- सोसायटी को समाप्त कर शिक्षकों, कर्मचारियों को शासन में मर्ज करने की कवायद
भोपाल/अपूर्व चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम। तकनीकी शिक्षा विभाग ने कॉलेजों की सोसायटी के माध्यम से नियुक्त एचओडी और प्राचार्य के सामने शर्त रख दी है कि अगर उन्हें पेंशन चाहिए तो अपना डिमोशन करवाना होगा। यानी प्राचार्य और एचओडी को पेंशन चाहिए तो लेक्चरर बनना होगा। इससे वर्तमान में कार्यरत 13 प्राचार्य और 50 एचओडी असमंजश में फंस गए हैं। जानकारी के अनुसार, प्रदेश की सभी पॉलिटेक्निक और इंजीनियरिंग कॉलेजों की नियामक और संचालक सोसायटी खत्म कर शासन में मर्ज करने की कार्यवाही चल रही है। इसमें डायरेक्टर (एचओडी) और प्राचार्य को पांच इंजीनियरिंग कॉलेजों की स्थिति अलग कर दिया गया है। इसके चलते वर्तमान में कार्यरत 13 प्राचार्य और 50 एचओडी को आॅप्शन दिया गया है कि यदि वह रिटायरमेंट के बाद पेंशन चाहते हैं, तो उन्हें पद छोड़कर लेक्चरर बनना होगा। यानि एक पद नीचे आने पर ही पेंशन मिलेगी।
सोसायटी को समाप्त करना चाहता है विभाग
दरअसल तकनीकी शिक्षा विभाग ने डेढ़ दशक पहले एमपी पीएससी से प्राचार्य और विभागाध्यक्ष का सिलेक्शन भर्ती नियम 2004 से कराए थे। विभाग ने कॉलेजों की सोसायटी तैयार कर उन्हें अपने हिसाब से इनकी नियुक्ति करने के आदेश दिए थे। इसमें लाइब्रेरियन, लेक्चरर, एचओडी और प्राचार्य पदों पर नियुक्ति की गई थी। अब विभाग सोसायटी को समाप्त कर शिक्षकों, कर्मचारियों को शासन में मर्ज करने की कवायद में जुटा है। दूसरी ओर इसमें विभागीय अधिकारियों ने पेंच फंसा दिया है। इसके नतीजे में जो आदेश जारी किया गया है, उसमें कहा गया है कि प्राचार्य और एचओडी को अपना पद छोड़कर लेक्चरर बनना होगा। इसके लिए उनसे 15 दिन में सहमति पत्र जमा करने को कहा गया है। यदि प्राचार्य और एचओडी सहमति नहीं देते हैं, तो उन्हें सोसायटी में ही रखा जाएगा। साथ ही रिटायरमेंट के बाद पेंशन के हकदार नहीं होंगे।
पद वापस लेना न्यायोचित नहीं
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि विभाग ने एमपीपीएससी से प्राचार्य और एचओडी का चयन कराया था। ऐसे में उनसे लेक्चरर के पद वापस लेना न्यायोचित नहीं हैं। उन्हें प्राचार्य और एचओडी के पद पर बने रहते हुए वापस लेना चाहिए। उनकी वापसी के बाद उनके जूनियर को एचओडी और प्राचार्य बनाया जाता है, तो वह जूनियर हो जाएंगे। तकनीकी शिक्षक संघ के अध्यक्ष प्रो. उदय चौरसिया का कहना है कि वर्ष 2004 में नियुक्त विभागाध्यक्ष एवं प्राचार्य से ऑप्शन मांगा गया है कि वह शासन में मर्ज होना चाहते हैं या मूल पद पर रहना चाहते हैं। यह भेदभाव गलत है। यदि सोसायटी खत्म की जा रही है, तो वह लेक्चरर, विभागाध्यक्ष और प्राचार्य सभी पर एक समान नियम लागू कर पूरी तरह सोसायटी के पदों को शासन में मर्ज करना उचित होगा। वहीं तकनीकी शिक्षा विभाग की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का कहना है कि सोसायटी के अंतर्गत नियुक्त प्राचार्य और डायरेक्टर के पद नॉन प्रमोशनल पद हैं। इसलिए शासन में मर्जर करने से पहले उनसे नियमानुसार ऑप्शन पूछा गया है। सहमति के बाद ही शासन में मर्ज होने पर शासन के नियम लागू होंगे और उन्हें कहीं भी पदस्थ किया जा सकता है।