्षत्रप नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी अपेक्षित प्रदर्शन ही नहीं पा रहे हैं। पटवारी तो खुद ही विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं। यही वजह है कि कांग्रेस को नए सिरे से रणनीति बनाकर उस पर अमल करना पड़ रहा है।
भाजपा की बड़ी चुनौती
भाजपा कार्यकर्ताओं के मजबूत संगठनात्मक ढांचे के दम पर लगातार चुनाव जीत रही है। कांग्रेस इसी रणनीति से मुकाबले के लिए हर जिले में एक नेता को पूर्ण अधिकार देने की योजना बना रही है। पार्टी के 1046 ब्लॉक और उपब्लॉक प्रभारियों की तैनाती से पहले जिला प्रमुख नियुक्त किए जाएंगे। हालांकि, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि जिला प्रमुख और जिलाध्यक्ष एक ही व्यक्ति होगा या अलग-अलग, लेकिन यह तय है कि जिला प्रमुख को सबसे ज्यादा अधिकार प्राप्त होंगे।