विंध्य में कई दिग्गजों की सियासत दांव पर

दिग्गजों की सियासत
  • राजनैतिक पैंतरों में भी उलझती रही है हार-जीत

गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र का विंध्य अंचल ऐसा इलाका है, जहां पर राजनैतिक रुप से बेहद चौंकाने वाले परिणाम आते रहते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही होना तय माना जा रहा है। अगर ऐसा हुआ तो अंचल के कई दिग्गज नेताओं की सियासत अवसान के मुहाने पर पहुंच जाएगी। इसमें सबसे अहम जो नेता हैं, उनमें पूर्व नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह राहुल भैया भी शामिल हैं। वे चुरहट सीट से छह बार विधायक चुने जा चुके हैं। पिछले चुनाव में वे ऐसे समय हार गए थे, जब प्रदेश में संभावित कांग्रेस सरकार में उन्हें बड़ा पद मिलना लगभग तय था। बताया जा रहा है कि उनकी हार में भाजपा से अधिक उनके ही पार्टी के एक प्रभावशाली नेता ने बेहद अहम भूमिका निभाई थी। जब बीते चुनाव में प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल था, तब विंध्य अंचल के मतदाताओं ने भाजपा को दो तिहाई सीटें जिता दी थीं। दरअसल अंचल की कुल 30 सीटों में से भाजपा को 24 पर जीत मिली थी। इसके उलट कांग्रेस को महज आधा दर्जन सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। यह बात अलग है कि, उपचुनाव में रैंगाव सीट पर विजय मिलने से कांग्रेस की सीटों की संख्या बाद में बढक़र सात हो गई थी। यह वो अंचल है, जहां पर इस बार इलाके के दो सांसदों के साथ ही विधानसभा अध्यक्ष का सियासी भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है।
रीवा में हमनाम की चुनौती
कभी विंध्य की राजधानी रहे रीवा में भाजपा से चार बार के विधायक व पूर्व मंत्री राजेंद्र शुक्ला फिर मैदान मे हैं। वे अंचल के ब्राह्मण चेहरा भी हैं। अंचल में सत्ता की भागीदारी को लेकर उपजे असंतोष को थामने के लिए ही उन्हें चुनाव से 3 महीने पहले मंत्री बनाया गया था। उनके खिलाफ कांग्रेस ने अपने जिला अध्यक्ष राजेंद्र शर्मा को उतारा है। वह पहले भी चुनाव लड़ चुके हैं । यहां आमने-सामने की लड़ाई की स्थिति बन गई है। इसी तरह से भाजपा की प्रयोगशाला और नाना जी देशमुख की कार्यस्थली चित्रकूट में भाजपा 2008 में ही एक बार ही जीत पाई। एक केंद्रीय मंत्री की वजह से दो बार चुनाव हारने वाले सुरेंद्र सिंह गहरवार फिर मैदान में हैं। टिकट न मिलने पर भाजपा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य सुभाष शर्मा डोली बसपा से मैदान में हैं।
यहां कांग्रेस से मौजूदा विधायक नीलांशु चतुर्वेदी सामने हैं। देवतालाब सीट से विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम मैदान में है। गिरीश को सगे भतीजे और जिला पंचायत सदस्य कांग्रेस प्रत्याशी पद्मेश गौतम से कड़ी चुनौती मिल रही है। इस सीट पर सपा की सीमा जयवीर सिंह भी चुनौती की स्थिति में हैं। उधर, सतना के रामपुर बघेलान क्षेत्र से मप्र के पूर्व सीएम गोविंद नारायण सिंह के पोते विक्रम सिंह विधायक और भाजपा प्रत्याशी हैं। ब्राह्मण बहुल सीट होने के बावजूद यहां कभी भी ब्राह्मण विधायक नहीं बन सका। कांग्रेस ने ब्राह्मण समाज से रामशंकर प्यासी को उतारा है।
मैहर में बड़ा अखाड़ा
मैहर से भाजपा विधायक रहे नारायण त्रिपाठी ने अपनी विंध्य जनता पार्टी बना ली है। खुद मैहर से खड़े हैं और करीब दो दर्जन से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए हैं। सपा प्रदेश अध्यक्ष रहे नारायण पहले सपा से विधायक रहे हैं। बाद में 2013 में कांग्रेस से विधायक बने। 2018 में भाजपा से जीते। लेकिन विंध्य के मुद्दे को लेकर उनकी पार्टी से पटरी नहीं बैठी। भाजपा ने पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे श्रीकांत चतुर्वेदी को इस बार टिकट दे दिया। चुनाव से ठीक पहले मैहर को अलग जिला बनाया गया है। नारायण कई सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। अंचल की सिहावल सीट कांग्रेस के उभरते पिछड़े चेहरे मौजूदा विधायक और पूर्व मंत्री इंद्रजीत कुमार पटेल के बेटे कमलेश्वर के चुनाव लडऩे से चर्चा में है। पार्टी इन्हें पिछड़े चेहरे के रूप में आगे बढ़ा रही है। भाजपा ने पूर्व विधायक विश्वामित्र पाठक को उनके खिलाफ उतारा है। यहां ब्राह्मण के बाद पटेल मतदाता ही सबसे ज्यादा बताए जाते हैं।
शहडोल में आदिवासियों के बीच सीधी लड़ाई
संभाग की आठ सीटों में से कोतमा छोडक़र बाकी सात आदिवासियों (एसटी) के लिए सुरक्षित हैं। यहां की अनूपपुर सीट पर राज्य के खाद्य उपभोक्ता मामलों के मंत्री बिसाहूलाल सिंह व मानपुर में जनजातीय कल्याण मंत्री मीना सिंह एक बार फिर मैदान में हैं। छह बार के विधायक बिसाहूलाल के सामने कांग्रेस ने सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारी रमेश सिंह को मौका दिया है। यहां सीधी लड़ाई है।
गणेश के लिए बागी बने मुसीबत
सतना से भाजपा ने चार बार के सांसद गणेश सिंह को उतारा है। कांग्रेस विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा डब्बू भी पिछड़ी जाति से हैं। भाजपा के बागी जिला सहकारी बैंक व पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष रत्नाकर चतुर्वेदी बसपा से खड़े हैं। सीधी में भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक का टिकट काटकर सांसद रीती पाठक को मैदान में उतारा है। अब विधायक केदारनाथ शुक्ला निर्दलीय चुनौती पेश कर रहे हैं। रीति यहां पर मुश्किल में नजर आ रही हैं। भाजपा 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को चुनाव में मौका देने से परहेज करती रही है। लेकिन नागौद से 83 वर्षीय नागेंद्र सिंह और गुढ़ से 81 वर्षीय नागेंद्र सिंह को फिर प्रत्याशी बना दिया है। नागौद से कांग्रेस की डॉ. रश्मि सिंह और कांग्रेस के बागी यादवेंद्र सिंह बसपा से आकर मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे हैं। गुढ़ में सपा से चुनाव लड़ चुके कुंवर कपिध्वज सिंह कांग्रेस के प्रत्याशी हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और व्हाइट टाइगर के नाम से मशहूर रहे श्रीनिवास तिवारी भाजपा के लिए चुनौती रहे। उनके बेटे सुंदरलाल तिवारी भी कांग्रेस से सांसद और विधायक रहे हैं। अब तिवारी के पोते सिद्धार्थ तिवारी राज को भाजपा ने मौका दिया है। भाजपा के बागी देवेंद्र सिंह बसपा से आ गए हैं। उन्हें मिला वोट भाजपा या कांग्रेस की जीत-हार में अहम होगा।

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