मरीजों के डिजिटल हेल्थ कार्ड खुद हो गए बीमार

डिजिटल हेल्थ कार्ड
  • अस्पतालों के कम्प्यूटर में नहीं मिल रही मरीजों की मेडिकल हिस्ट्री

भोपाल/गौरव चौहान/बिच्छू डॉट कॉम। देश में डिजिटल क्रांति लाने के लिए मोदी सरकार ने डिजिलट हेल्थ कार्ड योजना की शुरूआत की है। ताकि मरीजों को अपने इलाज की फाइलें साथ लेकर न चलना पड़े, लेकिन प्रदेश में यह योजना खुद बीमार पड़ गई है। जानकारों का कहना है कि   डिजिटल हेल्थ आईडी योजना मप्र में ठीक से लागू नहीं हो पाई है। प्रदेश में अब तक 68 लाख लोग डिजिटल हेल्थ आईडी बनवा चुके हैं, लेकिन जब वे इलाज के लिए अस्पताल पहुंचते हैं तो वहां उनकी आईडी से कोई भी जानकारी डिस्प्ले नहीं हो रही होती है।
डिजिलट हेल्थ कार्ड योजना के तहत अगर कोई मरीज इलाज के लिए एक शहर से दूसरे शहर भी जाएगा तो उसे अपनी पुरानी मेडिकल फाइलें लेकर अस्पतालों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। क्योंकि डिजिटल मिशन के तहत बनाए जा रहे डिजिटल हेल्थ कार्ड में मरीज की पूरी जानकारी होगी और चिकित्सक क्लीक पर मरीज की पूरी जानकारी देख सकेंगे। लेकिन प्रदेश में फिलहाल यह स्थिति है कि अपने ही शहर में ही मरीज की जानकारी नहीं मिल पा रही है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में योजना शुरू हुए करीब एक साल का समय गुजर गया है। लेकिन डिजिटल हेल्थ कार्ड लेकर जब मरीज इलाज के लिए अस्पताल पहुंचता है तो वहां के कंप्यूटर पर मरीज कोई भी जानकारी डिस्प्ले नहीं हो रही है। इससे मरीजों के साथ ही अस्पतालों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टरों को मेडिकल हिस्ट्री बताने के लिए उन्हें पुरानी फाइलें ही लेकर जाना पड़ रहा है।
प्रदेश में सिर्फ 28 डॉक्टर ही रजिस्टर्ड
बताया जाता है की डिजिलट हेल्थ कार्ड उन्हीं स्वास्थ्य सुविधाओं और उन्हीं डॉक्टरों के पास एक्सेस होगा, जिनका डिजिटल हेल्थ मिशन में रजिस्ट्रेशन हुआ है। मप्र में अब तक 711 डॉक्टरों ने रजिस्ट्रेशन के लिए अप्लाई किया है, इनमें से सिर्फ 28 को रजिस्टर्ड किया गया है। जबकि आंध्रप्रदेश में 7357, चंडीगढ़ में 1698, जम्मू-कश्मीर में 1210 रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं। प्रदेश में अब तक मात्र 2382 स्वास्थ्य सुविधाओं को रजिस्टर्ड किया गया है। जबकि 4123 एप्लीकेशन पेंडिंग हैं। यूपी में 26,824, आंध्र प्रदेश में 13,371, पश्चिम बंगाल में 10,221 और महाराष्ट्र में 9682 स्वास्थ्य सुविधाएं रजिस्टर्ड हैं।
कार्ड बनाने में मप्र 9वें स्थान पर
मप्र में पिछले एक साल में 68 लाख लोग डिजिटल हेल्थ कार्ड बनवा चुके हैं। पहले यह काम नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन के पास था, अब इसे आयुष्मान भारत के अंतर्गत डिजिटल मिशन को सौंप दिया गया है। डिजिटल कार्ड बनाने के मामले में मध्यप्रदेश का देश में 9वां स्थान है। सबसे ज्यादा 2 करोड़ 82 लाख कार्ड आंध्रप्रदेश में बने हैं। बिहार में 1 करोड़ 47 लाख, महाराष्ट्र में 1 करोड़ 43 लाख, केरल में 1 करोड़ 28 लाख, यूपी में 1 करोड़ 27 लाख और पश्चिम बंगाल में 1 करोड़ 10 लाख कार्ड बन चुके हैं। ओडिशा और राजस्थान भी इस मामले में मध्यप्रदेश से आगे है। आयुष्मान भारत मप्र के सीईओ अनुराग चौधरी का कहना है कि हम जून के पहले सप्ताह में एक बड़ा अभियान शुरू कर रहे हैं ताकि डिजिटल हेल्थ आईडी की पूरी प्रक्रिया एक दूसरे से जुड़ सके। इसमें सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों के साथ ही सुविधाओं का भी रजिस्ट्रेशन किया जाएगा। ताकि मरीजों को इस आईडी का फायदा व्यापक रूप से मिल सके।
डिजिटल लॉकर में मरीज का पूरा हेल्थ रिकार्ड
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त, 2020 को नेशनल डिजिटल हेल्थ मिशन का ऐलान किया था। इसके तहत लोगों के डिजिटल हेल्थ कार्ड बनाए जाने थे। कार्ड के लिए संबंधित व्यक्ति का 14 अंकों का यूनिक डिजिट हेल्थ आईडी बनता है। इस लॉकर में उस व्यक्ति का पूरा हेल्थ रिकार्ड जैसे जांचें, एक्सरे, रिपोर्ट, दवाइयां, डिस्चार्ज समरी सहित संबंधित जानकारी अपलोड की जाती है। इसका फायदा यह है कि जरूरत पड़ने पर  डॉक्टर उस व्यक्ति की मेडिकल हिस्ट्री आॅनलाइन देख सकते हैं। मरीज को इन दस्तावेजों की फाइल साथ रखने की जरूरत नहीं है।

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