विशेषज्ञों की कमी से नहीं हो रहा लोगों का इलाज

स्वास्थ्य

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में सरकार लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन स्थिति यह है की प्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। इस कारण लोगों को इधर-उधर भटकना पड़ता है। इसका खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के हालिया रिपोर्ट में हुआ है। सीजी डिलिवरी के लिए एनेस्थीसिया विशेषज्ञ, शिशु रोग- विशेषज्ञ और गायनकोलाजिस्ट की जरुरत होती है। सर्जिकल विशेषज्ञ न होने से ट्रामा मरीजों को तुरंत इलाज नहीं मिलता।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी रूरल हेल्थ स्टैटिस्टिक्स 2021-22 की रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। प्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों (सीएचसी) में 1328 विशेषज्ञों की जरूरत के सापेक्ष में तैनाती महज 66 की है। इसी तरह से प्रदेश के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) में डाक्टरों के 315 पद रिक्त हैं। 2005 में यह आंकड़ा 439 था। यानी 17 साल बाद भी ज्यादा सुधार नहीं हुआ। पीएचसी में चिकित्सक का एक ही पद होता है। उसके नहीं रहने पर मरीजों को उपचार नहीं मिल पाता। रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि प्रदेश के कुल 1266 पीएचसी में से 30 अभी किराए के भवन में संचालित हो रहे नियुक्ति की जा रही है। हैं, जबकि 91 पंचायत या अन्य सरकारी भवनों में 332 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में से आठ किराए और 15 दूसरे सरकारी भवन में चल रहे हैं। उप और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 729 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कमी है।
सीएचसी ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़
ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (कम्युनिटी हेल्थ सेंटर) बहुत महत्व रखते हैं। लेकिन इन स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी है। ऐसे केंद्रों को भारत के ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की रीढ़ माना जाता है। यह 30 बेड का अस्पताल होता है। इसमें चार मेडिकल स्पेशलिस्ट-सर्जन, फिजिशियन, स्त्री रोग विशेषज्ञ और एक बच्चों का डॉक्टर होता है। प्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में सर्जन, गायनकोलाजिस्ट, शिशु रोग विशेषज्ञ और फिजीशियंस को मिलाकर 1328 विशेषज्ञों की जरूरत है।
इनमें स्वीकृत पद 1193 ही हैं, जिनमें कार्यरत मात्र 66 हैं। स्वास्थ्य मंत्री  डॉ. प्रभुराम चौधरी का कहना है कि विशेषज्ञों की जगह कई अस्पतालों में पोस्ट ग्रेज्युएट मेडिकल आफिसर (पीजीएमओ) काम कर रहे हैं। पहली बार पीएससी से विशेषज्ञों की सीधी भर्ती की जा रही है। इसमें स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञों की भर्ती के बाद अब मेडिसिन विशेषज्ञों की कमी परेशानी का सबब बना हुआ है।
स्वीकृत पदों की तुलना में इतनी कमी
(आंकड़े प्रतिशत में)
विशेषज्ञ 2021 2022
सर्जन 83.2 83.2
स्त्री रोग विशेषज्ञ 74.2 74.2
फिजीशियन 82.2 79.1
शिशु रोग विशेषज्ञ 80.6 81.6
कुल विशेषज्ञ 79.9 79.5

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