भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम। प्रदेश में हर साल लाखों मरीजों को अमानक दवाएं खाना पड़ रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह कि दवाओं की जांच रिपोर्ट तब आती है जब तक वह काफी मात्रा में खप चुकी होती हैं। ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जब किसी बैच की दवाएं एक्यपायर होने के बाद जांच रिपोर्ट अमानक मिली हैं। ऐसे में दवाओं की जांच सिर्फ खानापूर्ति साबित हो रही है। क्योंकि प्रदेश में हर साल 50 से ज्यादा दवाओं के नमूने अमानक मिल रहे हैं। इनमें सरकारी अस्पताल और निजी मेडिकल स्टोर्स में बिकने वाली दवाएं हैं। ज्यादातर दवाओं की एक्सपायरी दो साल की होती है। कुछ की एक साल ही होती है। उधर, दवाओं की जांच में ही साल भर से ज्यादा समय लग रहा है। मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉर्पोरेशन की औचक जांच में पिछले साल 10 कंपनियों के नमूने फेल हो गए। दवाओं में गड़बड़ी मिलने पर कंपनियों को ब्लैक लिस्ट कर दिया गया, लेकिन कंपनी पर कार्रवाई के नियमों का ऐसा जाल है कि जब तक अस्पतालों का ज्यादातर स्टॉक खप जाता है। ये स्थिति तब है जब कॉर्पोरेशन दवा खरीद से पहले दो बार इनका टेस्ट कराता है। दरअसल, दवा बनाने वाली कंपनी सप्लाई के साथ ओके रिपोर्ट भेजती है। इसी रिपोर्ट के आधार पर दवाएं बांट दी जाती हैं। दवाओं की जांच के लिए प्रदेश सरकार ने नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फॉर लेबोरेट्रीज (एनएबीएल) मान्यता प्राप्त 7 लैब से अनुबंध किया है। यहां जांच का खर्च संबंधित दवा कंपनी उठाती है। लेकिन यहां से जांच के पहले ही दवाओं का इस्तेमाल शुरू हो जाता है। यही हाल ईदगाह स्थित लैब में भी होता है। जहां क्रास जांच में सालभर लग जाता है। रिपोर्ट आने के पहले दवा बंट जाती हैं। जबकि होना यह चाहिए कि स्टोर में दवा पहुंचते ही हर बैच की दवा के नमूने जांच के लिए भेजे जाने चाहिए। नमूनों की जांच ज्यादा से ज्यादा एक महीने के भीतर हो जानी चाहिए।
17 लाख रुपए वसूली के नोटिस
मप्र पब्लिक हेल्थ सर्विस कॉर्पोरेशन की औचक जांच में पिछले साल जिन 10 कंपनियों के नमूने फेल हुए थे , कॉर्पोरेशन ने उन कंपनियों को करीब 17 लाख रुपए वसूली के नोटिस दिए है। दरअसल जांच में दवाओं के इंडेक्स, दवाओं की मात्रा में अंतर पाया गया। किसी दवा की स्ट्रिप में 500 एमजी आईपी लिखा था, लेकिन जांच में 350 या 400 एमजी ही निकली। कई स्ट्रिप फटे मिले तो कई में नमी पाई गई। जांच में सोडियम लेक्टेट, पेन्टाप्रजोल इंजेक्शन, टेलमीसार्टन, मैनीटॉल आइएम 20 और नॉरफ्लॉक्सिन टैबलेट रैबेपैराजोल टेबलेट, पोवाडीन इंजेक्शन और एब्जोरवेन्ट कॉटन वूल अमानक पाए गए।
जांच रिपोर्ट आने तक वितरण रोका नहीं जाता
नियमानुसार दवा खरीदी उन्हीं अधिकृत लैब में कंपनियों से की जाती है, जिनके पास डब्ल्यूएचओ-जीएमसी मानक सर्टिफिकेट होता है। कंपनी दूसरे राज्य में स्थित एनएबीएल मान्यता प्राप्त लैब की ओके रिपोर्ट लगाती है। अस्पतालों में दवाएं जाने के बाद आने तक इनके नमूने लिए जाते हैं। रिपोर्ट नेगेटिव होने पर पूरा बैच हटा दिया जाता है। अभी खरीद से पहले कंपनी खुद अपने स्तर पर जांच कराती हैं। स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि जांच रिपोर्ट आने तक वितरण रोका नहीं जाता। रिपोर्ट आने के बाद कंपनी को अपना पक्ष रखने के लिए 45 दिन का समय दिया जाता है। तब तक ये दवाएं अस्पतालों में वितरित होती रहती हैं। जांच रिपोर्ट आने में ही एक से दो महीने लग लग जाते हैं। जब तक ज्यादातर स्टॉक बंट चुका होता है। इससे पहले भी प्रोवीडीन ऑइंटमेंट और जिंक सल्फेट टैबलेट के अमानक होने की जांच रिपोर्ट दो साल बाद आई थी।
13/04/2023
0
138
Less than a minute
You can share this post!