विश्वविद्यालयों की कमान.. मिलेगी स्थाई कुलसचिवों को

राजभवन
  • राजभवन के पत्र से रसूख की दम पर कुर्सी जुगाड़ने वालों में मचा हड़कम्प
    भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम।
    प्रदेश के अधिकांश  शासकीय विश्वविद्यालयों में रसूख की दम पर कुल सचिवों की कुर्सी जुगाड़ने वाले उच्च शिक्षा विभाग के अफसरों में इन दिनों हड़कंप की स्थिति बनी हुई है। दरअसल राजभावन चाहता है कि सरकारी सभी विश्वविद्याालयों में स्थाई कुल सचिवों की ही पदस्थापनाएं की जाएं। इसके लिए राजभवन से एक पत्र सभी विवि प्रबंधनों को भेजा जा चुका है।  यह पत्र जैसे ही विश्व विद्यालयों में पहुंचा है, उसके बाद से इस पद पर जमे अफसरों की धड़कने बढ़ गई हैं।
    दरअसल प्रदेश में अधिकांश जगहों पर  मंत्रियों, नेताओं और उनके करीबियों ने नियमों को धता बताते हुए अस्थाई कुलसचिव की कमान सम्हाल रखी है। दरअसल इन दिनों राजभवन द्वारा लगातार विश्वविद्यालयों में शिक्षा एवं काम-काज की प्रगति की समीक्षा की जा रही है। इसमें ही यह खुलासा हुआ है कि कुलसचिव के पद पर अस्थाई तौर पर उप कुलसचिव/सहा. कुलसचिव के अलावा कुछ जगहों पर प्रोफेसर/ एसो. प्रोफेसर इस पद पर जमे हुए हैं।
    जिसकी वजह से कामकाज के साथ ही शिक्षण कार्य भी प्रभावित हो रहा है। लिहाजा तय किया गया है कि कुलसचिव के पद पर स्थाई रूप से सक्षम अधिकारी को ही इस पद का दायित्व दिया जाए। दरअसल प्रदेश में  अभी 21 शासकीय विश्वविद्यालय हैं। इनमें उच्च शिक्षा विभाग के तहत 14 विश्वविद्यालय हैं , तो एक विश्वविद्यालय तकनीकी शिक्षा विभाग के अंतर्गत जबकि कृषि, पशुपालन, संस्कृति एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अंतर्गत छह  विश्वविद्यालय आते हैं । इनमें 14 विश्वविद्यालय में से सिर्फ एक कुलसचिव नियमित तौर पर मप्र भोज (मुक्त) विश्वविद्यालय में ही पर पदस्थ हैं । शेष 13 में से 7 में कुलसचिव के पद पर उप कुलसचिव / सहायक कुलसचिव और 06 में प्रोफेसर/एसो. प्रोफेसर के पास कमान है।
    कहां क्या स्थिति
    प्रशासनिक सूत्रों की मानें तो रानी दुर्गावती विवि के कुलसचिव डॉ. ब्रजेश सिंह प्रतिनियुक्ति पर रीवा से आए हैं। ये वहां के स्थानीय विधायक के करीबी मानें जाते हैं। मेडिकल और वेटरनरी यूनिवर्सिटी में भी दूसरे अफसरों को बतौर कुलसचिव पदस्थ किया गया है। इसी तरह से प्रदेश की एकमात्र वेटरनरी और मेडिकल यूनिवर्सिटी में भी प्रभारी कुल सचिव पदस्थ हैं।
    प्रदेश में कई सालों से चल रहा प्रभार का खेल
    प्रदेश के सरकारी विश्वविद्यालयों में कई सालों से प्रभार का खेल चल रहा है। इनमें कई में तो बीते सात साल से इस्थाई कुल सचिव पदस्थ नहीं किय गया है। प्रभार के चलते विवि की प्रशानिक व्यवस्थाएं तक  गड़बड़ा जाती हैं।

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