चुनौतियों की भरमार…शिव के 2 साल में आएगी बहार…

शिवराज सिंह चौहान

समस्याओं से निपटने के लिए रोडमैप हो रहा तैयार

भोपाल/प्रणव बजाज/बिच्छू डॉट कॉम। चुनौतियां कोई भी, कितनी भी हों उससे निपटने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हमेशा तैयार रहते हैं। उन्होंने अपने अब तक के शासनकाल में यह कई बार कर दिखाया है। सरकार का तीन साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। लेकिन चुनौतियों की अभी भी भरमार है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार रोडमैप तैयार कर रही है, ताकि 2 साल में फिर से बहार आ जाए। गौरतलब है कि सरकार के पिछले तीन साल सियासी उथल-पुथल, कोरोना के कहर और आर्थिक बवंडर के रहे हैं। अब दो साल बचे हैं, ऐसे में सरकार के सामने चुनौती बहुत हैं। एक चुनौती सियासी तौर पर खुद को साबित करने की है, दूसरी चुनौती कोरोना से निपटकर अर्थव्यवस्था को बेहतर करने की है। इसके लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। दो साल का रोडमैप भी तैयार हो रहा है।
राजस्व में बढ़ोतरी पर फोकस
कोरोना संक्रमण के कारण देश-प्रदेश में आर्थिक गतिविधियां सबसे ज्यादा प्रभावित हुई हैं। ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती राजस्व में बढ़ोतरी है। कोरोना के कारण अधिकतर क्षेत्रों में राजस्व घटा है, लेकिन अब स्थिति संभल रही है। सरकार को दो साल में राजस्व में औसत 10-15 फीसदी की वृद्धि करना है। केंद्र से मिलने वाले राज्यांश को पूरा लेने और उसमें बढ़ोतरी की भी चुनौती है। सरकार के सामने महंगाई पर काबू भी चुनौती है। 2023 के चुनाव में महंगाई बड़ा मुददा हो सकती है। अर्थव्यवस्था में सुधार, कर्ज में कमी से ठोस कदम उठाए जा सकते हैं। सरकार को चाहिए कि राजस्व से बाहर के सेक्टर्स को दायरे में लाया जाए। राज्य के संसाधनों व यूएसपी को राजस्व में बदला जा सके। अतिरिक्त कर न लगे, मसलन पानी पर शुल्क न बढ़े। पेट्रोल-डीजल के दाम में राहत मिले। मप्र में आदिवासी समाज का करीब 83 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। इसलिए इस वर्ग को साधने की जरूरत है। आदिवासी समाज को लेकर भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती भरोसे के संकट को खत्म करने की है। 2018 के चुनाव में इस वर्ग ने भाजपा पर भरोसा नहीं जताया था, इस कारण सरकार बेहद सतर्क है। इस वर्ग के लिए सरकार कई कदम भी उठा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, खाद्य और रोजगार के मोर्चों पर सुविधाएं उपलब्ध कराने की जरूरत है। अभी प्रदेश के करीब 250 ऐसे आदिवासी इलाके हैं, जहां सरकारी अस्पताल नहीं है या सरकारी डॉक्टर नहीं हैं। इसलिए सरकार का फोकस आदिवासी क्षेत्रों के विकास पर है। इन क्षेत्रों में शिक्षा-स्वास्थ्य के मोर्चे पर सुविधाएं बढ़ाना होगा। धर्मातरण और संस्कृति के मुद्दे पर संरक्षण व भरोसा दिलाना होगा। पलायन और वनाधिकार पट्टे जैसे मुद्दों पर काम करना होगा और उन्हें रोजगार-स्वरोजगार से जोड़कर मुख्य धारा में लाना होगा।
कृषि प्रसंस्करण पर जोर
प्रदेश में खेती-किसानी के विकास पर सरकार का सबसे अधिक जोर है। कृषि बजट को आधुनिकीकरण और किसान के विकास पर खर्च करने की नीति बनाई जा रही है। पारंपरिक खेती के बजाय उन्नत खेती शुरू करने पर जोर दिया जा रहा है। किसान को प्रसंस्करण से भी जोड़ा जा रहा है, ताकि वह उद्यमी बने। कृषि के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा दिया जाएगा। इससे समय रहते किसान को सही दिशा में ले जा सकते हैं। विवि में बैठे कुलपतियों, अधिकारियों और वैज्ञानिकों को शोध के आधार पर खेती में क्या सही है और क्या घातक, शासन- प्रशासन को बताना होगा। वहीं उपकरण, कीटनाशक, बीज के लिए योजनाओं का चयन गंभीरता से हो। किसान की कमर तोड़ने  वाली योजनाएं बंद की जाएं। ग्राम सेवक से लेकर जिलों में डिप्टी डायरेक्टर तक के 50 फीसदी पद खाली हैं। इन्हें भरा जाए।
रोजगार के अवसर बढ़ाने की कोशिश
पिछले डेढ़ साल में सरकार ने रोजगार के अवसर बढ़ाने के प्रयास किए हैं। मनरेगा की तरह शहरी युवाओं के लिए रोजगार गारंटी कानून बनाना चाहिए। छात्रों का काम पढ़ना और अच्छे नंबर लाना है। नौकरियों के सृजन की जिम्मेदारी शासन की है। युवाओं को मुफ्त भत्ता देना विकल्प नहीं है। इसके बजाय सुनिश्चित करना होगा कि पर्याप्त नौकरियां हों। प्रदेश सरकार के लगभग सभी विभागों में ढाई लाख पद वर्षों से खाली पड़े हैं, उन्हें तुरंत भरना चाहिए। निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ाने के प्रयास होंगे तो नौकरियां मिलेंगी। युवाओं को स्किल्ड बनाने प्रशिक्षण केंद्र शुरू किए जाएं, उद्यम शुरू करने के अवसर देने का काम तेज करना होगा। सरकार को प्रदेश में स्टार्टअप का माहौल तैयार करना होगा। वहीं तय समय सीमा में सरकारी विभागों में भर्ती, रिजल्ट जारी हों। युवा हल्ला बोल एवं मतदाता कल्याण संघ मप्र के अध्यक्ष राज प्रकाश मिश्र का कहना है कि प्रदेश में 2.5 लाख से ज्यादा संविदाकर्मी, अतिथि शिक्षक, अन्य अनियमित कर्मी कई विभागों में बेरोजगार जैसी स्थिति में हैं।

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