अब गोविंद के निशाने पर आए… पंडित धीरेंद्र शास्त्री

  • गौरव चौहान
गोविंद-धीरेंद्र शास्त्री

प्रसिद्ध संत बागेश्वर महराज अब नेता प्रतिपक्ष डॉ गोविंद सिंह के साथ ही भाजपा के विद्रोही विधायक माने जाने वाले नारायण त्रिपाठी के निशाने पर आ गए हैं। इन दोनों ही नेताओं ने अब उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। गौरतलब है कि इसके पहले नेता प्रतिपक्ष लंबे समय तक रावतपुरा सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोले रहे हैं। यह बात अलग है कि उस मामले में नेता प्रतिपक्ष हमेशा भारी पड़ते रहे हैं।
दरअसल बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री न केवल सनातन की बात करते हैं, बल्कि खुलकर हिन्दुओं को एक होने के लिए भी प्रेरित करते हैं। यही वजह है कि वे नेता प्रतिपक्ष के निशाने पर आ गए हैं। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने उन्हें बीजेपी का प्रचारक बताया है। उन्होंने पंडोखर सरकार के धाम पर दर्शन करने के बाद जहां पंडोखर धाम की जमकर प्रशंसा की तो बागेश्वर धाम पर पूरी तरह से हमलावर बने रहे। उन्होंने कहा कि कई धाम सुने, उनमें बागेश्वर धाम राजनीतिक आधार पर है। वह भाजपा के प्रचारक हैं, लेकिन पंडोखर में सर्वधर्म समभाव है। बागेश्वर में तो धर्म के अलावा भी बात करते हैं, लेकिन यहां शुद्ध रूप से धार्मिक और सालों पहले का जो ज्ञान था, उसे गरीबों के हित में प्रदर्शित कर रहे हैं। खास बात यह है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष  कमलनाथ कह चुके हैं कि कथावाचकों को लेकर विरोधाभासी बयानबाजी नहीं की जाए। कमलनाथ खुद पंडित प्रदीप मिश्रा और बागेश्वर धाम के कथावाचक धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री से मिल चुके हैं। उनकी नसीहत के बावजूद कांग्रेस के नेताओं की बयानबाजी नहीं रुक रही है। उधर सतना जिले की मैहर सीट से बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी ने दो दिन पहले 11 अप्रैल को नई पार्टी बनाकर विंध्य की 30 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। वे 3 मई से मैहर में पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की कथा कराने वाले थे, लेकिन अचानक कार्यक्रम कैंसिल करना पड़ा है। इसकी वजह है धीरेंद्र शास्त्री ने विधानसभा चुनाव तक कथा करने से मना कर दिया है। इस पर विधायक तैयार नहीं हुए तो शास्त्री ने कथा करने से मना कर दिया है। इससे नाराज त्रिपाठी का कहना है कि धर्म राजनीति का विषय नहीं है। आप कीजिए सरकार की गुलामी। हमारे हनुमान जी आराध्य हैं। विधायक ने आरोप लगाया है कि धीरेंद्र शास्त्री ने सरकार के दबाव में यह कार्यक्रम निरस्त किया है। विधायक द्वारा मैहर में आयोजन की सभी तैयारियां की जा चुकी थीं। कथा स्थल पर 60 एकड़ में वातानुकूलित पंडाल लगाया जा रहा था। जिसमें 50 हजार लोगों के बैठने की व्यवस्था की जा रही थी। 20 एकड़ के क्षेत्र में लोगों के भोजन-प्रसादी के लिए व्यवस्थाएं की गईं थीं। इतना ही नहीं आयोजन की विभिन्न व्यवस्थाओं से जुड़ी 60 प्रतिशत पार्टियों को एडवांस पैसा भी दिया जा चुका है। शुभारंभ पर निकाली जाने वाली भव्य कलश यात्रा के लिए महिलाओं ने भी पूरी तैयारियां कर रखीं थीं। पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अभी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के क्षेत्र विदिशा में भागवत कथा कह रहे हैं। एक दिन पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कथा सुनने पहुंचे थे।
153 विधानसभा सीटों पर माना जाता है प्रभाव
प्रदेश में इस वर्ष विधानसभा चुनाव होना है, जिसको लेकर राजनीतिक पार्टियां मैदान में उतर चुकी हैं, तो वहीं अब बाबाओं के दरबार में भी नेताओं की नजदीकियां लगातार बढ़ती जा रही है, अपने-अपने इलाकों में मंत्री से लेकर विधायक और जनप्रतिनिधि तक उनकी कथाओं के माध्यम से वोटर को अपने पक्ष में साधने की तैयारी में लगे हुए हैं और अपनी छवि बनाने के लिए दरबार में जाकर लाखों रुपए खर्च करने में जुट गए हैं । यहां तक कि शिवराज सरकार के कई मंत्री अपने-अपने क्षेत्रों में भी कथा करवा रहे हैं और अभी कुछ वेटिंग लिस्ट में चल रहे हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं कि  केवल बीजेपी के ही नेता धार्मिक आयोजन करवा रहे हैं, बल्कि कांग्रेस के भी बड़े-बड़े नेता इन बाबाओं से राजनीति प्रसाद हासिल करने में जुटे हुए हैं। अनुमान के मुताबिक  6 महीने में 500 से अधिक धार्मिक कथाओं से लेकर बड़े-बड़े यज्ञ का आयोजन संभावित है, जिसमें अधिक कथाएं नेताओं द्वारा करवाई जा रही है, जिसमें प्रदेश के 3 कथावाचक बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र शास्त्री तो दूसरे पंडोखर सरकार गुरु शरण शर्मा वहीं तीसरे उबेश्वर धाम के प्रदीप मिश्रा शामिल हैं। इनका 153 विधानसभा सीटों पर प्रभाव माना जाता है। यही कारण है कि पार्टी के बड़े-बड़े मंत्री विधायक नेता बाबाओं के दरबार में अब अर्जी लगाने जा रहे हैं।
रावतपुरा व सिंह के बीच रह चुकी अदावद
प्रदेश में रावतपुरा सरकार व डॉ. गोविंद सिंह के बीच अदावद सबसे पुरानी है। उनके बीच करीब दो दशक तक लगातार विवाद चलता रहा, जो सर्वाधिक चर्चा में रहा करता था। इस दौरान दोनों ही आमने -सामने बने रहते थे। इस वजह से लगभग चार चुनावों में रावतपुरा सरकार ने डॉ. सिंह को हराने के लिए तमाम प्रयास किए, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इसके बाद उनके बीच समझौता हो गया। खास बात यह है कि इस दौरान कांग्रेस के तमाम बड़े नेता रावतपुरा सरकार के शिष्य भी बने रहे।

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