बहुमत न मिलने पर हो जाती है इनकी बल्ले-बल्ले
विनोद उपाध्याय/बिच्छू डॉट कॉम। मप्र में 17 नवंबर को वोटिंग होगी और 3 दिसंबर को परिणाम आएगा। इसको देखते हुए पार्टियों ने जमावट शुरू कर दी है। खासकर भाजपा और कांग्रेस फूंक-फूंककर कदम बढ़ा रहीं हैं। दोनों पार्टियों को इस बात का डर सता रहा है कि विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर इस बार भी निर्दलीय और तीसरा दल उनका खेल बिगाड़ सकते हैं। उसकी वजह है निर्दलियों का पुराना इतिहास। 2018 विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर या तो निर्दलीय जीते या फिर दूसरे नंबर पर रहकर अपनी मूल पार्टी को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया। इसलिए इस बार के चुनाव में पार्टियां कुछ पूर्व निर्दलीय प्रत्याशियों पर दांव लगा सकती हैं।
गौरतलब है कि 2018 विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों से कई नेता बागी होकर चुनाव लड़े थे। जिसमें ज्यादा संख्या कांग्रेस नेताओं की रही। पिछले विधानसभा चुनाव में 4 निर्दलीय विधायक चुने गए। सभी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते या फिर कांग्रेस पार्टी के नेता रहे। बुरहानपुर विधानसभा सुरेन्द्र सिंह शेरा को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। जिसके बाद शेरा निर्दलीय चुनाव लड़े और मंत्री अर्चना चिटनिस को चुनाव हराया। विक्रम राणा सिंह 2008 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े। जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 2013 और 2018 विधानसभा चुनाव में पार्टी से टिकट मांगा, लेकिन दोनों बार कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। जिसके बाद 2018 में विक्रम राणा सिंह सुसनेर विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़े और जीते। तीसरे निर्दलीय जो पार्टी से बागी होकर विधायक चुने गए, वो थे बबलू शुक्ला। वे बिजावर से विधायक चुने गए। 2013 में पार्टी ने उन्हें ही प्रत्याशी बना था, लेकिन तब वे चुनाव हार गए थे। 2018 में पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो वो निर्दलीय लड़े और जीते। प्रदीप जायसवाल कांग्रेस और भाजपा दोनों सरकारों में मंत्री रहे। प्रदीप जायसवाल कांग्रेस से विधायक भी रहे, लेकिन पार्टी ने पिछले चुनाव में उनकी सीट पर सीएम शिवराज के साले संजय मसानी को टिकट दिया। वो बुरी तरह से हारे और जीत मिली। प्रदीप जायसवाल को। प्रदीप जायसवाल एकमात्र विधायक रहे जो कमलनाथ सरकार में भारी भरकम खनिज विभाग संभालते रहे और सरकार गिरने के बाद भाजपा के साथ चले गए और फिर वहां भी उन्हें कैबिनेट मंत्री पद का दर्जा दिया गया।
ये निर्दलीय पार्टियों के संपर्क में
पिछले चुनाव में निर्दलीय लडकऱ अपनी ही पार्टी के लिए हार का कारण बने नेता इस बार चुनाव लडऩे के लिए पार्टियों के संपर्क में हैं। ये वे निर्दलीय हैं जिन्होंने 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्यादा वोट हासिल किया था। इनमें दिनेश जैन बॉस ने महिदपुर से चुनाव लड़ा और दूसरे नंबर पर रहे। उनका कहना है कि कार्यकर्ताओं की मेहनत ने यहां पहुंचाया है। कांग्रेस से दावेदारी है। पार्टी को लगता है कि जीत सकता हूं तो टिकट देगी। भारत सिंह यादव पनागर से चुनाव लड़े और दूसरे नंबर पर रहे। वे भी कांग्रेस पार्टी से संपर्क में बने हुए हैं। उनका कहना है कि कार्यकर्ताओं का दबाव है कि चुनाव जरूर लडूं। तैयारी जारी है, स्थिति को देखकर निर्णय लूंगा। जेवियर मेड़ा झाबुआ से चुनाव लड़े। तीसरे स्थान पर रहे और कांग्रेस हारी। उनका कहना है कि पार्टी को मेरी स्थिति पता है। कमलनाथ के कहने पर उप चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन इस बार टिकट की पूरी उम्मीद है। समीक्षा गुप्ता ग्वालियर द. से चुनाव लड़ी। वे तीसरे स्थान पर रही। उनकी वजह से ही भाजपा प्रत्याशी 121 वोट से हारे। अब वे कहती है कि मैं पार्टी का पूरा सम्मान करती हूं, उम्मीद है संगठन मेरे साथ न्याय करेगा। पार्टी के निर्णय की प्रतीक्षा है। वहीं सुरेंद्र सिंह शेरा को बुरहानपुर से कांग्रेस प्रत्याशी बना सकती है। सुसनेर विधायक राणा विक्रम सिंह 2021 में भाजपा में शामिल हो चुके हैं। अब वे भाजपा से दावेदार हैं। केदार चिड़ाभाई डावर कांग्रेस प्रत्याशी हो सकते है। गौरतलब है कि पूर्व में कई ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार भी रहे हैं जो एक चुनाव निर्दलीय लड़े फिर अगला चुनाव पार्टी ने उनकी पकड़ को देखते हुए टिकट दिया और चुनाव जीते इस बार भी अब तक जो टिकट का ऐलान भाजपा ने किया है, उसमें भी तीन नाम विश्वामित्र पाठक को सिहावल से और राजकुमार मेव को महेश्वर से टिकट दिया गया। इसके अलावा आगर मालवा से मधु गहलोत को उम्मीदवार बनाया गया।
इन निर्दलीयों ने बिगाड़ा था सियासी समीकरण
पिछले चुनाव में कई सीटों पर निर्दलियों ने पार्टियों का सियासी गणित बिगाड़ दिया था। उज्जैन के महिदपुर विधानसभा से कांग्रेस पार्टी के बागी होकर दिनेश जैन बॉस चुनाव लड़े और पार्टी को तीसरे स्थान पर खिसका दिया। वे खुद दूसरे नंबर पर रहे और वोट मिले 55 हजार 52। पूर्व विधायक जेवियर मेड़ा कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया। जिसके बाद 2018 में निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया और वोट मिले 35 हजार 943 जिसके कारण कांग्रेस के विक्रांत भूरिया अपने सियासी करियर का पहला विधानसभा चुनाव 10 हजार 437 वोटों से हार गए। ग्वालियर की पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता टिकट नहीं मिलने पर ग्वालियर दक्षिण से निर्दलीय ताल ठोकी और भाजपा के प्रभाव वाली सीट पार्टी हारी और कांग्रेस ये सीट मात्र 121 वोटों से जीत गई। समीक्षा गुप्ता को वोट मिले 30 हजार 645। इसके अलावा 2018 में कई ऐसे निर्दलीय उम्मीदवार थे जिन्हें 30 हजार से ज्यादा वोट मिले। शाजापुर से भाजपा के बागी जेपी मंडलोई को 37 हजार वोट मिले। बड़वानी से कांग्रेस के बागी राजन मंडलोई को 34 हजार, जावद से कांग्रेस के बागी समंदर पटेल को 33 हजार, राजगढ़ से प्रताम सिंह मंडलोई 33 हजार 494 और बदनावर से राजेश अग्रवाल को 30 हजार 967 वोट मिले।