सेहत से खिलवाड़… मरीजों को बांट दी अमानक दवाएं

अमानक दवाएं
  • 28 कंपनियों को किया गया ब्लैक लिस्ट

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में एक तरफ सरकार हर व्यक्ति को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए तत्पर है, वहीं दूसरी तरफ अफसरों की लापरवाही के कारण प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में मरीजों को अमानक दवाएं बांट दी गई।  साल 2023 में स्वास्थ्य विभाग ने अमानक पाए जाने पर 28 कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड किया था। दिलचस्प है कि जिन अमानक दवाओं की आपूर्ति की गई है, उनमें किडनी की बीमारियों से लेकर दर्द की दवाएं व आइ ड्रॉप भी शामिल हैं।  अमानक दवाओं की स्ट्रिप पर 500 एमजी लिखा था, जांच में 300 व 350 एमजी मिली। कई दवाओं पर लिखे कंपाउंड नहीं पाए गए।  दवाओं में नमी पाई गई। दरअसल, यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि मप्र में बीते 9 सालों से सेंट्रलाइज्ड व्यवस्था नहीं हो पाई है। जबकि अन्य राज्यों के हेल्थ कॉर्पोरेशन में सेंट्रलाइज्ड व्यवस्था से कार्य होता है। उड़ीसा, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तमिल, केरल, उप्र, छग, जम्मू, तेलंगाना, बिहार, गुजरात में मप्र के स्वास्थ्य विभाग के क्रय बजट से कम बजट में ही समुचित स्वास्थ्य सुविधा जनता को मिल रही है। दूसरी तरफ मप्र में सरकारी संस्थाओं में एंटी रेबीज इंजेक्शन, आईवी फ्लूड व अन्य दवाओं की उपब्धता आवश्यक्ता की आधी से भी कम है। 20 फरवरी को इंदौर की एपिडिमोलॉजिस्ट ने सीएमएचओ को रिपोर्ट भेजी। इसमें बताया गया, सलाइन देने के बाद कुछ मरीजों को बुखार, सर्दी, कंपकपी एवं घबराहट बढऩे लगी। इसके बाद बायोसिनर्जी लाइफकेयर प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के द्वारा दी गई सलाइन को एकत्र कर उपयोग में न लाने के लिए कहा गया। महू के सिविल अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी ने रिपोर्ट दी कि उल्टी और दस्त की शिकायत होने पर 17 साल के अतुल को सरकारी अस्पताल में भर्ती किया गया। इसे इंजेक्शन सेफोटेक्सिस लगाया गया। इसके तुरंत बाद ही मरीज को जमकर कंपकपी एवं घबराहट होने लगी। उसे एमवाई रेफर करना पड़ा। सेफोटेक्सिम सोडियम का इंजेक्शन देने पर मरीज को कंपकपी और घबराहट होने लगी। इसकी शिकायत हुई, तो तत्काल इसके उपयोग पर रोक लगाने का आदेश जारी किया गया लेकिन अभी भी यह स्टॉक हॉस्पिटल में है।
सप्लाई से पहले टेस्टिंग हो तो नहीं बनती ऐसी स्थिति
सरकारी अस्पतालों में दवा सप्लाई से पहले थर्ड पार्टी लैब जांच रिपोर्ट देनी होती है। स्वास्थ्य विभाग बाहरी लैब की जांच रिपोर्ट के आधार पर कंपनियों को सप्लाई का आर्डर दे देता है। समय-समय पर विभाग दवाओं की रैंडम चेकिंग सरकारी लैब में कराता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दवाओं की सप्लाई से पहले सरकारी लैब में टेस्टिंग हो तो यह स्थिति न बने।

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