एप का छिंदवाड़ा रेंज में प्रयोगात्मक रूप से हो रहा इस्तेमाल
भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र पुलिस का ‘पिस्टल’ (पुलिस इन्वेस्टिगेशन एविडेंस ट्रांसमिशन ऑनलाइन) नामक ओपन-सोर्स एप केंद्र सरकार की ओर से बनाए गए ई-साक्ष्य एप का विकल्प बन सकता है। गौरतलब है कि मप्र पुलिस ने ‘पिस्टल’ नामक नया ओपन-सोर्स एप विकसित किया है, जो लंबी अवधि के वीडियो साक्ष्य संकलन में सक्षम है, जबकि केंद्र सरकार का ई-साक्ष्य एप केवल चार मिनट तक के वीडियो ही संभाल सकता है। ‘पिस्टल’ एप को छिंदवाड़ा रेंज में प्रयोगात्मक रूप से शुरू किया गया है। इस ‘पिस्टल’एप में खास बात यह है कि इसमें एक से दो घंटे तक वीडियो भी बनाकर विशेष कोडिंग और प्रोग्रामिंग के जरिए थाने के सर्वर में सुरक्षित भेजा जा सकता है, जबकि ई-साक्ष्य में एक बार में चार मिनट से अधिक का वीडियो ही बन पा रहा है। दूसरा, ई-साक्ष्य में बनाए गए वीडियो डिजी लॉकर में रखे जाते हैं, पर एक वीडियो 10 एमबी से अधिक होने पर सेव नहीं हो सकता। इस कारण मप्र सहित सभी राज्यों को दिक्कत आ रही है। गौरतलब है कि एक जुलाई से नए स्वरूप में प्रभावी तीन नए कानूनों में साक्ष्य संकलन के लिए केंद्र की ओर से ई-साक्ष्य एप बनाया गया है। लेकिन इसका उपयोग राज्यों को परेशानी का सबब बन गया है। राज्यों ने चार मिनट की अवधि को बढ़ाने का सुझाव भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को दिया है। ऐसे में इसके विकल्प के तौर पर मप्र पुलिस ने पिस्टल बनाया है। यह ओपन सोर्स एप्लीकेशन पर बना है। इस पिस्टल एप में खास बात यह है कि इसमें एक से दो घंटे तक वीडियो भी बनाकर विशेष कोडिंग और प्रोग्रामिंग के जरिए थाने के सर्वर में सुरक्षित भेजा जा सकता है, जबकि ई-साक्ष्य में एक बार में चार मिनट से अधिक का वीडियो ही बन पा रहा है।
पिस्टल के उपयोग पर कोई खर्च नहीं
जानकारी के अनुसार पिस्टल का उपयोग आसान और बिना खर्च का है। विवेचक को जिले की साइबर पुलिस की तरफ से एक लिंक मिलता है, जिसे एक बार क्लिक करने के बाद उसके द्वारा बनाए गए वीडियो थाने के कंप्यूटर में सेव होने लगते हैं, जिसे रेलिइंग कहा जाता है। विवेचक और थाने के सर्वर के बीच कोई तीसरा व्यक्ति इसे प्रभावित नहीं कर सकता। यह ओपेन सोर्स पर काम करता है, यानी कोई खर्च नहीं है। ई-साक्ष्य में चार मिनट से अधिक के वीडियो नहीं बनने के कारण घटना स्थल, बयान आदि के एक से अधिक वीडियो बनाना पड़ता है। टुकड़े-टुकड़े वीडियो होने पर साक्ष्य प्रस्तुत करने के दौरान पुलिस के लिए न्यायालय में यह साबित करना कठिन हो सकता है कि वीडियो के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है। इसे साबित करने के लिए वीडियो की हैस वैल्यू (लंबा कोड) मापदंड के अनुसार होनी चाहिए।
ई-साक्ष्य एप उपयोग करने वाला मप्र पहला राज्य
गौरतलब है कि ई-साक्ष्य एप उपयोग करने वाला मप्र पहला राज्य है, पर कई जिलों में अभी यह पूरी तरह से प्रारंभ ही नहीं हो पाया है। कारण, इसके लिए सभी विवेचक दक्ष नहीं है। दूसरा सभी का लागिन-पासवर्ड नहीं बन पाया है। बाकी जगह ई-साक्ष्य और प्रयोग के रूप में कुछ जगह पिस्टल प्रारंभ किया गया है। नए कानूनों में यह कहीं लिखा नहीं है कि ई-साक्ष्य का ही उपयोग करना है। पिस्टल प्रोजेक्ट को लेकर नवाचार करने वाले छिंदवाड़ा रेंज के डीआइजी सचिन अतुलकर ने बताया कि लगभग एक माह से जबलपुर जोन के छह जिलों के एक-एक नोडल थानों में इसे प्रयोग के तौर पर शुरू किया गया है। पिस्टल को लेकर 15 पुलिस अधीक्षकों के साथ वर्चुअल बैठक भी हो चुकी है, जिसमें सभी ने इसकी प्रशंसा की है।