भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। पुलिस विभाग के मैदानी कर्मचारी उच्च पद का प्रभार लेने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। इसकी वजह है उनमें तबादले का डर। दरअसल उच्च प्रभार देने के साथ ही अधिकांश कर्मचारियों की पदस्थापना दूसरे जिलों में की जा रही है, जिसकी वजह से वे उच्च पद का प्रभार लेने में कोई रुचि नहीं ले रहे हैं। हालात यह है कि वे अब उच्च पद का प्रभार लेने से लिखित में तक इन्कार कर रहे हैं। इसके उलट कई कर्मचारी ऐसे हैं, जो अपने रसूख की दम पर उच्च पद का प्रभार मिलने के बाद भी शहर में ही पदस्थ बने हुए हैं। इसके अलावा कुछ ऐसे भी गैर राजपत्रित अधिकारी और कर्मचारी भी हैं, जिन्हें उच्च पद का प्रभार मिलने के बाद पदस्थ तो दूसरे जिलों में किया गया है, लेकिन वे अब भी भोपाल में ही मजे से नौकरी कर रहे हैं। इसकी वजह है उनको लेकर आला अफसरों में चाहत। दरअसल पदोन्नति में आरक्षण का मामला अदालत में होने की वजह से अन्य विभागों की तरह ही पुलिस विभाग में भी पदोन्नति नहीं हो पा रही है। इसका सीधा असर अपराधों की विवेचना पर पड़ता था। सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी और अधिकारी विभाग से लगातार विदा हो रहे थे, लेकिन उनकी जगह भर नहीं पा रही थी। इसकी वजह से विभाग ने नया रास्ता निकालते हुए कर्मचारियों को उच्च पद का प्रभार देने का फैसला लिया है। भोपाल जिले में हवलदार को उच्च पद का प्रभार देकर कार्यवाहक एएसआई बनाकर उनकी पदस्थापना रेंज के तहत आने वाले सीहोर, विदिशा और राजगढ़ जिलों में की गई थी। जिनको उच्च पद का प्रभार देने के आदेश जारी किए गए थे उनमें से करीब आधा सैकड़ा से अधिक जिले के कर्मचारियों ने लिखकर दे दिया है कि उन्हें उच्च पद का प्रभार नहीं चाहिए। इसके पीछे उनका वह डर है, जिसमें उन्हें भोपाल से हटा दिया जाएगा और उनकी पारिवारिक परिस्थितियां इसकी इजाजत नहीं देती हैं। दरअसल आला अफसरों का निर्देश भी है कि उच्च पद का प्रभार स्वैच्छिक है और जो अधिकारी- कर्मचारी जिले से बाहर नहीं जाना चाहते हैं, वे लिखित में पदोन्नति लेने से इनकार कर सकते हैं।
राजधानी में 200 कर्मचारियों को उच्चप्रभार
भोपाल जिले में तकरीबन 200 से ज्यादा कर्मचारी हैं, जिन्होंने उच्च पद का प्रभार मिला है। प्रभार के बाद उनकी नई पदस्थापना भी सीहोर, विदिशा और राजगढ़ जिलों में की गई, इसके बाद भी वे भोपाल में जमे हुए हैं। इसकी वजह है उन्हें अब तक कार्यमुक्त नहीं किया जाना। यह स्थिति तब है, जब उनकी पदस्थापना को तीन महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है। सवाल यह है कि अगर आला अफसरों को दीगर जिलों में भेजे गए कर्मचारियों और अधिकारियों को कार्यमुक्त नहीं करना था, तो उन कर्मचारियों के साथ भी रियायत करते, जिन्होंने सिर्फ बाहर जाने की वजह से पदोन्नति नहीं ली। इसमें वे कर्मचारी मजे में हैं, जिन्होंने पदोन्नति भी ले ली और आला अफसरों की मेहरबानी से बाहर भी नहीं जाना पड़ रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जिस मंशा से विभाग ने उच्च पद का प्रभार दिया है, उसका क्या होगा। विभाग का दावा था कि उच्च पद का प्रभार दिए बिना विवेचना प्रभावित हो रही है। सवाल यह भी है कि आला अफसरों ने उनके तबादले क्यों किए। अगर पद था, तो तबादला नहीं करना था। पद नहीं था, तो कार्यमुक्त क्यों नहीं किया। अगर अफसरों को चहेते अधिकारियों और कर्मचारियों को कार्यमुक्त नहीं करना है, तो फिर उनके तबादले निरस्त ही क्यों नहीं कर रहे हैं। अगर तबादला निरस्त नहीं करना है तो उन्हें कार्यमुक्त करना चाहिए।
15/12/2021
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