लंबित मांगें सुलझने की बजाय उलझती जा रहीं

चिकित्सकों और कर्मचारियों
  • पांच साल से नहीं हुई परामर्शदात्री की बैठक

भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। चिकित्सकों और कर्मचारियों की समस्याओं और मांगों के समाधान के लिए सीएमएचओ में हर तीन माह में होने वाले परामर्शदात्री बैठक पांच साल में नहीं हो पाई है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि भोपाल जिले के स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों से लेकर कर्मचारियों तक की समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। वह भी तब जब  बैठक बुलाने के लिए करीब एक दर्जन पत्र लिखे गए हैं। मप्र जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष  डा. कुलदीप गुप्ता का कहना है कि परामर्शदात्री समिति की बैठकें नियमित रूप से होना चाहिए। बैठक एक ऐसा आधार रहता है जिसमें लोक सेवक को अपनी परेशानी हल कराने का मौका स्थानीय स्तर पर मिलता है। गौरतलब है कि शासन के निर्देश हैं कि विभागों में तीन माह के दौरान परामर्शदात्री बैठक आयोजित की जाए। लेकिन सरकारी विभागों में शासन के निर्देशों का कितना पालन हो रहा है, भोपाल जिले के स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों से लेकर कर्मचारियों का विरोध को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता रहा है। यहां पांच साल से परामर्शदात्री की बैठक नहीं बुलाई गई है। जबकि इस अवधि में ग्यारह पत्र मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय को दिए जा चुके हैं। फिर भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।  रिटायर्ड स्वास्थ्य सेवक एवं अध्यक्ष पुरानी पेंशन बहाली  प्रमोद तिवारी का कहना है कि पिछले पांच साल में सीएमएचओ को ग्यारह पत्र दिए गए, लेकिन परामर्शदात्री नहीं बुलाई गई है। इस कारण समस्याएं बढ़ रही है और कर्मचारी रिटायर्ड हो रहे हैं।
कर्मचारी हो रहे रिटायर, समस्या जस की तस
कर्मचारियों के जिला स्तर पर अनेक मुद्दे होते हैं ,जो परामर्शदात्री के माध्यम से सक्षम अधिकारी ही सुलझाने के अधिकार रखता है। अनेक डॉक्टरों और नर्सेस सहित अनेक कर्मचारी रिटायर्ड हो जाते हैं, लेकिन उनके स्वत्व का भुगतान बाबू अटका कर रखते हैं। शाखाओं में तीन साल से ज्यादा कर्मचारियों का हो गया तो इन्हें हटाना जरूरी होता है। ऐसे मुद्दे भी परामर्शदात्री में पहुंचते हैं। लंबित डीए का भुगतान, कर्मचारियों की पदस्थापना, शाखा बदलाव सहित विभिन्न मामले स्थानीय स्तर पर सुलझ जाते हैं। जो शासन स्तर की समस्याएं होती हैं। इन्हें अधिकारी के अनुमोदन उपरांत उन्हें विभाग के पास भेजा जता है। कर्मचारियों का कहना है कि परामर्शदात्री में विलंब होने के कारण निरंतर दिक्कतें बढ़ रही हैं। वहीं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधीन गांधी मेडिकल कॉलेज में तीन साल से परामर्शदात्री समिति की बैठक नहीं बुलाई गई है। जबकि यहां स्वास्थ्य कर्मचारियों की अनेक समस्याएं है। जबकि महाविद्यालय डीन की अध्यक्षता में यह बैठक बुलाई जाती रही है। जिसमें चिकित्सक नर्सेस सहित अन्य संवर्गों के कर्मचारी संगठन नेता शामिल होकर समस्याएं रखते रहे हैं। बैठक न होने के कारण पेंडिंग मुद्दे बढ़ते ही चले जा रहे है।
हर 3 माह में बैठक बुलाने का नियम
जानकारी के अनुसार शासन का नियम है कि सभी विभागों में राज्य से लेकर जिला और ब्लॉक स्तर पर परामर्शदात्री हर तीन माह में बुलानी होगी। सीएमएचओ कार्यालय में वर्ष 2018 से कोई बैठक नहीं बुलाई गई है। अब दिक्कत यह है कि कर्मचारियों की अनेक ऐसी समस्या हैं ,जो स्थानीय स्तर पर सुलझना है। परामर्शदात्री का आयोजन नहीं होने के कारण यह दायरा बढ़ता ही चला जा रहा है। जबकि चिकित्सकों एवं कर्मचारियों का कहना है कि पांच साल में ग्यारह पत्र मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी कार्यालय को दिए ज चुके हैं। मांग भी की गई कि बैठकों में सभी कर्मचारी संघों को बुलाकर उनके पक्ष सुने जाएं। अफसर से मौखिक मुलाकात भी की जा चुकी है। आरोप है कि परामर्शदात्री समिति की बैठक आयोजित नहीं की गई है। नतीजा यह है कि लंबित मांगें सुलझने की बजाय उलझती जा रही हैं। कर्मचारी निरंतर रिटायर्ड हो रहे हैं, लेकिन समय से उन्हें सुविधा नहीं मिल पाई है।

View Post

Related Articles