छह अरब खर्च करने के बाद भी बढ़ गया प्रदूषण

प्रदूषण

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। ज्यों-ज्यों दवा दी मर्ज बढ़ता ही गया। यह कहावत पूरी तरह से प्रदूषण के मामले में मप्र में लागू होती है। इसकी वजह है प्रदेश में प्रदूषण की रोकथाम के लिए करीब छह अरब रुपए खर्च कर दिए गए , जिससे प्रदेश में प्रदूषण की स्थिति में सुधार तो नहीं आया , बल्कि वह पहले से अधिक हो गया है। इस मामले में शहरों में तो हालात बहुत ही खराब हैं। इसकी वजह से अब लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अहम बात यह है कि इसमें भोपाल का भी नाम शामिल है। भोपाल के कई इलाकों में तो वायु प्रदूषण की वजह से हालात बेहद गंभीर बने हुए हैं,  लेकिन प्रशासन फिर भी लापरवाह बना हुआ है। इस मामले में तो प्रदेश में केंद्र सरकार की मंशा पर भी पानी फेर दिया गया है। दरअसल केंद्र सरकार ने पांच साल पहले 2019 में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर सहित प्रदेश के सात शहरों में बढ़ते वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए 599.94 करोड़ का बजट दिया था। इसमें से अफसरों ने अपने हिसाब से 572.47 करोड़ खर्च भी कर डाले, लेकिन  किए। इसके बाद भी प्रदूषण घटने की बजाय बढ़ गया। हालत यह है कि भोपाल में 2018 में पीएम-10 का स्तर 112 था, जो कम होने की जगह बढक़र 124 हो गया। इसी तरह के हान अन्य शहरों के भी हैं। प्रदूषण कम होने की जगह बढ़ने की वजह से इतनी बड़ी रकम खर्च होने के बाद अफसरों की कार्यशैली सवालों के घेरे में है।
इन विभागों को यह करना था काम
 पर्यावरण विभाग को शहरों में प्रदूषण कम करने के प्रयासों की निगरानी करनी थी। नगरीय प्रशासन विभाग को गुणवत्तायुक्त सडक़ें, सडक़ों का पक्कीकरण, सडक़ किनारे पेवर ब्लॉक लगाने थे। धूल उड़े तो पानी का छिडक़ाव करना था। इसी तरह से लोक निर्माण को सडक़ों की गुणवत्ता रखनी थी, ताकि बार-बार सडक़ खराब न हो। परिवहन विभाग को ज्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहनों पर कार्रवाई करनी थी जबकि, कृषि विभाग को पराली जलाने पर नियंत्रण करना था।

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