‘परिसीमन’ बनेगा मोहन ‘राज’ का सियासी हथियार

  • एक आयोग से कई समीकरणों को साधने की कोशिश

गौरव चौहान/भोपाल/बिच्छू डॉट कॉम

डॉ. मोहन यादव

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने परिसीमन आयोग का एक ऐसा दांव चल दिया है जिससे वे कई समीकरणों को साधकर अपनी साख को मजबूत बनाएंगे। गौरतलब है कि प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से उठ रही नए जिलों की मांग के बाद अब मप्र प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग बनाने की घोषणा कर मुख्यमंत्री ने बड़े लक्ष्य को साधने की कोशिश की है। दरअसल, बीना को जिला बनाए जाने की मांग के बीच खुरई को भी जिला बनाने के लिए भीतरखाने राजनीतिक लामबंदी होने लगी थी। अब आयोग के गठन से ये भी साफ हो गया है कि नए जिलों का गठन सोच समझकर किया जाएगा। वहीं पुनर्गठन आयोग की घोषणा से सरकार ने राजनीति, भूगोल और समाज तीनों को साधने की कोशिश की है। सीनियर अधिकारी कहते हैं कि ऊपरी तौर पर भले ही ये प्रशासनिक आदेश लग रहा है, लेकिन इसके राजनीतिक मायने बेहद गहरे हैं।
27 फरवरी 2024 को ही कैबिनेट ने प्रशासनिक पुनर्गठन आयोग को स्वीकृति दे दी थी। मगर, चुनाव आचार संहिता के चलते उस समय नियुक्ति के आदेश नहीं हुए थे। अब 9 सितंबर को सरकार ने रिटायर्ड एसीएस मनोज श्रीवास्तव को आयोग का सदस्य बनाया है। आयोग हर जिलों के दौरे करके उसका भूगोल समझेगा। वहां के लोगों की तकलीफ जानेगा। ये देखेगा कि प्रदेश के किस हिस्से में जिला मुख्यालय लोगों की पहुंच से बेहद दूर है? क्या उस हिस्से को नजदीक के किसी जिले में मिलाया जा सकता है या नहीं? इसके बाद आयोग एक ड्राफ्ट बनाएगा। उस पर दावे-आपत्तियां बुलाई जाएंगी। एक बार फिर उन दावे-आपत्तियों पर सुनवाई होगी। फिर अंतिम ड्राफ्ट तैयार होगा। आयोग की इन गतिविधियों से लोगों का सरकार के प्रति विश्वास मजबूत होगा। जानकारों का कहना है कि सरकार ने जिलों की सीमाओं के फिर से आंकलन के लिए मध्यप्रदेश प्रशासनिक इकाई पुनर्गठन आयोग बनाकर लंबे समय से चल रही विसंगतियों को दूर करने का जो फैसला लिया है, वह निश्चित रूप से बेहतर है पर इस फैसले के राजनीतिक निहितार्थ भी अपनी जगह है। सरकार ने इससे जिलों की राजनीति, भूगोल और समाज तीनों को साधने का प्रयास किया है।

 जिलों की समस्याएं हल होंगी
नए परिसीमन से जिलों की समस्याएं भी हल होंगी। आज कई शहर ऐसे हैं, जो अपने जिला मुख्यालय से काफी दूर हैं तो दूसरे जिले के एकदम करीब है। सीहोर जिले का बुधनी, नर्मदापुरम से लगा हुआ है। इसी तरह मंडीदीप रायसेन जिले में आता है और यह भोपाल के एकदम करीब है। पीथमपुर इंदौर से लगा हुआ है। मालनपुर ग्वालियर के पास है पर यह भिंड जिले में आता है। आयोग इन विसंगतियों को ठीक करने पर काम करेगा। आयोग का कार्यकाल अभी एक साल का रखा गया है, पर जानकारों की मानें तो काम काफी बड़ा और व्यापक है। इसमें दो साल से अधिक का समय लगना तय है। कहना न होगा कि नए जिलों को बनाने का सीधा संबंध सियासत से होता है। यही वजह है कि नए जिले जब भी बने चुनावी साल में ही बने। 2000 में मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद 2003 में तत्कालीन दिग्विजय सिंह सरकार ने अनूपपुर, अशोकनगर और बुरहानपुर को जिला बनाया था। तब जिलों की संख्या 45 से बढकऱ 48 हो गई थी। इसके बाद 2008 में शिवराज सरकार ने अलीराजपुर, सिंगरौली को नया जिला बनाया था। इसके बाद 2013 में शिवराज सिंह सरकार ने आगर मालवा को नया जिला बनाया, जिससे जिलों की संख्या 51 हो गई। 208 में फिर निवाड़ी को जिला बनाया गया। 2023 में चुनावी साल में फिर तीन नए जिले मऊगंज, पाढर्णा और मैहर बनाए गए। इसके बाद जिलों की संख्या 55 तक पहुंच गई। परिसीमन आयोग की सिफारिशों के बाद जिलों की संख्या कम होगी या बढ़ेगी, यह भविष्य के गर्त में है।

दो साल तक नए जिलों का ऐलान नहीं
आयोग के गठन से साफ है कि अब कम से कम दो साल तक किसी नए जिले का ऐलान सरकार नहीं करेगी। कुछ क्षेत्रों के जुडऩेे-घटने से जिलों के सियासी समीकरण भी प्रभावित होना तय माना जा रहा है। प्रदेश में इस समय आधा दर्जन शहरों के नेता अपने अपने शहरों को जिला बनाने की मांग कर रहे हैं। सीएम सोमवार को बीना के दौरे पर गए थे। इस दौरे के ठीक पहले ही उन्होंने आयोग के गठन की जानकारी दी थी। बीना को जिला बनाने की मांग लंबे समय से हो रही है। वहीं समीप के शहर खुरई को भी जिला बनाने की मांग भी पुरानी है। अभी दोनों शहर सागर जिले का हिस्सा हैं। बीना से सागर की दूरी 70 तो खुरई की 50 किमी है। इसी तरह मंदसौर मांग भी पुरानी है। मंदसौर की उज्जैन से दूरी 150 है और यह जिला अभी उज्जैन संभाग का हिस्सा है। चुनाव के समय पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी गरौठ को जिला बनाने पर विचार का आश्वासन दिया था। उज्जैन के नागदा को जिला बनाने को लेकर तो परीक्षण भी हो चुका है पर इसके बाद भी मामला अटका हुआ है। इसके अलावा छतरपुर के गौरिहार, गुना से चाचौड़ा, नर्मदापुरम के पिपरिया, खंडवा के ओंकारेश्वर, धार के डही को भी जिला बनाने की मांग उठती रही है। ये वे शहर हैं जिनकी जिला मुख्यालय से दूरी 50 किलोमीटर से ज्यादा है। छिंदवाड़ा को तोडक़र पांडुर्णा को जिला बनाया जा चुका है, पर जुन्नारदेव को जिला बनाने की मांग भी लंबे समय से उठ रही है। राजनीतिक दलों के नेताओं की यह मजबूरी होती है कि उन्हें इस मांग का समर्थन करना भी पड़ता है। नागदा, बीना समेत कई जिलों के विधायक अपने शहर को जिला बनाने की मांग को लेकर समय समय पर सीएम से मिलते रहे हैं। अब नया आयोग बनाकर को संभाग और गरौठ को जिला बनाने की सरकार ने इस मांग को लंबे समय के लिए टाल दिया है।

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