- सुमन कांसरा
हर बार बॉर्डर पर लड़ाई हारने वाली पाकिस्तानी फौज पाकिस्तान के अंदर उसके लोकतंत्र की हत्या करने में हर बार कामयाब हो जाती है। इतिहास इस बार फिर दोहरा दिया गया। इमरान खान को सत्ता से बाहर करने के लिए नवाज शरीफ जिसको देश निकाला दे दिया गया था, वापस बुलाया उसके सब मुकदमे खारिज किए किए ताकि, इमरान खान को उसकी पार्टी सहित खत्म कर सकें और फिर से फौजी अपनी पसंद की कठपुतली कुर्सी पर बिठा सकें और हुआ भी ऐसा ही ।
पाकिस्तान की जनता की आवाज और उसके लोकतांत्रिक हक से इस्तेमाल किए गए वोट फिर हार गए। जनता ने साफ बता दिया कि वह तो नवाज ना तो नवाज शरीफ को और ना ही बिलावल भुट्टो वह तो सिर्फ पाकिस्तानी फौज की सत्ता में हस्तक्षेप के खिलाफ है। इमरान खान के ऊपर 161 कैसे किए गए, जिसमें उसे 34 साल की सजा और उसकी बीवी को 14 साल की सजा सुनाई गई। उसकी पार्टी तरीके इंसाफ का चुनाव चिन्ह छीन कर उसको चुनावी प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया और उसकी पार्टी के बहुत सारे सदस्यों को जेल में भी डाल दिया। पर इस बार का इलेक्शन पाकिस्तान की जनता की हिम्मत और हौसले का इलेक्शन था। जनता ने दिखा दिया कि चाहे लीडर जेल में हो, पार्टी हो ना हो फिर भी जनता जिसे चाहे उसे जीता सकती है और जनता ने जिताया भी। पर फिर भी पाकिस्तानी फौज ने इलेक्शन का सही रिजल्ट बाहर नहीं आने दिया , चुनाव के 5 दिन के बाद भी रिजल्ट बाहर नहीं आया, और जो पीटीआई के लोग इंडिपेंडेंट उम्मीदवार के तौर पर खड़े हुए थे, वह लगभग 130 सीटों से आगे बढ़त बनाए हुए थे ,पर लोकतंत्र की एक बार फिर हत्या करने के लिए फौज ने इन्हीं चार दिनों में बहुत हद तक हवा का रुख बदल दिया। पीटीआई की सीटें घटकर 96 रह गईं पर फिर भी वह सबसे बड़ी पार्टी उबर कर आगे आई। नवाज शरीफ की पार्टी को जो 50 पर थी जिसे 74 तक पहुंचा दिया गया। पाकिस्तान में वही होता है जो फौजी चाहे और वही हुआ भी।
इमरान खान की पार्टी ने विपक्ष में बैठने का फैसला किया और बिलावल भुट्टो ने बाहर से समर्थन देने का। नवाज शरीफ के पास नंबर नहीं है पर फौजी उसके साथ है इसलिए चौथी बार प्रधानमंत्री बनने की तैयारी में।
यहां की जनता बहुत मायूस और लूटी हुई महसूस कर रही है। एक बार फिर उनके अरमानों का कत्ल हो गया । दुनिया भर में पाकिस्तान के हालात पर जो चर्चा हो रही है। उसमें पाकिस्तान की इस बार फिर अंदरूनी सियासत खुलकर सामने आ गई, जिसकी वजह से पाकिस्तान का पढ़ा लिखा हुआ बहुत शर्मिंदगी महसूस कर रहा है। फोन में राम वैसे भी इलेक्शन से पहले भी कोई कोई खास चुनावी माहौल नहीं था। पाकिस्तान में चारों तरफ एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। बड़ी-बड़ी रैली और चुनावी समय भी बहुत ही फिक्की दिख रही थी। यहां की जनता वैसे भी रोजी-रोटी की जुगाड़ बिजली के बिल पेट्रोल के बढ़ते दाम बढ़ती महंगाई से जूझने में इस कदर व्यस्त रहती है कि उसका ध्यान चुनाव की तरफ से वैसे भी जाता हुआ था और दूसरा यहां की चुनावी प्रक्रिया में पहले भ्रष्टाचार विश्वास भी इसकी एक वजह हो सकते हैं।