- प्रदेश के विधानसभा चुनाव में की गई अनदेखी
- विनोद उपाध्याय
मप्र में किसान सबसे बड़ा वोट बैंक हैं। इसलिए पार्टियों के लिए किसान हमेशा से प्रिय बने रहते हैं। खासकर चुनाव में तो भाजपा और कांग्रेस का पूरा फोकस किसानों को साधने पर रहता है। लेकिन इस बार के चुनाव में खेती किसानी के मुद्दे लगभग गायब रहे। वहीं प्रदेश के सबसे बड़े वोट बैंक का साधने के लिए पार्टियों ने बाजीगरी का सहारा लिया। यानी भाजपा ने अपने संकल्प पत्र और कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में भी किसानों के लिए कई तरह से सूखा रखा। यही नहीं चुनावी मैदान में किसानों की बात तक नहीं की गई। राज्य में कृषि संबंधी मुद्दे हमेशा राजनीतिक चर्चा में हावी रहे हैं और सभी दलों ने किसानों को लुभाने की कोशिश की है। सत्ता में रहने के दौरान कांग्रेस और भाजपा दोनों ने कृषि ऋण माफी के मुद्दे पर किसानों को धोखा देने का आरोप लगाया है। गुणवत्तापूर्ण बीजों की अनुपलब्धता और उर्वरकों की कमी किसानों के लिए प्रमुख चिंता का विषय रही है। लेकिन चुनावी मैदान में किसानों की बात तक नहीं हुई। सरकार उन्हें कर्जदार किसान मानती हैं, जिन्होंने सहकारी बैंकों या समितियों से ऋण लिया है, जबकि आजकल किसान राष्ट्रीयकृत और निजी दोनों बैंकों से ऋण लेते हैं। सहकारी बैंकों के कर्ज से किसान नहीं दबता है, क्योंकि उसमें 0 प्रतिशत ब्याज लगता है। छह-छह माह का समय मिलता है, पुनर्भुगतान का जबकि ,बैंकों में 40 दिन से अधिक का समय नहीं मिलता तो ब्याज दर भी 14 से 16 प्रतिशत तक होती है। इस स्थिति को लेकर किसान लंबे समय से सरकारों को ध्यान दिलाते रहे हैं ,लेकिन किसी ने योजना नहीं बनाई। ये बड़ी परेशानी है। अन्य प्रादेशिक और स्थानीय मुद्दों की तरह इस बार के चुनाव में किसानों के मुद्दे गायब रहे। कांग्रेस हो या भाजपा किसानों की अपेक्षा पर दोनों ही दलों का मेनिफेस्टो खरा नहीं उतरा। दोनों के घोषणा-पत्रों में किसानों के मन की बात नहीं समझी गई। किसान कह रहे हैं कि गेहूं के समर्थन मूल्य को लेकर दोनों पार्टियों ने बाजीगरी दिखाई है। कांग्रेस ने वचन-पत्र में 2600 रुपए तो भाजपा ने संकल्प-पत्र में 2700 रुपए गेहूं का समर्थन मूल्य देने की घोषणा की है, लेकिन कब से यह नहीं बताया। कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में किसान कर्ज माफी की बात तो की है , लेकिन कब होगा यह स्पष्ट नहीं है कि इसके हकदार कौन होंगे। इसकी गणना कैसे होगी और कब से इसे लागू किया जाएगा। उधर, भाजपा ने तो कर्ज माफी पर कुछ कहा ही नहीं है, जबकि किसानों को उम्मीद थी कि काफी चिंतन के बाद घोषणा-पत्र लाया जा रहा है, इसलिए कुछ न कुछ तो होगा। इसके अलावा भी बहुत कुछ था जिनको लेकर जरूरत या फिर समस्याओं के रूप में लंबे समय से अन्नदाता परेशान थे, उनको लेकर घोषणा पत्र में शामिल किया जा सकता था, लेकिन इस पर भी हताशा ही हाथ आई। खेती को मुनाफे का सौदा बनाने की बातें ही होती आ रही हैं। हकीकत में सरकार को जो पहल करनी चाहिए, उस पर समय रहते ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है।
किसानों को थी बड़ी उम्मीद
चुनाव से पहले जिस तरह भाजपा और कांग्रेस किसानों की बात कर रही थीं, उससे किसानों को बड़ी उम्मीद थी। किसान चाहते हैं कि कृषि आदानों (बीज, खाद, कीटनाशक और मशीनरी) पर लगने वाले टैक्स को नियंत्रित किया जाए। प्रदेश में मशीनरी, पेस्टिसाइड पर अभी 18 प्रतिशत तो खाद-बीज पर 8 प्रतिशत टैक्स लागू है। इस कारण ये महंगे मिलते हैं, जो किसान की जेब पर बोझ डालते हैं। जैविक खेती में उपयोग आने वाली दवाइयों पर कम, केमिकल आधारित पेस्टिसाइड पर ज्यादा टैक्स लगता है। प्रदेश के बाजारों में नकली खाद, बीज, दवाई की भरमार है, जो किसान की कमर तोड़ रहे हैं, इसको लेकर कड़े नियम बनाने की मांग उठती रही लेकिन इसे भी किसी पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में प्राथमिकता नहीं दी। डीजल का उपयोग किसान ट्रैक्टर से लेकर बिजली के सिंचाई पंप में करते हैं। इस पर अभी 38 प्रतिशत टैक्स लगता है। किसान चाहते थे कि दोनों ही दल अपने घोषणा-पत्रों में इसकी कीमतों को लेकर कोई योजना लागू करेें। डीजल के लिए क्रेडिट कार्ड बनाया जा सकता था।
किसानों को कहना है कि भाजपा ने घोषणा-पत्र में 2700 रुपए पर तो कांग्रेस ने 2600 रुपए समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी की घोषणा की थी, लेकिन दोनों ने तारीख नहीं बताई। ये कब से होगा, किसान ये जानना चाहता है। पूर्व में बंद की गई भावांतर योजना जिसमें समर्थन मूल्य से नीचे फसल बिकने पर अंतर की राशि सरकार देती थी, इसको घोषणा-पत्र में ला सकते थे। उद्यानिकी फसलों सब्जी, फल, फूल औषधीय पौधों की खेती से लेकर मोटा अनाज और जैविक फसलों की खरीदी के लिए योजना की दरकार है, जिस पर किसी पार्टी ने कोई घोषणा नहीं की है। किसान नवाचारी खेती करते तो हैं, लेकिन समर्थन मूल्य और मंडी में बिक्री की व्यवस्था न होने के कारण हाथ पीछे खींच लेते हैं। श्री अन्न (मोटा अनाज) आयाम प्रमुख, बिहारी साहू कहते हैं कि सभी दलों के मेनिफेस्टो में लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य को शामिल करना चाहिए था। आदान और कृषि यंत्रों पर तो किसी तरह का टैक्स ही नहीं होना चाहिए। जैविक खेती को प्रोत्साहित करने सरकार को किसानों को कुछ पारितोषिक देना चाहिए। भारतीय किसान संघ मध्यभारत प्रांत के प्रांत प्रचार प्रमुख राहुल धूत का कहना है कि राजनीतिक दलों ने अपने – अपने घोषणा-पत्रों में किसानों के लिए लोकलुभावन वादे तो किए, लेकिन समय-सीमा को गोलमोल कर दिया। किसानों की समस्याओं और जरूरतों को लेकर कोई दीर्घकालीन योजना पर ध्यान नहीं दिया गया। जिस भी पार्टी को किसानों का विश्वास हासिल होगा, उसकी सरकार बनने पर वह उनके हित में निर्णायक कदम उठाएगी, इसकी अपेक्षा है।